जयपुर. राजस्थान की सियासत में हर रोज कुछ ना कुछ नया देखने को मिल रहा है. बड़ी बात यह है कि सियासी उठापटक के बीच कभी पायलट के खेमा कमजोर दिखता है तो कभी अशोक गहलोत खेमा. दोनों ही टीमों के अलावा बीजेपी इस त्रिकोणीय मुकाबले में पूरे राजनीतिक मैच को रोमांचक बनाए है.
इस बीच गुरुवार को राजस्थान हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने बहुजन समाज पार्टी (BSP) विधायकों के केस को सिंगल बेंच के पास वापस भेज दिया. सिंगल बेंच में BSP की याचिका पर सुनवाई की जा रही थी, जिसमें मांग की गई थी कि BSP विधायकों के विलय पर स्थगन आदेश दिया जाए, क्योंकि यह अवैध था. अब सिंगल बेंच ही 11 अगस्त को तय करेगी कि BSP विधायकों के कांग्रेस में विलय पर स्थगनादेश दिया जाए या नहीं. BSP की याचिका के इस फैसले पर बहुत कुछ निर्भर करेगा कि किसका पलड़ा भारी होता है, गहलोत या पायलट खेमे का.
इतना ही नहीं डिवीजन बेंच ने निर्देश दिया है कि BSP के पूर्व MLA को अख़बारों में सूचना प्रकाशित करके भी नोटिस की सूचना दी जाए. यदि वे रिसॉर्ट में रुके हैं, तो संबंधित जिले के SP के माध्यम से नोटिस द्वारा सूचित किया जाए.
गौरतलब है कि राजस्थान विधानसभा चुनाव के बाद BSP MLA लखन सिंह (करौली), राजेन्द्र सिंह गुढ़ा (उदयपुरवाटी), संदीप कुमार (तिजारा) और वाजिब अली (नगर, भरतपुर), दीपचंद खेड़िया (किशनगढ़ बास), जोगेन्दर सिंह अवाना (नदबई) कांग्रेस में शामिल हो गए थे. इसके खिलाफ बीजेपी विधायक ने स्पीकर से शिकायत की थी और इन विधायकों पर अयोग्यता की कार्रवाई करने की मांग की थी. अब बीएसपी का कहना है कि अशोक गहलोत ने उनके विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया.
बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने कहा भी था कि 'राजस्थान विधानसभा चुनाव के बाद बीएसपी ने कांग्रेस को अपने 6 विधायकों का समर्थन दिया था लेकिन दुर्भाग्य से सीएम गहलोत ने अपने दुर्भावनापूर्ण इरादे और बसपा को नुकसान पहुंचाने के लिए बीएसपी विधायकों को असंवैधानिक तरीके से कांग्रेस में शामिल कर लिया.'
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का दावा है कि उनके खेमे में 102 विधायकों का दावा कर रहे हैं. लेकिन इनमें बसपा के 6 MLA भी शामिल हैं. ऐसे में यदि कोर्ट ने BSP विधायकों के कांग्रेस में शामिल होने के मसले पर स्टे दे दिया तो गहलोत सरकार की मुश्किलें बढ़ जाएंगी. कारण साफ है कि स्टे मिलने की स्थिति में BSP अपने विधायकों को व्हिप जारी कर बहुमत परीक्षण में सरकार के खिलाफ वोट करने को कहेगी या पक्ष में वोटिंग करने से रोकेगी तो सरकार की मुश्किल बढ़ेंगी. और विधायकों ने व्हिप का उल्लंघन किया तो BSP उनकी विधायकी रद्द करवाने की दिशा में आगे बढ़ेगी.