एक सरकारी स्कूल में पढ़ा हिंदी मीडियम युवा बना देश का टॉप IAS, पढें कौन है यह शख्स?


नई दिल्ली. बेटर इंडिया ने देश के टॉप टेन IAS की लिस्ट जारी की है. लिस्ट में असम कैडर के IAS अधिकारी राज यादव, तमिलनाडु कैडर के संदीप नंदूरी, छत्तीसगढ़ कैडर के अविनाश शरण, मध्यप्रदेश कैडर के आशीष सिंह के साथ राजस्थान कैडर के दो IAS अधिकारियों के नाम भी शामिल हैं. राजस्थान कैडर के IAS डॉ. जितेंद्र कुमार सोनी और अतहर आमिर खान का नाम भी इस लिस्ट में शामिल किया गया है. बेहतर काम, जवाबदेह और जिम्मेदार प्रशासन, नवाचार के साथ वंचितों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलवाने और सुशासन देने वाले अधिकारियों के नाम इस लिस्ट में शामिल किए गए हैं. इस लिस्ट में शामिल डॉ. जितेन्द्र सोनी के नाम का जिक्र खास तौर पर इसलिए किया जाना महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि अभावों में एक सरकारी और हिंदी मीडियम स्कूल में पले बडे होने के बावजूद सोनी ने देश और दुनिया में अपनी अलग पहचान स्थापित की. मुश्किलें भी बहुत आईं लेकिन डॉ. सोनी अपने हौसले कभी नहीं टूटने दिए क्योंकि वो जानते थे कि 'हौसले भी किसी हकीम से कम नहीं होते, हर तकलिफ में ताकत की दवा देते हैं.'

 

"कभी मजबूरियों को रोना रोने में विश्वास मत करो. जो खो गया, उसका रोना रोने के बजाए अपने प्रयासों से लक्ष्यों को और मजबूती से पूरा करने का साहस जुटाओ. सपने देखो, तुरंत एक्शन लो और उन्हें पूरा कर दिखाओ. अपनी तमन्नाओं के पर फैलाओ चाहे लाख मुसीबतें आपका रास्ता रोके, उम्मीदों और संघर्ष के सहारे लगातार आगे बढ़ते जाओ."

-डॉ. जितेन्द्र सोनी, IAS

 

29 नवम्बर 1981 को हनुमानगढ के एक छोटे से गांव धन्नासर में मोहन लाल और रेशमा देवी सोनी के घर जन्मे डॉ. जितेन्द्र कुमार सोनी भारत देश के उन चुनिंदा अफसरों में शामिल हैं जिनके दिमाग से उपजा हर आइडिया चर्चा का विषय बनता है. उनका हर काम बोलता है. गरीब और असहाय उनकी योजनाओं के हमेशा केन्द्र बिंदु होते हैं. जवाबदेह और जिम्मेदार शासन की स्थापना उनका पहला लक्ष्य रहता है. इतना ही नहीं देश के जाने माने IAS होने के बावजूद गरीब बच्चों को निशुल्क पढाने, फुटपाथ पर गरीबों के साथ खाना खाने, असहायों के साथ उनका दुख दर्द बांटने और रिक्शे की सवारी में उन्हें कोई परहेज नहीं.

जितेन्द्र सोनी बताते हैं कि IAS बनकर विलासितापूर्ण जीवन जीना या लाल बत्ती की पावर का इस्तेमाल करना उनका लक्ष्य कतई नहीं रहा बल्कि वो हमेशा उस वर्ग को लाभ पहुंचाने के लिए IAS बनना चाहते थे जो अपने लिए दो वक्त की रोटी नहीं जुटा सकता था, जो उन सरकारी योजनाओं से वंचित रहता था जो खास तौर पर उसके लिए तैयार की जाती हैं. यही कारण रहा कि डॉ. सोनी को प्रशासनिक क्षेत्र में ई-गवरनेंस पुरस्कार, सीएसआई निहिलेंट ई- गवरनेंस अवार्ड, दिव्यांगजन हेतु विशिष्ट कार्यों के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार, विभिन्न सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों के लिए राज्य और केंद्र सरकार से अनेक सम्माननीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है. IAS डॉ. सोनी को 2016 में जालोर में आई बाढ़ के दौरान 8 लोगों की जान बचाने के लिए उत्तम जीवन रक्षा पदक से भी नवाजा गया था. उन्हें सुशासन के लिए प्रौद्योगिकी के बेहतर इस्तेमाल के लिए भी जाना जाता है.

