गहलोत-पायलट की लड़ाई में CM पद के लिए भंवर जितेन्द्र सिंह का नाम चर्चा में, जानें इसके 10 बड़े कारण!


जयपुर. राजस्थान की सियासत में उठापटक के बीच नित नई राजनीतिक थ्योरी सामने आ रही है. इनमें कुछ अफवाहें हैं तो कुछ इतनी मजबूत कि किसी सच से कम नहीं लग रही. कोर्ट, कचहरी, पुलिस, खरीद फरोख्त, आरोप प्रत्यारोप, बाड़ेबंदी, बगावत के बीच राजस्थान सरकार को बचाने के लिए कांग्रेस में हर रोज एक नया फॉर्मूला सामने आ रहा है. इस बार इसी फॉर्मूले से एक नाम सामने आया है, और वो नाम है अलवर क्षेत्र के कद्दावर युवा कांग्रेस नेता भंवर जितेन्द्र सिंह का.

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बताया जा रहा है कि आलाकमान इस बात पर मंथन में जुटा है कि अगर पायलट के साथ बगावत पर उतरे नेताओं को संतुष्ट रखना है, सरकार बचानी है और गहलोत खेमे के भी स्वाभिमान की रक्षा हो सके तो कोई बीच का रास्ता निकाला जाए. वैसे नम्बर गेम में अभी तक अशोक गहलोत अनिश्चितता के भंवर में जरुर हैं लेकिन मजबूत भी हैं. पायलट खेमे ने भले ही तीस विधायकों का दावा कर दिया हो लेकिन अभी तक तीस की संख्या कहीं नजर नहीं आई. इससे इतर अशोक गहलोत बहुमत के आंकड़े पर हैं इसमें कोई दो राय नहीं.

हालांकि फिर भी आशंकाएं ऐसी है कि यदि फ्लोर टेस्ट होता है एक छोटी सी गलती कांग्रेस के हाथ से सियासत सरका सकती है. सीपी जोशी, शांति धारीवाल, बीडी कल्ला, रघु शर्मा जैसे नामों के बाद गहलोत-पायलट से अलग कोई नाम इस वक्त आलाकमान को सबसे मजबूत नजर आ रहा है तो वह है भंवर जितेन्द्र सिंह. वैसे हाल में 2014 को लोकसभा चुनाव भंवर जितेन्द्र सिंह हार चुके हैं और विधानसभा के वो वर्तमान में सदस्य भी नहीं हैं. पर माना जा रहा है कि आलाकमान और भंवर जितेन्द्र के बीच इस मसले पर मुलाकात हो चुकी है.

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बताया जा रहा है गहलोत और पायलट की सहमति के बिना ऐसा कोई निर्णय नहीं होगा लेकिन यह सब तब होगा जब बगावत पर उतरे सचिन पायलट वापस सरकार के साथ आ जाएं. भंवर जितेन्द्र सिंह गांधी परिवार के भी भरोसेमंद युवा क्षत्रप माने जाते हैं और राहुल गांधी से उनका याराना किसी से छुपा नहीं है.

इन सबके बीच भंवर जितेंद्र चाहते हैं कि किसी भी तरह से मौजूदा सरकार की यथावत स्थिति बनी रहे. जितेंद्र सिंह ने साफ कर दिया है कि उनका पीएम बनना या ना बनना महत्वपूर्ण नहीं है. पहले पार्टी का हित है. इस मामले में अशोक गहलोत और पायलट दोनों के संपर्क में रहते हुए एक अच्छे संकटमोचक की भूमिका में भी भंवर जितेंद्र है.

 

भंवर जितेन्द्र के मजबूत पक्ष:


1- गांधी परिवार, खासकर राहुल गांधी का 'मिस्टर भरोसेमंद' चेहरा.


2- सुलझे हुए विचारों का व्यवहार कुशल चेहरा. राजघराने से ताल्लुक रखने के बावजूद जमीनी नेता.


3- ना गहलोत गुट में ना पायलट गुट में. ना ही किसी अन्य गुटबाजी में.


4- गहलोत और पायलट दोनों ही नेताओं से अच्छा दोस्ताना, दोनों खेमों के विधायकों पर अच्छी पकड़.


5- राजपूत चेहरा, जिससे कांग्रेस को बीजेपी के वसुंधरा राजे और गजेन्द्र सिंह शेखावत जैसे चेहरे के सामने एक मजबूत चेहरा मिलेगा.


6- हाल में आनंदपाल केस के बाद सीबीआई चार्जशीट जारी होने के बाद राजपूत समाज में जो नाराजगी बीजेपी के खिलाफ है उस मौके को कांग्रेस इस चेहरे से भुना सकती है, और राजपूत वोट बैंक मजबूत कर सकती है.


7- सीपी जोशी, शांति धारीवाल, बीडी कल्ला, रघु शर्मा कोई भी ऐसा नाम नहीं जिसकी अभी भंवर जितेन्द्र जितनी पकड़ गांधी परिवार में हो. सीपी जोशी कभी राहुल गांधी के बेहद करीबी थे लेकिन 'अब वो बात नहीं.'


8- आर्थिक रुप से सक्षम और मजबूत चेहरा.


9- लम्बा राजनीतिक अनुभव.1998 में अलवर से विधानसभा का कांग्रेस से चुनाव जीते. 2003 में विधानसभा का अलवर से चुनाव कांग्रेस से जीते. वर्ष 2007 में एआईसीसी का सचिव बनाया. 2009 में लोकसभा के चुनाव में अलवर से कांग्रेस से सांसद बने. 2011 में पहली बार केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री रहे. 2012 में गृह रक्षा राज्य मंत्री व युवा मामलात और खेल का स्वतंत्र प्रभार का मंत्री रहे.


10- अच्छे पढे लिखे, मसूरी स्थित विन वर्ग एलएन स्कूल से प्रारंभिक अध्ययन. दिल्ली विश्वविद्यालय बीकॉम किया. जर्मनी में ऑटो मोबाइल इंजीनियर का कोर्स किया.


हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सियासत में किसकी लॉटरी कब लग जाए? यह कहा नहीं जा सकता लेकिन जिस मजबूती से नए फॉर्मूले में यह नाम चर्चा में आया है वो काफी हद तक अन्य चेहरों से मजबूत नजर आता है. हालांकि अभी भी गहलोत कांग्रेस के मुख्यमंत्री चेहरे के तौर पर राजस्थान में नम्बर वन पर हैं पर यदि गहलोत और पायलट की इस वर्चस्व की लडाई को समाप्त कर कांग्रेस को राजस्थान में सरकार बचानी है तो यह विकल्प अन्य नामों से काफी मजबूत नजर आ रहा है.