CM गहलोत ने की राज्यपाल के बर्ताव पर PM से बात, तो राज्यपाल बोले विधानसभा सत्र संवैधानिक प्रावधानों के अनुकूल ही आहूत हो, सुझाए तीन बिंदू


जयपुर. राजस्थान के सियासी घमासान में राजभवन भी राजनीति का प्रमुख केन्द्र बन गया है. अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच शुरु हुई राजनीतिक वर्चस्व की जंग में केन्द्र सरकार, बीजेपी, कोर्ट, पुलिस, एसओजी, सीबीआई, ईडी सब शामिल हो चले हैं. और प्रयास इस बात के हैं कि किसी भी तरह से यह संकट निपटे लेकिन यह बढता ही जा रहा है. इसी कड़ी में सोमवार को एक बार फिर राज्यपाल ने विधानसभा सत्र बुलाने के लिए भेजे गए कैबिनेट नोट को कुछ संशोधनों के लिहाज से लौटा दिया. राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा है कि विधानसभा सत्र संवैधानिक प्रावधानों के अनुकूल आहूत होना आवश्यक है.

राजभवन से जारी सूचना के मुताबिक राजस्थान विधानसभा का पंचम सत्र आहूत करने हेतु राज्य सरकार ने राज्यपाल से मिले परामर्श के अनुरूप प्रक्रियागत सुधार के साथ पुनः 25 जुलाई की रात प्रस्ताव राजभवन को भेजा था. राज्य सरकार द्वारा 31 जुलाई से सत्राहूत करने का प्रस्ताव राज्यपाल कलराज मिश्र को भेजा गया. राज्य सरकार ने अपने प्रस्ताव में यह भी लिखा कि " राज्यपाल महोदय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 174 में मंत्रिमण्डल की सलाह मानने को बाध्य हैं एवं माननीय राज्यपाल स्वयं के विवेक से कोई निर्णय नहीं ले सकते हैं." जिसके बाद मंत्रिमण्डल के पुनः प्राप्त प्रस्ताव के संबंध में राज्यपाल कलराज मिश्र ने फिर विधिक राय ली. जिसमें ' नाबाम रबिया एवं बमांग फेलिक्स बनाम विधानसभा उपाध्यक्ष, अरुणाचल प्रदेश ( 2018 ) मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के पैरा 150 से 162 का अध्ययन किया गया. अध्ययन में यह तथ्य सामने आया कि संविधान के अनुच्छेद 174 ( 1 ) के अन्तर्गत राज्यपाल साधारण परिस्थिति में मंत्रिमण्डल की सलाह के अनुरूप ही कार्य करेंगे तथा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 174 ( 1 ) की पालना हेतु भी मंत्रिमण्डल की सलाह मान्य है, परन्तु यदि परिस्थितियां विशेष हों तो राज्यपाल यह सुनिश्चित करेंगे कि विधानसभा का सत्र संविधान की भावना के अनुरूप आहूत किया जाये. विधानसभा के सभी माननीय सदस्यों को उपस्थिति के लिए उचित समय, उचित सुरक्षा, उनकी मुक्त एवं स्वतन्त्र इच्छा, स्वतन्त्र आवागमन सदन की कार्यवाही में भाग लेने हेतु आवश्यक प्रकिया को अपनाया जावे.

 

राज्यपाल ने कही 3 बड़ी बातें


राज्यपाल मिश्र के अनुसार विभिन्न प्रिंट मीडिया एवं इलेक्ट्रोनिक मीडिया में राज्य सरकार के बयान से यह स्पष्ट हो रहा है कि राज्य सरकार विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव लाना चाहती है, परन्तु सत्र बुलाने के प्रस्ताव में इसका कोई उल्लेख नहीं है. यदि राज्य सरकार विश्वास मत हासिल करना चाहती है तो यह अल्प अवधि में सत्र बुलाये जाने का युक्तियुक्त आधार बन सकता है. चूंकि वर्तमान में परिस्थितियां असाधारण है इसलिए राज्य सरकार को तीन बिन्दुओं पर कार्यवाही किये जाने का परामर्श देते हुए राजभवन द्वारा पत्रावली पुनः प्रस्तुत करने के निर्देश दिये गये हैं.


