जयपुर (आलोक शर्मा). राजस्थान के राज्यसभा चुनावों के बाद एक बार फिर अशोक गहलोत ने साबित कर दिया है कि वो एक मंझे हुए राजनीतिक जादूगर हैं. उनकी राजनीतिक परिपक्वता और अनुभव का मुकाबला करने वाला फिलहाल प्रदेश में कोई नेता नहीं है. खुद की सरकार को बगावत से बचाने की बात हो या फिर राज्यसभा चुनावों की, हर मोर्चे पर गहलोत ने एक मंझे हुए राजनीतिक क्षत्रप की भूमिका में कांग्रेस पार्टी को मजबूत बनाए रखा. पार्टी को नुकसान होने के बजाए अपने राजनीतिक कौशल से कई बार पस्त होने से बचाया.
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यही कारण है कि इस बार हुए राज्यसभा चुनावों में कांग्रेस के तीनों ही प्रत्याशियों मुकुल वासनिक, रणदीप सुरजेवाला, प्रमोद तिवारी जीत गए हैं. विपक्षियों की क्रॉस वोटिंग की सारी गणित और रणनीति धरी रह गई. राज्यसभा चुनाव में बीजेपी कांग्रेस और निर्दलियों का वोट तो लेने में कामयाब नहीं हुई बल्कि खुद का वोट और क्रॉस वोटिंग में गवा दिया. सीएम अशोक गहलोत ने एक मंझे हुए राजनीतिज्ञ जादूगर की तरह इस पूरे गेम को खेला. गहलोत राज्यसभा चुनावों से पहले खुद को उलझा और चिंतित होने का दिखावा करते रहे, और विपक्ष में सेंधमारी कर दी. गहलोत की इस रणनीति को भांपने में विपक्षी कमजोर साबित हुए. क्योंकि उनको लगा कि गहलोत तो खुद की ही पार्टी के वोट बैंक में सेंधमारी हो जाए इससे जूझने में लगे हैं, जबकि विपक्षी अंत तक इस बात का अंदाजा ही नहीं लगा पाए कि गहलोत ने उल्टा उनके ही वोट बैंक में सेंधमारी कर दी है.
इतना ही नहीं जब गहलोत राज्यसभा चुनाव के लिए वोट डालने आए थे उससे पहले मीडिया को दिए एक बयान में इस सेंधमारी के संकेत भी दे चुके थे लेकिन कोई उनके इस इशारे और संकेत को समझ नहीं पाया. वोट डालने से पहले ही गहलोत ने एक मीडिया बयान उन्होने कहा था कि 'तीनों सीट हम कम्फर्टेबली जीत रहे हैं और उनको अपना घर संभालना चाहिए क्योंकि वहां पर भगदड़ मची हुई है.' यदि बीजेपी समय रहते इस बयान के मायने समझ जाती तो भी शायद समय रहते डैमेज कंट्रोल हो जाता लेकिन सबकुछ लुटने के बाद नेताओं की आंखे फटी रह गई.
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बड़ी बात यह रही कि बीजेपी खेमे की शोभारानी कुशवाह थी तो बीजेपी की बाड़ेबंदी में लेकिन पूरा फीडबैक लगातार कांग्रेस को दे रही थी. सारा फीडबैक सीधा सीएम अशोक गहलोत तक पहुंच रहा था. यानी बीजेपी के इन चुनावों से जुड़ी हर रणनीति का फीडबैक लगातार गहलोत तक पहुंच रहा था. इसके अलावा समय रहते एसीबी में शिकायत करके भी कांग्रेस ने एक मजबूत खेल खेला. जहां राजस्थान एसीबी ने बेहतरी से काम करते हुए हर विधायक पर पैनी नजर रखी. चूंकि एसीबी का फीडबैक सिस्टम और इंटेलीजेंस मजबूत है तो इसका फायदा भी कहीं ना कहीं इन चुनावों में देखने को मिला.
