जयपुर. डॉक्टर को ऐसे ही भगवान का दूसरा रूप नहीं कहा जाता. इसका ताजा उदाहरण महात्मा गांधी अस्पताल के डॉक्टर्स ने पेश किया है. जहां एक्यूट लिवर फेलियर की आपात स्थिति में झालावाड़ निवासी 50 वर्षीय महिला काली बाई को तुरंत लिवर ट्रांसप्लांट कर नया जीवनदान दिया गया.
एक्सपर्ट बताते हैं कि एक्यूट लिवर फेलियर वो स्थिति है जहां किसी सामान्य जीवन जी रहे व्यक्ति का लिवर अचानक फेल हो जाता है और मरीज को संभलने का भी मौका नहीं मिलता, लिवर रिकवरी के चांस ना के बराबर होते हैं. मरीज कोमा में चला जाता है, सांस लेने में तकलीफ होती है, और कुछ ही घंटों या दिनों में ट्रांसप्लांट ना किया जाए तो मरीज की जान जा सकती है. ऐसे में लिवर ट्रांसप्लांट ही इसका एकमात्र उपचार है.
ऐसी विषम परिस्थितियों में महात्मा गांधी अस्पताल की एक विशेष टीम ने अस्पताल के एमेरिटस चेयरपर्सन डॉ. एम. एल. स्वर्णकार के निर्देशन में लिवर ट्रांसप्लांट एक्सपर्ट सर्जन डॉ. नैमिश मेहता की लीडरशिप में एक विशेष टीम का गठन कर किसी भी सूरत में महिला की जान बचाने के लिए तुरंत आवश्यक कार्रवाई करने के लिए उत्साहवर्धन किया. जिसका नतीजा यह रहा कि पूरी टीम की मेहनत के बाद परिजनों में से ही एक व्यक्ति को लिवर डोनेशन के लिए तैयार किया गया, और करीब 12 घंटे के विशेष ट्रांसप्लांट ऑपरेशन के जरिए महिला को ना केवल नई जिंदगी देने में कामयाबी हासिल की बल्कि महिला के परिजनों को भी खुशियां लौटाने में मदद की. यदि यह सब समय पर नहीं होता तो शायद कुछ ही घंटों बाद महिला काली बाई के परिवार को बड़ा आघात झेलना पड़ता.
कोरोना के खिलाफ चल रही जंग में मिथक तोड़ नायाब उदाहरण बन रहे निजी अस्पताल और चिकित्सक
इस पूरे मिशन में परिजनों ने भी तुरंत लिवर डोनेशन के लिए सजगता दिखाई जो काली बाई का जीवन बचाने में अहम था. डॉक्टर्स का दावा है कि राजस्थान में एक्यूट लिवर फेलियर की स्थिति में किया गया यह अपने तरह का पहला सफल लिवर ट्रांसप्लांट सर्जरी ऑपरेशन है.
हमारे लिए यह ट्रांसप्लांट किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं था, लेकिन हमने अपने सबसे बेस्ट एफर्ट्स देकर किसी भी सूरत में काली बाई और उनके परिजनों को खुशियां लौटाने का फैसला किया. जहां परिवार एक्यूट लिवर फेलियर के बाद हताश हो चुका था उस बीच ट्रांसप्लांट से जुड़ी हर कागजी कार्रवाई भी तुरंत अस्पताल स्टाफ के जरिए महज 24 घंटों में ही पूरी करा दी गई जिसे सामान्यत 10 से 12 दिन लग सकते थे, पर तब तक काफी देर हो चुकी होती. हमारे लिए खुशी की बात है कि महात्मा गांधी अस्पताल के चिकित्सकों ने खुद की क्षमताओं को ना केवल साबित किया बल्कि एक परिवार की खुशियों को भी बरकरार रखा.
