वो 10 वजह जिनकी गांधी परिवार ने की अनदेखी और हाथ से निकल गए सिंधिया, हो गए कमल'अनाथ


नई दिल्ली. 25 नवंबर 2019, याद करें उस दिन को, जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने ट्वीटर हैंडल का बायो अचानक बदल दिया था और खुद के कांग्रेसी होने के परिचय की जगह खुद को सिर्फ जनसेवक और क्रिकेट प्रेमी बताने वाला बायो अपडेट किया था. उसी वक्त साफ हो गया था कि कांग्रेस और सिंधिया के बीच सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. सोशल मीडिया यूजर्स ने उसी वक्त सिंधिया के पार्टी छोड़ने की कयास लगा ली थी.

कई मौके ऐसे भी आए जब सिंधिया ने पीएम मोदी के फैसलों का स्वागत किया. और कई मौके ऐसे भी आए पिछले एक साल में जब उन्होंने अपनी ही पार्टी की कमलनाथ सरकार की आलोचना की. एक के बाद एक हो रहे घटनाक्रमों का नतीजा यह हुआ कि ज्योतिरादित्य सिंधिया 10 मार्च को जब भारत में होली की खुशियां मनाई जा रही थी तब कांग्रेस को ऐसा झटका दे दिया कि कांग्रेस संभलती उससे पहले ही पासा पलट गया और रंग में भंग हो गया. कांग्रेस के लिए यह राजनीतिक आपदा ऐसी थी कि मध्यप्रदेश से 10 जनपथ तक सिर्फ सिंधिया के ही चर्चे थे. सिंधिया और उनके खेमे के 22 कांग्रेस विधायकों ने इस्तीफे दे दिए. और नतीजा यह रहा कि सिर्फ 15 महीने पुरानी कमलनाथ सरकार को सोशल मीडिया यूजर्स 'कमल'अनाथ' सरकार कहने लगे.

क्या कांग्रेस पार्टी और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच सब ठीक चल रहा है? यह सवाल कई बार उठा लेकिन ना तो मध्यप्रदेश में, और ना ही गांधी परिवार में इस सवाल का जवाब जानने और उसके समाधान के लिए समय रहते कोई कदम उठाया, नतीजा आज सबके सामने है.

वो दस कारण जिन पर गांधी परिवार और कांग्रेस समय रहते ध्यान देते तो आज सिंधिया कांग्रेस के हाथ से फिसलते नहीं और कमलनाथ को सोशल मीडिया यूजर्स कमल'अनाथ नहीं कहते.

 

10 कारण जो कांग्रेस को ले डूबे:

 

1- मध्यप्रदेश CM ना बनने का गम:

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव-2018 में ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार माना जा रहा था. कमलनाथ इस वक्त प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थे और सिंधिया को चुनाव अभियान समिति का प्रमुख बनाया गया था. उनकी सभाओं और भाषणों को लेकर जबरदस्त उत्साह देखने को मिला, जिसका नतीजा चुनाव परिणामों में भी दिखा. लेकिन जीत के बाद कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को ना तो मुख्यमंत्री बनाया और ना ही कोई सम्माननीय पद दिया. जिससे सिंधिया खेमा खासा नाराज था.

 

2- प्रदेशाध्यक्ष बनाने में अनदेखी:

लोकसभा चुनावों में मध्यप्रदेश में भी मोदी लहर देखने को मिली जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी परांपरिक संसदीय सीट गुना-शिवपुरी से चुनाव हार गए. विधानसभा चुनावों में जीत के बाद सीएम नहीं बनाए जाने और लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद सिंधिया चाहते थे कि किसी भी सूरत में वो मध्यप्रदेश की राजनीति में सक्रिय रहें. इस बीच उनके मन में लोकसभा चुनावों से पहले मध्यप्रदेश अध्यक्ष बनने की मंशा थी और उनके समर्थक भी ऐसा ही चाहते थे लेकिन लगातार इंतजार के बावजूद कांग्रेस ने सिंधिया को प्रदेशाध्यक्ष बनाने पर कोई निर्णय नहीं लिया. बल्कि उन्हें पश्चिमी यूपी का प्रभारी बना दिया गया, उधर वो अपनी गुना की सीट हार गए. ऐसे ज्योतिरादित्य सिंधिया की नाराजगी लगातार बढती गई क्योंकि उनके पास कोई बड़ी जिम्मेदारी भी नहीं थी.