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हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं कि बीजेपी नेताओं ने इस पूरे चुनाव को एक निर्दलीय प्रत्याशी सुभाष चंद्रा की एंट्री कराकर काफी रोचक बनाया लेकिन पार्टी में एकजुटता और परिपक्वता की कमी, मजबूत लीडरशिप का अभाव यहां दिखा. ऐसा कोई नेता बीजेपी की तरफ से लीड कर ही नहीं रहा था जो कि गहलोत जैसे एक मजबूत नेता का मुकाबला कर सके.
बड़ी बात यह रही कि कांग्रेस के तीनों ही प्रत्याशी कद्दावर नेता के रूप में पहचाने जाते हैं. मुकुल वासनिक और रणदीप सुरजेवाला खुद एक राजनीतिक खिलाड़ी हैं. कांग्रेस के ट्रबल शूटर हैं. ऐसे में गहलोत के साथ इस पूरे गेम में कंधे से कंधा मिलाकर मजबूती से इन चुनावों में पूरा मुकाबला किया और मजबूत रणनीति बनाई.
कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला को 43, मुकुल वासनिक को 42 और प्रमोद तिवारी को 41 प्रथम वरीयता के वोट मिले और तीनों उम्मीदवार विजयी घोषित किए गए। भाजपा उम्मीदवार घनश्याम तिवाड़ी को प्रथम वरीयता के 43 वोट मिले और जीत दर्ज की। भाजपा समर्थक निर्दलीय उम्मीदवार सुभाष चंद्रा मात्र 30 वोट ही मिल पाए और वे चुनाव हार गए।
फिलहाल इसके बाद अशोक गहलोत की साख गांधी परिवार के सामने और मजबूत हो गई है जिन्होंने तमाम विरोधों, षड़यंत्रों के बावजूद गेम में बाजी मारी. निर्दलीय प्रत्याशी सुभाष चंद्रा और बीजेपी के सपने को चारों खाने चित्त कर सपनों पर पानी फेर दिया. गहलोत का कद इस लिहाज से भी मजबूत होगा क्योंकि यह कांग्रेस के तीनों ही प्रत्याशी गांधी परिवार की तरफ से भेजे गए थे जिनकी गांधी परिवार में भी मजबूत पकड़ है। ऐसे में यह लोग हमेशा गहलोत के अहसानमंद रहेंगे। और निकट भविष्य में जब भी गहलोत की पैरवी करने का मौका होगा तो मुक्त कंठ से ना केवल उनकी प्रशंसा करेंगे बल्कि मजबूती से गहलोत के साथ खड़े होते भी दिखेंगे.
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उधर भाजपा उम्मीदवार घनश्याम तिवाड़ी जरूर जीत गए हैं लेकिन सुभाष चंद्रा की हार और बीजेपी की क्रॉस वोटिंग के कारणों पर समय रहते मंथन करने की जरूरत है क्योंकि राज्य के विधानसभा चुनाव अब ज्यादा दूर नहीं है.
127 विधायकों के वोट कांग्रेस को, एक वोट खारिज
127 विधायकों के वोट कांग्रेस को पड़े, जिसमें एक वोट खारिज हो गया। तीनों उम्मीदवारों को कुल 126 वोट मिले। रणदीप सुरजेवाला को 43, मुकुल वासनिक को 43 और प्रमोद तिवारी को 41 वोट मिले। जीत के लिए 41 वोट चाहिए थे। कांग्रेस का एक वोट खारिज होने के बाद भी कांग्रेस के दो उम्मीदवारों को तीन वोट ज्यादा मिले। कांग्रेस के 108, आरएलडी के सुभाष गर्ग, सीपीएम और बीटीपी के 2-2 विधायक, 13 निर्दलियों को मिलाकर कुल 126 विधायकों का समर्थन था। जो गहलोत के बेहतर राजनीतिक प्रबंधन का उदाहरण कहा जा सकता है।