घर लौट रहे मजदूरों के रेलवे किराए का खर्च उठाएगी कांग्रेस, सियासत तेज


नई दिल्ली. कोरोना संकट के काल में भी भारत में सियासत के वार परवान पर हैं. ना बीजेपी ना ही कांग्रेस या अन्य कोई दल इस समय राजनीति से बाज आ रहा है. अब ताजा सियासत उन मजदूरों को लेकर परवान पर है जो लॉकडाउन के बीच फंस जाने से लम्बे समय पर रेल गाड़ियों से अपने घर लौट रहे हैं. दरअसल भाजपा की रेल गाड़ियां तो चला दी लेकिन केन्द्र सरकार ने रेल किराये का सारा खर्च मजदूरों से वसूलने का फैसला लिया.

महामारी से निपटने के लिए लागू किए गए लॉकडाउन में मजदूर लंबे वक्त से फंसे हुए थे. अब जब करीब एक महीने बाद उन्हें घर जाने की इजाजत मिली, तो केंद्र सरकार ने रेल किराये का सारा खर्च मजदूरों से वसूलने का फैसला लिया. इस पर राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गई है और अब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इसको लेकर बड़ा फैसला लिया है. कांग्रेस पार्टी सभी जरूरतमंद मजदूरों के रेल टिकट का खर्च उठाएगी.

सोनिया गांधी ने कहा कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी की हर इकाई हर जरूरतमंद श्रमिक व कामगार के घर लौटने की रेल यात्रा का टिकट खर्च वहन करेगी व इस बारे जरूरी कदम उठाएगी.

सोनिया गांधी ने बयान में कहा कि जब हम लोग विदेश में फंसे भारतीयों को बिना किसी खर्च के वापस ला सकते हैं, गुजरात में एक कार्यक्रम में सरकारी खजाने से 100 करोड़ रुपये खर्च कर सकते हैं, अगर रेल मंत्रालय प्रधानमंत्री राहत कोष में 151 करोड़ रुपये दे सकता है तो फिर मुश्किल वक्त में मजदूरों के किराये का खर्च क्यों नहीं उठा सकता है? कांग्रेस ने कहा कि 'सिर्फ चार घंटे के नोटिस पर लॉकडाउन लागू होने की वजह से देश के मजदूर अपने घर वापस जाने से वंचित रह गए. 1947 के बाद देश ने पहली बार इस तरह का मंजर देखा जब लाखों मजदूर पैदल ही हजारों किमी. चलकर घर जा रहे हैं. '

उधर सियासत यहीं कहां थमने वाली थी सोनिया गांधी के बयान पर केन्द्र ने पलटवार भी किया और रेल मंत्रालय ने साफ किया है कि मजदूरों के टिकट के लिए सिर्फ 15 फीसदी रुपए ही लिए जा रहे हैं, वह भी राज्य सरकार भुगतान करेंगी. सरकार ने यह साफ किया है कि इस सुविधा को केवल इसलिए बढ़ाया गया है ताकि लॉकडाउन के कारण फंसे हुए प्रवासी श्रमिक अपने गंतव्य तक पहुंच सकें. यह लॉकडाउन के दौरान पीड़ितों को आराम देने के लिए यह सीमित छूट थी.'

रेलवे ने यह भी साफ किया कि रेलवे इन प्रवासी ट्रेनों को चलाने की लागत का 85% खुद वहन कर रहा है. यह ट्रेनें सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराते हुए केवल 60 फीसदी यात्रियों को ही ले जा रही हैं. बहरहाल आरोप प्रत्यारो का दौर जारी है पर मजदूरों पर वोट बैंक को सहजने की सियासत में कोई पीछे नहीं है.