भारत में महाशिवरात्रि पर्व की धूम, जानिए भगवान भोलेनाथ से जुड़ी 10 रोचक मान्यताएं!


(TEN SPECIAL). क्या शिव और शंकर एक ही हैं? आखिर कौन है शिव और कौन है शंकर? कुछ पुराणों की माने तो भगवान शंकर को शिव के नाम से इसलिए संबोधित किया जाता है क्योंकि वे निराकार शिव के समान हैं. निराकार शिव को शिवलिंग के रूप में पूजने की मान्यता है. कई विद्वान शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम मानते हैं, जबकि दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति और रुप लिए हुए दिखाई देते हैं. शंकर को कहीं तपस्वी रूप में दिखाया जाता है, तो कहीं शिवलिंग का ध्यान करते हुए उनका रुप वर्णित किया गया है. ऐसे में कुछ पुराणों के मुताबिक शिव और शंकर दो अलग-अलग सत्ताएं हैं. भगवान शिव सदा कल्याणकारी हैं, जन्म-मरण के चक्र या बंधन से सदा मुक्त हैं जबकि शंकर साकारी देवता है. शंकर को ही देव आदि देव महादेव भी कहा जाता है. शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है तो कहते हैं शिव शंकर भोलेनाथ. शंकर जी को उंचे पर्वत पर तपस्या में लीन बताते हैं जबकि भगवान शिव ज्योति बिंदु स्वरूप हैं. जिनकी पूजा ज्योतिर्लिंग के रूप में की जाती है.

महाशिवरात्रि पर इस जानकारी के बाद जरुर आप चौक गए होंगे. महाशिवरात्रि का पावन पर्व सम्पूर्ण भारतवर्ष में धूमधाम से मनाया जाता है, शिवाल्यों में श्रद्धा का सैलाब देखने को मिलता है. भगवान शिव देवता और असुर दोनों के प्रिय थे. शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं. माना जाता है कि वे रावण को भी वरदान देते हैं और भगवान राम को भी. उन्होंने ही भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था. आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता शिव माने जाते हैं.

महाशिवरात्रि के इस पवित्र मौके पर आइए जानते हैं भगवान शिव से जुड़ी वो 10 (TEN) रोचक बातें जो शिव की अपरम्पार महिमा वर्णित करती है.

1. भारतीय पुराणों के मुताबिक भगवान शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं. पुराणों में करीब 108 नामों का उल्लेख मिलता है लेकिन महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, महेश, नीलकंठ, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ, रुद्र आदि उनके सबसे ज्यादा प्रचलित नाम हैं.

 

2. शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकी है. वासुकी भगवान शिव के परम भक्त थे. माना जाता है कि नाग जाति के लोगों ने ही सर्वप्रथम शिवलिंग की पूजा का प्रचलन शुरू किया था. वासुकी की भक्ति से प्रसन्न होकर ही भगवान शिव ने उन्हें अपने गणों में शामिल कर लिया था और गले में वासुकी को रखते हैं. वासुकी को नागलोक का राजा माना गया है. वासुकी के बड़े भाई का नाम शेषनाग है.

 

3. भगवान शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि कहा जाता है. बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज के अलावा गौरशिरस मुनि उनके आठवें शिष्य थे. यही वो ऋषि थे जिन्होने शिव के ज्ञान को संपूर्ण पृथ्वी लोक पर प्रचारित किया, शिव के संदेश को फैलाया, जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई. मान्यता है कि शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा का आगाज किया.

 

4. शिव के गणों की बात करें तो भैरव, वीरभद्र, नंदी, श्रृंगी, मणिभद्र, चंदिस, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं. पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना गया है. शिवगण नंदी ने ही 'कामशास्त्र' की रचना की थी, जिसके आधार पर 'कामसूत्र' को लिखा गया.

 

5. शिव की वेशभूषा की बात करें तो शिव भक्त इसे सभी धर्मों का केन्द्र मानते हैं. क्योंकि इसमें प्रत्येक धर्म के लोगों के प्रतीक देखे जा सकते हैं. साबिईन, सुबी, इब्राहीमी, मुशरिक, यजीदी, धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट नजर आती है. शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में वि‍भक्त हो गई. शिव के पास मौजूद शस्त्र स्वयं ने ही निर्माण किए थे जिनमें शिवधनुष या पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र, शस्त्र त्रिशूल शामिल हैं. मान्यता है कि अपने ही त्रिशूल से भगवान शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों में एक गुफा बनाई थी. इसी क्षेत्र में भगवान शिव ने जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था वह गुफा 'अमरनाथ गुफा' के नाम से प्रसिद्ध हुई.

 

6. शिव को आदिदेव क्यों कहा जाता है? मान्यता है कि सर्वप्रथम इस धरा पर शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार की शुरूआत की, इसलिए उन्हें 'आदिदेव' कहा जाने लगा. 'आदि' का अर्थ जहां प्रारंभ से है वहीं आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है.

 

7. भगवान शिव के परिवार की बात करें तो शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्मी. पार्वती ही उमा, उर्मि, काली कही गई. वैसे तो सम्पूर्ण विश्व भगवान शिव का परिवार माना जाता है लेकिन प्रमुख रूप से उनके 6 पुत्र माने हैं जिनमें गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा, भूमा शामिल हैं.

 

8. भगवान शिव की पंचायत की बात करें तो सूर्य देव, गणपति, देवी, रुद्र, विष्णु ये शिव पंचायत कहे जाते हैं, वहीं नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर, महाकाल को उनका द्वारपाल माना जाता है.

 

9. श्रीलंका के रतन द्वीप पहाड़ की चोटी पर बना श्रीपद मंदिर ही वो मंदिर है जहां शिव के पैरों के निशान हैं. सिवानोलीपदम (आदम पीक) में 5 फुट 7 इंच लंबे, 2 फुट 6 इंच चौड़े श्रीपद निशान यहां देखे जा सकते हैं. वहीं तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्‍वर का मंदिर में शिव के पदचिह्न हैं जिसे 'रुद्र पदम' कहा जाता है. थिरुवन्नामलाई, असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में, उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के मंदिर के पास भी भगवान शिव के पदचिन्ह मौजूद हैं. झारखंड के 'रांची हिल' पर 'पहाड़ी बाबा मंदिर' में भगवान शिव के पैरों के निशान मिलते हैं.

 

10. ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं प्रचलित है. ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'. जो शिवलिंग के बारह खंड हैं. प्रचलित मान्यताओं और शिवपुराण के मुताबिक प्राचीनकाल में आकाश से ज्‍योति पिंड पृथ्‍वी पर गिरे, जिनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया. ऐसे अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर आकर गिरे. भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्‍योतिर्लिंग में शामिल किया गया. इनमें सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, औंकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर खंड शामिल हैं. शिवपुराण के मुताबकि ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है.