शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी का याराना नया नहीं बहुत पुराना है! 10 फैक्ट से समझिए आखिर कैसे?


महाराष्ट्र (सुभद्र पापड़ीवाल). क्या शिवसेना,एनसीपी और कांग्रेस का मेल सिर्फ मौका परस्ती का गठबंधन है! यह सवाल आज सबके जहन में है. या इन दलों के बीच सच में कुछ दशकों पुरानी गहरी जड़ें भी हैं जो आज संकट की घडी में महाराष्ट्र की महाभारत में साथ नजर आ रहे हैं. सवाल यह भी उठ रहे हैं कि क्या हिंदुत्व का विषय शिवसेना के जन्म और अंतरात्मा से जुड़ा है अथवा यह उनके लिए एक प्रोडक्ट की मार्केटिंग मात्र है.

शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के बीच पॉलिटिकल कैमैस्ट्री के दस रोचक तथ्य आपको बताएं उससे पहले जरा यह भी जान लें कि अपने उग्र हिंदुवादी तेवरों के लिए जानी जाने वाली शिव सेना को कांग्रेस के साथ गठबंधन में भी परहेज क्यों नहीं है. जब तक शरद पवार कांग्रेस में रहे तब भी बाला साहब ठाकरे को कांग्रेस से परहेज नहीं था, और कांग्रेस छोडकर एनसीपी बनाने के बाद भी परहेज नहीं रहा. ज्यादा पुराने इतिहास पर जाने के बजाए कुछ सालों पहले के घटनाक्रम ही देखें तो साफ हो जाएगा कि कई बारे ऐसे मौके भी आए ज​ब शिवसेना ने बीजेपी को आंख दिखा दी. एनडीए में रहने के बावजूद शिवसेना ने बीजेपी के साथ रहते हुए भी उसकी राजनीतिक लाइन से हटकर फैसले लिए, राष्ट्रीय राजनीति में धुर विरोधी पार्टी कांग्रेस का समर्थन किया.

2012 में राष्ट्रपति पद के चुनाव में शिवसेना ने एनडीए के उम्मीदवार पीए संगमा को बनाए जाने के बावजूद एनडीए में रहते हुए ही उसके खिलाफ कांग्रेस के प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया. जिसके बाद खुद प्रणब मुखर्जी ने शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे का उनके निवास स्थान पहुंचकर आभार जताया था. इतना ही नहीं 2007 में भी शिवसेना ने एनडीए के उम्मीदवार तत्कालीन उपराष्ट्रपति और बीजेपी के वरिष्ठ नेता रहे भैरोसिंह शेखावत का समर्थन ना करके कांग्रेस उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल को समर्थन दिया. और तो और कांग्रेस ने भी सियासती चलन का फायदा उठाते हुए राष्ट्रपति पद के दोनों चुनावों में शिवसेना का समर्थन लेने में जरा भी परहेज नहीं किया.

ऐसे ही हालात अब ​​फिर बने हैं और बीजेपी से अपना करीब 30 साल पुराना नाता तोड़कर एनसीपी और कांग्रेस से हाथ मिलाने में शिवसेना ने परहेज ​नहीं किया है. अब बात उठ रही है कि आखिर एनसीपी के शरद पवार और शिवसेना के ठाकरे परिवार का ऐसा क्या रिश्ता है कि पवार बीजेपी की परवाह किए बिना ही शिवसेना का तन, मन से समर्थन कर रहे हैं. कांग्रेस भी हर तरह से शिवसेना के साथ नजर आ रही है. इसको समझने के लिए आपको यह दस बडे फैक्ट जानना बेहद जरुरी हैं. जिससे साफ होता है कि शिवसेना का एनसीपी और कांग्रेस से दोस्ताना उपरी तौर पर भले ही नहीं पर अंदरुनी तौर पर बेहद पुराना है.

 

तीनों के बीच पॉलिटिकल कैमैस्ट्री से जुडे 10 फैक्ट:

1. शिव सेना का गठन 19 जून 1966 को हुआ था. 1971 में शिवसेना ने मोरारजी देसाई वाली कांग्रेस(O) जो इंदिरा गांधी के विरोध में थी, के साथ समझौता कर पांच सीटों पर पहली बार चुनाव लडा.

2. 1975 में जब इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई थी तो बाला साहेब ठाकरे ने उस कदम का समर्थन किया था. 31 अगस्त 1975 को बाल ठाकरे ने अपने मार्मिक अखबार में इमरजेंसी के पक्ष में लेख लिखा.

3. 1977 के आमचुनावों में शिवसेना ने खुलकर इंदिरा कांग्रेस के पक्ष में प्रचार किया और अपना उम्मीदवार नहीं उतारा. 1979 बी एम सी चुनाव में बाल ठाकरे ने मुस्लिम लीग के गुलाम मोहम्मद बनातवाला के साथ गठबंधन किया. असफल होने पर फिर से कांग्रेस के समर्थन में आए. 1980 में ए आर अंतुले के समर्थन के कारण अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारा.

4. 12 अप्रैल 1982 को बाल ठाकरे ने मार्मिक में कांग्रेस के समर्थन में लेख लिखा. 1982 में शरद पवार के साथ कपडा मिल मजदूरों के आंदोलन को समाप्त करने में सहयोग किया.

5. बाल ठाकरे का पाकिस्तान विरोध राजनैतिक था, सांप्रदायिक आधार पर तो कभी नहीं था. वे पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलने के सख्त खिलाफ थे लेकिन जावेद मियांदाद जो दाऊद के समधी हैं, उन्हें मातोश्री में भोजन पर बुलाने से उन्हें कोई गुरेज नहीं था.

6. 1988 में शरद पवार ने मुख्यमंत्री रहते हुए बाला साहेब ठाकरे और मातोश्री को खालिस्तानी आतंकियों की हिट लिस्ट होने की खूफिया एजेंसी की जानकारी दी और उनकी सुरक्षा का अतिविशिष्ट बंदोबस्त किया.

7. बाला साहेब ठाकरे शरद पवार को दिन में सार्वजनिक मंचों पर "आटे की बोरी" कह कर उपहास करते थे और शाम को उन्हें अपने घर भोजन पर बुलाते थे. यह बात खुद शरद पवार ने अपनी बायोग्राफी "ओन माई टर्म्स" में लिखी है.

8. बाला साहेब ठाकरे ने सन् 2007 और 2012 में राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल और प्रणव मुखर्जी का समर्थन किया था.

9. 2006 में जब शरद पवार ने अपनी पुत्री सुप्रिया सुले को राजनीति में उतारा और उसका राज्यसभा से नामांकन भरा तब बालासाहेब ठाकरे ने उसके विरुद्ध अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारा. यह आश्वासन दिया कि कमला बाई (ठाकरे ने भाजपा को यही नाम दें रखा था) की जिम्मेदारी मेरी है और साथ ही यह भी कहा कि सुप्रिया मेरी बेटी है.

10. सुप्रिया सुले के पति का नाम सदानंद भालचंद्र सुले है, जिनकी माता का नाम सुधा सुले है जो बाल ठाकरे की सगी बहन हैं.