कोरोना के खिलाफ चल रही जंग में मिथक तोड़ नायाब उदाहरण बन रहे निजी अस्पताल और चिकित्सक


मुंबई (ऋचा मिश्रा). कोरोना वायरस का खतरा इस कदर है कि सिर्फ सरकारी डॉक्टर और स्टाफ ही इससे दो-चार होते दिखाई दे रहे हैं. अधिकांश प्राइवेट अस्पताल ऐसे हैं जो संकट की इस घड़ी में दूर भाग खड़े हुए हैं. कोरोना का इलाज तो छोड़िए सामान्य रोगियों को देखने से भी कई चिकित्सकों ने मना कर दिया है. हालात यह है कि जिस वक्त देश को उनकी जरूरत है उस वक्त अस्पताल मलिक नदारद दिखाई दे रहे हैं. जबकि उन्होंने इसी देश के राज्य और केंद्र सरकारों से रियायती जमीनें, अन्य सुविधाएं भी ले रखी हैं.

पर ऐसा नहीं है कि हर प्राइवेट अस्पताल या डॉक्टर ऐसा कर रहा है. कुछ ऐसे भी है जिन्होंने संकट की इस घड़ी में सरकार और जनता के लिए अपनी सेवा को समर्पित किया है. कहीं अस्पतालों द्वारा निशुल्क जरूरतमंदों के खाने की व्यवस्था की जा रही है तो कुछ अस्पतालों ने मरीजों की देखभाल और उनके दवाओं तक की भी निशुल्क व्यवस्था की है. अपवाद स्वरूप सेवा को समर्पित कुछ निजी अस्पतालों ने अपने यहां क्वारेंटाइन और आइसोलेशन वार्ड बनाने में रुचि दिखाई है, सरकार की आवश्यक मदद भी ये अस्पताल कर रहे हैं.

प्राइवेट अस्पतालों से जुड़ा एक अच्छा उदाहरण राजस्थान के महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में देखने को मिल रहा है. जो लोग कोरोना के डर और लॉकडाउन के चलते अस्पताल नहीं जा पा रहे हैं, उन लोगों को अब घर बैठे ही चिकित्सीय परामर्श की निशुल्क सेवा दी जा रही है. मरीज़ों को आ रही मुश्किल को देखते हुए निशुल्क टेली कॉन्सल्टेशन सेवा प्रारम्भ की है, जिसमें कई डॉक्टर दिन रात अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इसके तहत स्वास्थ्य समस्या से पीड़ित व्यक्ति अपनी समस्या से सम्बंधित विशेषज्ञ से फ़ोन पर सामान्य कॉल या वीडियो कॉल से परामर्श प्राप्त कर सकते हैं. इसके अधीन फिजिशन, प्रसूता, शिशु और बाल रोग, चर्म, नाक-कान-गला आदि से लेकर कैन्सर और न्यूरो सम्बंधित विषमताओं के 12 विभाग द्वारा लगातार निशुल्क परामर्श दिया जा रहा है. हालांकि, अस्पताल प्रशासन का कहना है के ये सेवा उन रोगी अथवा व्यक्तियों के लिए है जो सामान्य प्रकार की स्वास्थ्य समस्या है, आपातकालीन समस्याओं के लिए फ़ोन पर परामर्श से निदान सम्भव नहीं. आपातकालीन सेवाओं के लिए रोगी एम्बुलेंस द्वारा सीधे अस्पताल आ सकते हैं जहाँ ये सेवा सुचारु हैं.

बड़ी बात यह है कि अस्पताल भले ही जयपुर में संचालित है लेकिन देश और दुनिया के किसी भी कोने में बैठा हुआ कोई भी भारतीय व्हाट्सएप वीडियो कॉल या अन्य माध्यमों से अस्पताल द्वारा उपलब्ध कराए गए नंबरों पर संपर्क कर निशुल्क चिकित्सकीय सेवाएं ले सकता है. भले ही फ़ोन परामर्श को व्यक्तिगत परामर्श का विकल्प नहीं माना जा सकता लेकिन मौजूदा हालात में यह सेवा एक बड़ी राहत लोगों को दे रही है, ख़ासकर उन लोगों को जिन्हें अस्पताल जाने के लिए उपयुक्त साधन नहीं मिल पा रहे.