 

3- गांधी परिवार से टूटी उम्मीदें:

25 नवंबर 2019 जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने ट्वीटर हैंडल का बायो अचानक बदला तो उनको हल्के में लिया गया. उनसे बातचीत कर नाराजगी जानने का प्रयास नहीं किया गया. गांधी परिवार के स्तर पर जो प्रयास किए जाने थे वो नहीं हुए नतीजा दूरियां बढती गईं. ऐसे में सिंधिया को लगा कि मध्यप्रदेश में भले ही कमलनाथ सरकार उनकी अनदेखी कर रही हो लेकिन जिस गांधी परिवार के भरोसे वो लगातार संयम बरते हुए थे और सबकुछ ठीक होने की उम्मीद कर रहे थे उस बीच खुद को असहाय सा महसूस करने लगे.

 

4- दिग्विजय सिंह को तवज्जो:

कांग्रेस सरकार बनने के बाद मध्यप्रदेश में जितनी तवज्जो और सम्मान दिग्विजय सिंह को दिया जा रहा था उतना सिंधिया को नहीं. जबकि सरकार बनाने में सिंधिया की भूमिका, मेहनत अहम थी. उनके चेहरे को आगे रखकर कांग्रेस चुनाव मैदान में गई लेकिन ना तो उनको सरकारी कार्यक्रमों में बुलाया जाता था ना ही पार्टी के कार्यक्रमों में सम्मानपूर्वक आमंत्रित किया जाता था. बल्कि उनकी छवि पार्टी विरोधी बनाने का प्रयास उनके विरोधी खेमे के कांग्रेसी लगातार कर रहे थे. इन शिकायतों पर गांधी परिवार समाधान करने के बजाए मौन बैठा रहा. आलम यह था कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को जहां केवल ग्वालियर-चंबल क्षेत्र तक ही सीमित रखा गया वहीं दिग्विजय सिंह को कमलनाथ ने अपनी सरकार में दखल देने की पूरी छूट दे रखी थी. दिग्विजय सिंह कई बार मंत्रियों की बैठक लेकर उन्हें दिशा निर्देश देते नजर आते थे. ट्रांसफर, पोस्टिंग में दिग्विजय की चलती थी. सिंधिया ने इस बात पर भी नाराजगी जताई थी कि मध्यप्रदेश सरकार में दिग्विजय सिंह का दखल कुछ ज्यादा ही है. पर पार्टी इस समस्या का समाधान नहीं कर पाई.

 

5- मोदी का समर्थन, और नाराजगी:

जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने पर सिंधिया ने मोदी का समर्थन किया. सिंधिया की ओर से यह सिर्फ एक मैसेज देने की राजनीति थी जिसका मकसद था कि आलाकमान समय रहते मध्यप्रदेश के हालातों और उनकी अनदेखी बंद करे लेकिन उनके इस बयान के बाद पार्टी के ही वरिष्ठ नेताओं ने उनकी आलोचना की और दूरी बना ली. गांधी परिवार ने भी इस नाराजगी के समाधान के बजाए सिंधिया से दूरी बना ली. जबकि जब यह घाव बढ रहा था तभी इसका इलाज किया जाना था.

 

6- राहुल-सोनिया की हठधर्मिता:

सिंधिया इतने हलके नेता नहीं थे कि उन्हें सोनिया और राहुल गांधी मिलने का वक्त ना दें या उनकी अनदेखी कर सकें. बावजूद इसके ऐसा ही हुआ. एक तरफ चुनावों में लगातार हार के बाद राहुल गांधी के इस्तीफा देने और सोनिया गांधी के अंतिरम अध्यक्ष बनने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया केन्द्रीय नेतृत्व में अकेलापन महसूस कर रहे थे तो दूसरी तरफ अपनी बात रखने के लिए उनको सोनिया गांधी से कई मौकों पर समय नहीं मिल पाया. इस बीच कमल नाथ और दिग्विजय सिंह का कद लगातार बढता जा रहा था, वो आलाकमान तक अपनी बातें पहुंचा रहे थे. राहुल गांधी, प्रियंका गांधी के सामने बात रखी लेकिन वो निर्णय लेने की स्थिति में नहीं थे. सोनिया गांधी अपने वरिष्ठ पुराने नेताओं पर कुछ ज्यादा ही भरोसा करती रही, जबकि वो नेता सिंधिया जैसे युवा चेहरे की की सोनिया से नजदीकी नहीं चाहते थे. ऐसे में सिंधिया को लगा जो गांधी परिवार कभी उनका खास हुआ करता था उसने उनकी अनदेखी शुरु कर दी है.