-: डॉ. एम. एल. स्वर्णकार, एमेरिटस चेयरपर्सन, महात्मा गांधी अस्पताल
महात्मा गांधी अस्पताल के लिवर ट्रांसप्लांट विभाग के डायरेक्टर एवं मुख्य लिवर ट्रांसप्लान्ट सर्जन डॉ. नैमिश मेहता बताते हैं कि राज्य में आपातकालीन लिवर ट्रांसप्लांट का यह पहला मामला है। यह ऑपरेशन पूरी तरह सफल रहा है। रोगी कालीबाई तथा डोनर राजेश अब स्वस्थ हैं। ड्रग साइड इफेक्ट के कारण रोगी को लियर फेलियर की स्थिति का सामना करना पड़ा। अस्पताल पहुंचते ही रोगी को वेंटीलेटर की मदद की जरूरत पड़ी। उसके दिमाग पर सूजन का गंभीर खतरा भी था। जिंदगी के कुछ ही घण्टे ही बाकी थे। ऐसी स्थिति में 80-85 प्रतिशत रोगी जान गंवा देते हैं। रोगी की जान बचाने का एकमात्र विकल्प लिवर प्रत्यारोपण था। इसकी सबसे बड़ी समस्या यह थी कि घर वालों को अचानक हुए लिवर फेलियर की जानलेवा स्थिति का आभास भी नहीं होता है। और वे इतनी बड़ी सर्जरी के लिए तैयार नहीं हो पाते हैं।
हिमेटोलोजिस्ट डॉ. करण कुमार ने परिवार की काउंसिलिंग कर गंभीरता के बारे में बताया तब इनके तीनों बेटा लिवर डोनेशन की इच्छा जाहिर की जांचों में मँझले बेटे राजेश को लिवर डोनेशन के लिए उपयुक्त पाया गया। तुरंत ही ट्रांसप्लाण्ट सम्बन्धित दस्तावेज तैयार कर स्टेट ऑथराइजेशन कमेटी से स्वीकृति ली गई। आपात स्थिति में देर रात ऑपरेशन शुरू हुआ जो बारह घण्टे तक चला। एक साथ दो ऑपरेशन थियेटर्स में ऑपरेशन हुए। पहले में लिवर डोनर के लिवर का एक हिस्सा निकाला गया। दूसरे ऑपरेशन थियेटर में काली बाई का खराब हुआ लिवर निकाला गया तथा डोनेशन से प्राप्त लिवर का हिस्सा प्रत्यारोपित किया गया।
खास बात यह है कि अस्पताल में भर्ती होते समय भी रोगी वेंटीलेटर पर था। डोनर की जाँच तथा ट्रांसप्लाण्ट सम्बन्धित डॉक्यूमेंटेशन तथा सरकारी अनुमति में सामान्यतः लगभग आठ से दस दिन का समय लग जाता है। इस आपात सर्जरी में महज एक दिन में सारी प्रक्रिया पूरी की गई। दोनों ही ऑपरेशन सफल रहे हैं। डोनर का लिवर पहले की तरह दो नाह में सामान्य आकार ले लेगा।
मैंने जीवन की आस छोड़ दी थी, मुझे नहीं लगता था कि अब कोई इसका इलाज भी होगा. पर अस्पताल के चिकित्सकों ने जिस तत्परता और समर्पण से मुझे एक परिवार का सदस्य मानकर उपचार दिया, एक नया जीवनदान दिया, वो वाकई में साबित करता है कि डॉक्टर भगवान का दूसरा रूप हैं. मेरे परिजन भी मेरे इस सफल ऑपरेशन के बाद खुश हैं. उन्होने मुझे लिवर डोनेट किया.
-: काली बाई, उपचारित रोगी
टीम का रहा योगदान
मुख्य लिवर ट्रांसप्लान्ट सर्जन डॉ. नैमिश मेहता के निर्देशन में , डॉ. विनय कपूर, डॉ. अजय शर्मा, डॉ. आर. पी. चौबे, डॉ. आनन्द नागर, डॉ. शाश्वत सरीन, डॉ. विनय महला, डॉ. अरविन्दो कुमार दास, हिपेटोलोजिस्ट डॉ. विवेक आनन्द सारस्वत, डॉ. करण कुमार, निश्चेतना विशेषज्ञ डॉ. गणेश निमझे, डॉ. गौरव गोयल, डॉ. विपिन तथा कोर्डिनेटर आर्यन माथुर इसमें प्रमुख सहयोगी रहे।
कभी ऑर्गन फेलियर के चलते, तो कभी एक्सीडेंट के कारण ऑर्गन ट्रांसप्लांट जरूरी होता है, पर हर वर्ष लाखों लोगों की मृत्यु सिर्फ इसलिए हो जाती है, क्योंकि उन्हें कोई डोनर नहीं मिल पाता। इतनी बड़ी आबादी वाले हमारे देश में ऑर्गन डोनेट करने वालों की कमी के चलते अकसर लोग असमय चले जाते हैं। इस स्थिति को अंगदान करके टाला जा सकता है। चिकित्सा क्षेत्र में इस विषय पर काफी तकनीक विकसित हो चुकी है, बस जरूरत है तो अंगदान के लिए लोगों में जागरूकता की. 1 व्यक्ति अंगदान करके 8 लोगों का नया जीवनदान दे सकता है.
-: डॉ. विकास स्वर्णकार, चेयरपर्सन, महात्मा गांधी अस्पताल