1- विधानसभा का सत्र 21 दिन का क्लीयर नोटिस देकर बुलाया जाये, जिससे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के अन्तर्गत प्राप्त मौलिक अधिकारों की मूल भावना के अन्तर्गत सभी को समान अवसर की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके. अत्यंत महत्त्वपूर्ण समाजिक एवं राजनैतिक प्रकरणों पर स्वस्थ बहस देश की शीर्ष संस्थाओं यथा माननीय सर्वोच्च न्यायालय, माननीय उच्च न्यायालय आदि की भांति ऑनलाइन प्लेटफार्म पर किये जा सकते है ताकि सामान्य जनता को कोविड -19 के संक्रमण से बचाया जा सके.


2- यदि किसी भी परिस्थिति में विश्वास मत हासिल करने की विधानसभा सत्र में कार्यवाही की जाती है, तब ऐसी परिस्थितियों में जबकि माननीय अध्यक्ष महोदय द्वारा स्वयं माननीय सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुज्ञा याचिका दायर की है. विश्वास मत प्राप्त करने की सम्पूर्ण प्रक्रिया संसदीय कार्य विभाग के प्रमुख सचिव की उपस्थिति में की जाये तथा सम्पूर्ण कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग करायी जाये तथा ऐसा विश्वास मत केवल हां या ना के बटन के माध्यम से ही किया जाये. यह भी सुनिश्चित किया जाये कि ऐसी स्थिति में विश्वास मत का सजीव प्रसारण किया जाय.


3- यह भी स्पष्ट किया जाये कि यदि विधानसभा का सत्र आहूत किया जाता है तो विधानसभा के दौरान सामाजिक दूरी का पालन किस प्रकार किया जाएगा. क्या कोई ऐसी व्यवस्था है जिसम माननीय विधायकगण और 1000 से अधिक अधिकारी / कर्मचारियों को एकत्रित होने पर उनको संक्रमण कोई खतरा नहीं हो और यदि उनमें से किसी को संक्रमण हुआ तो उसे अन्य में फैलने से कैसे रोका जायेगा.

 

राज्यपाल को आशंका


राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा है कि "जैसा की मुझे विदित है कि राजस्थान विधानसभा में 200 माननीय विधायकगण और 1000 से अधिक अधिकारी और कर्मचारियों के एक साथ सामाजिक दूरी की पालना करते हुए बैठने की व्यवस्था नहीं है. जबकि संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए आपदा प्रबन्धन अधिनियम एवं भारत सरकार के दिशानिर्देशों की पालना किया जाना आवश्यक है. संविधान के अनुच्छेद 174 का निरपेक्ष अर्थ मंत्रिमण्डल की आज्ञा में उल्लेखित किया गया है. यह राज्यपाल का संवैधानिक दायित्व है कि ऐसी विपरीत परिस्थिति में बिना किसी विशेष आकस्मिकता के विधानसभा का सत्र आहूत कर 1200 से अधिक लोगों के जीवन को खतरे में डाला जाए. राज्यपाल कलराज मिश्र ने संविधान के अनुच्छेद 174 के अन्तर्गत उपरोक्त परामर्श देते हुए विधानसभा का सत्र आहूत किये जाने हेतु कार्यवाही किये जाने के निर्देश राज्य सरकार को दिये हैं.

मिश्र ने कहा है कि विधानसभा सत्र न बुलाने की कोई भी मंशा राजभवन की नहीं है. सिर्फ संवैधानिक एवं नियमावलियों में विहित प्रक्रिया और प्राविधानों के अनुरूप ही कार्य किये जाने का निश्चय दोहराया गया है.

 

CM ने की PM मोदी से बात


 राजस्थान में जारी सियासी उठापटक के बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि उन्होंने रविवार को पीएम मोदी से फोन पर बात की और उनको राज्यपाल कलराज मिश्र के बर्ताव के बारे में बताया. साथ ही सात दिन पहले लिखे खत के बार में भी जानकारी दी. बता दें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत विधानसभा का सत्र बुलाना चाहते हैं, लेकिन राज्यपाल कलराज मिश्र ने इजाजत नहीं दी है. इसे लेकर सीएम गहलोत और कांग्रेस विधायकों ने राजभवन में धरना प्रदर्शन भी किया था. बावजूद इसके राज्यपाल ने सत्र बुलाने की अनुमति नहीं दी.