महात्मा गांधी अस्पताल के चेयरमैन डॉक्टर विकास स्वर्णकार का मानना है कि 'जीवन में पैसे कमाने का कोई अंत नहीं है, आज देश और आवाम को हमारी जरूरत है, हमें जरूरतमंद देशवासियों की सेवा के लिए जेब से भी पैसा लगाना पड़े तो हम तैयार हैं, इसमें कोई संकोच नहीं करेंगें. जब तक कोरोना के खिलाफ जंग जारी है तब तक हम पीछे हटने वाले नहीं. क्योंकि यही वो देश है जिसने हमें बहुत कुछ दिया और इस देश के प्रति अपना फर्ज निभाने का इससे अच्छा मौका कोई और हो नहीं सकता. इसीलिए घर बैठे लोगों की मदद के लिए हमने ये कदम उठाया है. जिसका रोजाना हज़ारों लोग लाभ ले रहे हैं.'

उधर मुंबई के हिंदुजा अस्पताल ने भी साफ कहा है कि वह कोरोना महामारी से निपटने के लिए किसी भी स्तर पर अपनी सेवाएं देने के लिए हम तैयार हैं. संकट की घड़ी में हिंदुजा हॉस्पिटल हर संभव मदद सरकार और जनता की करेगा.

मुंबई में हिन्दुजा हॉस्पिटल के CEO गौतम खन्ना कहते हैं, 'हमें इस वैश्विक महामारी की चुनौती से निपटने के लिए तैयार रहना होगा. हमने Covid19 पॉजिटिव मरीजों के लिए अलग आइसोलेशन वार्ड तैयार किए हैं. साथ ही संदिग्ध मरीजों के लिए भी. ऊंचे खतरे वाले मरीजों को भी अलग वार्ड में रखा जाएगा. ये सब सरकार के दिए दिशा-निर्देशों के मुताबिक है. हमें अपने स्टाफ को भी PPEs (पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट्स) के लिए ट्रेंड करना है, साथ ही नीतिगत बदलाव भी.'

ऐसा ही एक ताजा उदाहरण जयपुर के यूरोलॉजी विशेषज्ञ डॉक्टर अनिल शर्मा का है जो स्त्री रोग विशेषज्ञ अपनी पत्नी डॉक्टर आनन्दी शर्मा के साथ मिलकर जरूरतमंदों को निशुल्क सेवाएं दे रहे हैं. इतना ही नहीं बहुत आवश्यक होने पर उनकी पत्नी और वो खुद बीमार व्यक्ति के घर भी पहुंच रहे हैं, जिसका कोई सेवा शुल्क भी नहीं ले रहे. कोरोना संक्रमण से ज्यादा दोनों की चिंता इस बात की है कि कैसे तुरंत जरूरतमंदों को इलाज मिले, किसी को भी इलाज़ के अभाव में अपनी जान न गवानी पड़े.

डॉक्टर अनिल शर्मा और उनकी पत्नी डॉक्टर आनंदी शर्मा का मानना है कि 'लॉकडाउन और कोरोना के भय से अब अन्य बीमारियों को नजरंदाज़ करने की आवश्यकता नहीं है. कई बार देखा जाता है के लम्बे समय तक अनदेखी करने से आम स्वास्थ्य समस्या भी गम्भीर रूप ले लेती हैं, इसीलिए फोन परामर्श सुविधा से अब जख़्म को नासूर बनने से रोकने में सहायता के लिए हमनें कोरोना महामारी और लॉक डाउन के बीच जरूरतमंदों की मदद के लिए निशुल्क चिकित्सा सेवा का फैसला किया है. ज्यादा जरूरत है तो खुद मरीजों के घरों तक पहुंच रहे हैं.'

यह कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो प्राइवेट अस्पतालों और निजी चिकित्सकों को लेकर कोरोना महामारी के इस दौर में बने मिथक के बीच एक अच्छा उदाहरण पेश कर रहे हैं. भारत में ऐसे और भी कई अस्पताल या डॉक्टर हो सकते हैं. पर यह वक्त संकट का है और इन उदाहरणों से वह चिकित्सक या प्राइवेट अस्पताल भी प्रेरणा लें जो अब तक कोरोना से चल रहे युद्ध की इस घड़ी में देश के साथ खड़े होने के बजाय खुद को 'निजी स्वार्थ के आइसोलेशन' में रखे हुए हैं.