क्या आगामी विधानसभा चुनावों में फ्रंट फुट पर खेलने के लिए बैक फुट पर आए मोदी?


नई दिल्ली (सुभद्र पापड़ीवाल). कृषि कानूनों का भविष्य तो कैप्टेन की दिल्ली दरबार में हाजिरी वाले दिन ही तय हो गया था. कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा के साथ ही पंजाब के पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह की ओर से जारी प्रतिक्रिया ने यह साबित भी कर दिया. जहां उन्होंने केंद्र सरकार के इस फैसले का स्वागत किया.

अमरिंदर सिंह ने उम्मीद जताई है कि केंद्र सरकार खेती के विकास के लिए काम करना जारी रखेगी. अमरिंदर सिंह ने अपने ट्वीट में लिखा कि ''नरेंद्र मोदी जी किसानों की मांग स्वीकारने और तीन कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए शुक्रिया. गुरु नानक जंयती के मौके पर यह अच्छा फैसला लिया गया है. मुझे पूरी उम्मीद है कि केंद्र सरकार किसानों के लिए विकास करने का काम जारी रखेगी.''

एक सक्रिय सीमा वाले राज्य जहां की परिस्थितियां अत्यंत संवेदनशील हैं, वहां प्रत्यक्ष- परोक्षरूप में सरकार बनाना भाजपा के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन गया था। बंगाल में चोट खा चुके थे। यूपी में सीटें पहले से कम दिखाई दे रही थी। वैसे भी सर्वोच्च न्यायालय ने इन कानूनों के अमल पर रोक लगा रखी थी तो अहमियत सिर्फ मूंछों की रह गई थी। कृषि कानूनों पर पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश को संतुष्ट किए बिना कैप्टेन का भविष्य शून्य था और योगी का मार्ग दुर्गम।

खैर, "रोल बैक" कहें या "सरकार बैक फुट पर" कहें, राजनीति के पुराने खिलाड़ी इस युद्ध कला को जीत सुनिश्चित करने के लिए अक्सर काम में लेते आए हैं। यदि बड़ा लक्ष्य राज करना है तो छोटी कुर्बानी देने में कोई हिचक नहीं होती है। शायद यही कारण है कि मोदी के करीबी कहते हैं कि कुछ राज्यों में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों में फ्रंट फुट पर खेलने के लिए मोदी बैक फुट पर आए हैं. भाजपा यह अंदाजा लगाने में चूक गई कि देश का कोई भी न्यायालय इस "रास्ता रोको" वाली अराजकता पर संज्ञान नहीं लेगा। शाहीन बाग में भी नहीं लिया था। मूंछ तो गई लेकिन पंजाब में कैप्टन और यू पी में महाराज का रास्ता साफ हो गया। हो सकता है कि अब मरहूम कृषि कानूनों की शोक सभाएं आयोजित हों और उनका चरित्र विष्लेषण हो। यदि हुआ तो विपक्ष को नुक्सान होगा और नहीं तो भाजपा को ये शोक सभाएं आयोजित करवाने से "सिंपैथी फैक्टर" का लाभ अवश्य मिलेगा बशर्ते ये देश के अन्य राज्यों के किसान समूहों द्वारा आयोजित हों।