 

7- सरकार और पार्टी दोनों में अनदेखी:

खास बात यह रही कि ना केवल सरकार के निर्णयों में बल्कि पार्टी से जुड़े फैसलों में भी सिंधिया की अनदेखी की जा रही थी, जिससे उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंच रही थी. प्रदेश के साथ-साथ पार्टी के फैसलों में भी सिर्फ कमलनाथ और दिग्विजय सिंह भी हावी थे, आलाकमान ने समय रहते हस्तक्षेप नहीं किया. ज्योतिरादित्य सिंधिया और सोनिया गांधी के बीच अकेले में मुलाकात के लिए तारीखें भी इस मसले को सुलझाने के लिए तय होती रहीं लेकिन सोनिया ने मुलाकात को तवज्जो नहीं दी. और ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी में अपने मन की बात सक्षम स्तर पर ना कह पाने से घुटन महसूस कर रहे थे. और तो और वो मध्यप्रदेश से राज्यसभा में जाना चाहते थे लेकिन इसमें कांग्रेस के ही नेताओं ने रोड़ा अटकाया और भाजपा तुरंत इस डील के लिए तैयार हो गई.

 

8- समर्थक मंत्रियों को प्राथमिकता नहीं:

आरोप है कि सिंधिया के समर्थक मंत्रियों की अनदेखी और अपमान कमलनाथ कर रहे थे. नतीजा यह निकला की सिंधिया समर्थक कई मंत्रियों ने जून 2019 में अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. एक बैठक में मुख्यमंत्री कमल नाथ के सामने ही दो मंत्रियों ने हंगामा किया. जिसके बाद से ही सरकार खेमों में बंट गई. बताया जाता है कि मामला इतना बढ गया कि सिंधिया खेमे के एक मंत्री ने पूरा घटनाक्रम ज्योतिरादित्य सिंधिया को जब मोबाइल ऑन रखकर सुनाया था, तो उसमें कमलनाथ ने मंत्री से ये भी कहा था कि 'आप यहां से जाइए आपको रोका किसने है, मुझे पता है यह किसके इशारे पर कर रहे हैं.' सिंधिया समर्थक मंत्रियों के स्टाफ में ऐसे अधिकारी कमलनाथ ने लगाए तो मंत्रियों की सुन नहीं रहे थे, उनके काम की स्वतंत्रता में बाधा आ रही थी. अधिकारियों के तबादलों और पोस्टिंग तक में मंत्रियों की राय नहीं ली जा रही थी. सिंधिया खेमे के मंत्रियों की वित्तीय स्वीकृति वाली फाइलों को अटकाया जा रहा था.

 

9- किसान कर्जमाफी और नाराजगी:

ज्योतिरादित्य सिंधिया किसानों की कर्जमाफी को लेकर भी नाराज थे. उन्होंने कमलनाथ सरकार पर हमला बोलते हुए यह तक कह दिया था कि हमने 2 लाख रुपए तक के किसानों की कर्जमाफी का वादा किया था लेकिन उनका केवल 50 हजार रुपए ही कर्ज माफ हुआ. इसके अलावा बाढ़ राहत राशि के लिए सर्वे और बिजली कटौती, अफसरों के आए दिन हो रहे तबादले-पोस्टिंग को लेकर भी कमलनाथ सरकार पर निशाना साधा था. किसानों के एक मामले में तो उन्होंने खुद मांगे नहीं माने जाने पर सड़कों पर उतरने का ऐलान कर दिया था, जिस पर कमलनाथ का रिएक्शन भी सिंधिया को नागवार गुजरा.

 

10- बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक, कांग्रेस को भनक तक नहीं:

भाजपा इस नाराजगी पर लगातार नजरें रखे हुए थीं और उन्होंने इसका पूरा फायदा उठाते हुए बेहतर पॉलिटिकल मैनेजमेंट का परिचय देते हुए बिना समय गवाए ज्योतिरादित्य सिंधिया से सम्पर्क में रही, लगातार उनको यह अहसास कराते रही कि जो सम्मान उन्हे काबिल होने के बावजूद कांग्रेस में नहीं मिल रहा वो सम्मान भाजपा उन्हे देगी, इसके अलावा सूत्रों के मुताबिक एक ऐसा पैकेज भी उनकी भाजपा में एंट्री पर तय किया गया जिससे उनका सम्मान बना रहे, इसी के तहत उन्हे मध्यप्रदेश से राज्यसभा में एंट्री कराने के साथ केन्द्रीय मंत्रीमंडल में शामिल करने, उनके खेमे के लोगों को पूरा मान सम्मान देने का वादा किया गया, जब ज्योतिरादित्य भाजपा की कमिटमेंट से संतुष्ठ हो गए तो उन्होने भाजपा में एंट्री की लेकिन इन सबके बीच इस गुप्त बातचीन का पता लगाने में कांग्रेस विफल रही, जिससे समय रहते जो कदम उठाना था वो नहीं उठा पाई इतना ही नहीं कमलनाथ को ईगो उन्हे झुकने को तैयार नहीं होने दे रहा था जिसका नतीजा मध्यप्रदेश कांग्रेस सरकार अल्पमत में आ गई.