नाले के गंदे पानी से बनाई बीयर, बाजार में आते ही 'आउट ऑफ स्टॉक'


स्टॉकहोम (स्वीडन). जरा सोचो जब आपको पता चले की जिस नाले के गंदे और बदबूदार पानी से आप कोसों दूर भागते हैं, उसी पानी से बनी हुई बीयर आपने गटकी है, तो आप पर क्या बीतेगी? आपको यह अपने जीवन का सबसे बड़ा अपराध लगने लगेगा, खुद को माफ नहीं कर पाओगे, खासकर उस दोस्त या दुकानदार को जिसने आपको ऐसी बीयर ऑफर की और बडे ही चाव से आपने उसको पिया. लेकिन घबराने की जरुरत नहीं है. असल जिंदगी में अब ऐसी ही बीयर बाजार में आ चुकी है. और इतनी पॉपुलर हुई है कि मार्केट में आते ही 'आउट ऑफ स्टॉक' भी हो गई.

दरअसल इस बीयर को बनाने का मकसद दुनियाभर में पीने की पानी कमी को रोकने, जल संरक्षण को बढावा देने और उसके रिसाइकलिंग पर जोर देने के लिए यह तरीका खोजा गया. स्वीडन में नाले के गंदे पानी को रिसाइकल करके ऐसी ही बीयर तैयार की गई है. इस बीयर को दुनिया की मशहूर बीयर कंपनी कार्ल्सबर्ग, न्यू कार्नेगी ब्रुअरी और IVL स्वीडिश एनवायरमेंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट ने तैयार किया है. और तो और लोगों का मालूम था कि यह गंदे नाले के पानी से तैयार की गई थी लेकिन पहले लॉट में जितनी भी बीयर तैयार की गई है, वो बिक गईं और आउट ऑफ स्टॉक भी हो गई.

हालांकि कंपनी के मुताबिक ये नाले के पानी से बनी होने के बावजूद शुद्ध है. नाले के पानी से बियर बनने के लिए कई प्रक्रियाओं का सहारा लेना पड़ा. सबसे पहले नाले के पानी को फिल्टर (Filter) किया गया. उसके बाद पानी लैब में टेस्ट किया गया और फिर इसे बीयर बनाने वाली कंपनी को दिया गया. तब जाकर इस पानी को हॉट बीयर के रूप में तैयार किया गया. रिसाइकल पानी कंपनी को दिए जाने के बाद चार हफ्ते में सीवेज वाटर से बनी दुनिया की पहली बियर तैयार हुई. नाले के पानी से बनी इस बियर का नाम PU:REST रखा गया है.

इस बियर को इसी साल मई में लॉन्च किया गया था. अब तक छह हजार लीटर ऐसी बीयर बाजार में बेची जा चुकी है. कार्ल्सबर्ग बीयर बनाने वाली कंपनी ने बताया कि सीवेज वाटर से यह दुनिया की पहली बीयर तैयार की गई है. इस बियर की डिमांड इतनी ज्यादा है कि पहले प्रोडक्शन के तुरंत बाद ही सभी स्टोर से बीयर बिक गई.

रिसाइकल कंपनी से जुड़े फिलिप्सन कहते हैं कि दुनिया में इनोवेशन बेहद जरूरी है. ये एक अच्छा तरीका है और इस आइडिया से खुले दिमाग से इनोवेशन को आगे बढ़ाया जा सकता है.

क्या है मकसद?

क्लीन वाटर प्रोसेस से जुड़े IVL के प्रोजेक्ट मैनेजर स्टैफेन फिलिप्सन के मुताबिक यह जल संरक्षण और उसके री-यूज के तरीके को प्रेरित करने का एक तरीका मात्र और जिसके मार्फत लोगों की सोच को बदलने का प्रयास किया गया है. स्टैफेन फिलिप्सन कहते हैं कि 'बर्बाद हो चुके पानी को रिसाइकल करके दोबारा पीने लायक बनाने के बाद भी इसे स्वीकार न कर पाने की प्रवृत्ति बेहद ज्यादा है. जबकि देखा जाए तो तकनीकी तौर पर इस पानी को पीने से कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन इसे मानसिक तौर पर स्वीकार कराना ज्यादा बड़ा टास्क है. ऐसे में डेढ साल पहले उन्हें नाले के पानी को बीयर के जरिए उपयोग करने का ख्याल आया. कार्ल्सबर्ग कंपनी के लोगों ने इस आइडिया को काफी पसंद किया और वो इसका हिस्सा बनने के लिए राजी हो गए. जिसके बाद नाले के पानी से जल संरक्षण और री यूज का संदेश देने के लिए यह बीयर तैयार की गई.'

वहीं IVL एक्सपर्ट रुपाली देशमुख की माने तो 'रिसाइकल बीयर बिल्कुल साफ है. रुपाली कहती हैं कि इसमें सिर्फ एक साइकोलॉजिकल दिक्कत है, जो लोगों को स्वीकार नहीं कर देती कि ये पानी कहां से लिया गया है. उन्होंने ये भी कहा कि IVL बीयर बेचने के बिजनेस में नहीं है. हमारा योगदान सिर्फ इस बात के लिए है कि पानी का रिसाइकल करके हर तरह की चीजों में इस्तेमाल किया जा सकता है.'