दर्शनशास्त्र, राजनीति विज्ञान, पब्लिक पॉलिसी में एम.ए., बी.एस.सी, दर्शनशास्त्र में स्लेट, राजनीति विज्ञान में नेट-जे.आर.एफ., बी.एड, उर्दू में डिप्लोमा, सी.जी.एन.आर, राजनीति विज्ञान में पीएचडी की शिक्षा प्राप्त डॉ सोनी एक अच्छे काव्यकार भी हैं. उम्मीदों के चिराग, रणखार, यादावरी जैसी कई चर्चित रचनाएं उनके द्वारा लिखी गई. शिक्षा विभाग के काव्य संग्रह शब्दों की सीप का भी सम्पादन कर चुके हैं. राजस्थानी काव्य संग्रह 'रणखार' के लिए उन्हें साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के तौर पर झालावाड़, जालोर जिला कलेक्टर रहते हुए अपनी बेहतर परफोर्मेंस से खासी पहचान बनाई.

 

'चरण पादुका अभियान' से आए चर्चा में:

 

जालोर जिले में नंगे पांव स्कूल जाते बच्चों पर नजर एक दिन IAS और तत्कालीन जालोर कलेक्टर डॉ. जितेन्द्र सोनी की नजर पड़ी तो देश के इस भविष्य की पीड़ा को खुद की पीड़ा समझा. इस दिशा में काम शुरु किया और एक ऐसी योजना बनाई जिसके लागू होने के बाद ना केवल देश में बल्कि विदेशों में भी योजना को काफी सराहना मिली. सोनी ने बच्चों को मुफ्त जूते प्रदान करने के लिए 2015 में चरण पादुका अभियान के नाम से एक अभिनव योजना शुरू की. अब तक 1,50,000 से अधिक छात्रों तक चरण पादुकाएं पहुंच चुकी हैं. यह पहल इतनी जबरदस्त थी कि राजस्थान सरकार ने इसे पूरे प्रदेश में प्रभावी तरीके से लागू किया. और इस युवा IAS ने साबित कर दिया कि 'ख़्वाब टूटे हैं मगर हौंसले ज़िन्दा हैं, हम वो हैं जहां मुश्किलें शर्मिदा हैं.' पहल का मकसद सिर्फ एक था कि कोई भी बच्चा कितना भी गरीब हो नंगे पैर स्कूल ना जाए. इस पहल का ही असर है कि लाखों बच्चों को अब कड़कड़ाती सर्दी या कड़क धूप में नंगे पैर स्कूल नहीं जाना पड़ता. 'चरण पादुका अभियान' से न सिर्फ लाखों वंचित बच्चों की गैर-बराबरी को कम किया गया बल्कि इससे स्कूलों में उपस्थिति भी बढ़ी है.

"मेरा मानना ​​है कि सुशासन के प्रमुख घटक संवेदनशील प्रशासन, आउट ऑफ बॉक्स समाधान, नवीन सोच और नव-लोक प्रशासन हैं. मैं लाइन के सबसे दूर अंत में खड़े व्यक्ति को शिकायतों के निवारण के दौरान सबसे पहले प्राथमिकता दिए जाने का पक्षधर हूं. ताकि सबसे वंचित और सबसे ज्यादा जरुरतमंद को पहले लाभ दिलाया जा सके. महिलाओं, वरिष्ठ नागरिकों, बच्चों, अलग-अलग कौशल वाले और असहाय लोगों को सशक्त बनाया जाकर देश को आगे ले जाया जा सकता है. सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का उपयोग इसे सुनिश्चित करने में एक लंबा रास्ता तय करने में मददगार है."

- डॉ. जितेन्द्र सोनी, IAS