क्या है वो 'कालापानी' विवाद, जिसे लेकर नेपाल ने दिखाई भारत को आंख?


भारत/काठमांडू. भारत ने हाल में नवगठित जम्मू कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश को उनकी सीमाओं के साथ अपने नए नक्शे में दिखाया. नक्शे में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को नवगठित जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के हिस्से के रूप में जबकि गिलगित-बाल्टिस्तान को लद्दाख के हिस्से के रूप में प्रदर्शित किया गया है. नेपाल को इस मानचित्र के उस हिस्से से आपत्ति है, जहां विवादित कालापानी क्षेत्र को भारतीय सीमा में रखा गया है. नेपाल का दावा है कि कालापानी क्षेत्र नेपाल के दार्चुला जिले का हिस्सा है. दार्चुला नेपाल के सुदुरपश्चिम प्रोविंस का एक जिला है. नेपाल का कहना है कि कालापानी को लेकर भारत और नेपाल के बीच बातचीत जारी है लेकिन मसला अभी सुलझा नहीं है.

इस बीच नेपाल ने भारत को आंख दिखाने की कोशिश की है. नेपाल में भारत के नए मानचित्र को लेकर विरोध-प्रदर्शन जोरों पर है. प्रधानमंत्री केपी ओली ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है. ओली ने कहा है 'नेपाल, भारत और तिब्बत के बीच ट्राइजंक्शन में स्थित कालापानी क्षेत्र नेपाल का हिस्सा है और भारत को वहां से अपनी सेना तुरंत हटा लेनी चाहिए.' ओली ने यह भी कहा कि 'हम अपने भू-भाग के एक इंच पर भी किसी देश को कब्जा नहीं करने देंगे, भारत को इसे खाली करना होगा. हमारे भू-भाग से भारतीय सेना के हटने के बाद ही हम किसी वार्ता में शामिल होंगे.'

 

कालापानी क्षेत्र विवाद क्या है?

भारत और नेपाल दोनों कालापानी क्षेत्र पर अपना अपना दावा करते हैं और इसे अपने देश को अभिन्न अंग बताते हैं. भारत इसे उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का भाग बताता है तो नेपाल कालापानी को उसके दार्चुला जिले का हिस्सा बताता है. यह क्षेत्र 1962 से इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस के पास है. इस क्षेत्र से होकर महाकाली नदी गुजरती है, जिसका स्रोत देशों के बीच विवाद के केंद्र में है. लेकिन इस क्षेत्र में सीमा के सीमांकन पर सहमति नहीं है.

 

भारत को क्या आशंका है?

जैसे डोकलाम में भारत, भूटान और चीन बॉर्डर हैं, वैसे ही कालापानी में भारत, नेपाल और चीन बॉर्डर है. इस लिहाज से सैन्य नजरिये से यह क्षेत्र बहुत महत्वपूर्ण है. उस क्षेत्र में यह सबसे ऊंची यह जगह है. 1962 युद्ध के दौरान भारतीय सेना यहां पर थी. यहां चीन ने भी बहुत हमले नहीं किए थे क्योंकि भारतीय सेना यहां मजबूत स्थिति में थी. इस युद्ध के बाद जब भारत ने वहां अपनी पोस्ट बनाई, तो नेपाल का कोई विरोध नहीं था. क्योंकि उस वक्त भारत और नेपाल के संबंध बेहद मैत्रीपूर्ण थे अब जैसे तनावपूर्ण नहीं थे. कालापानी क्षेत्र में महाकाली नदी का रोल भी अहम है. यह पहाड़ी नदी बराबर अपना रास्ता बदलती रहती है. ऐसे में बॉर्डर में भी थोड़े-बहुत बदलाव आते रहते हैं. अब भारत को आशंका है कि अगर वो इस पोस्ट को छोड़ेगा तो हो शायद चीन वहां कब्जा जमाए. जो भारत के लिए ठीक नहीं है.

 

विवाद पर भारत ने क्या कहा?

इस विवाद और नेपाल की तल्खी के बीच भारत के विदेश मंत्रालय स्थिति को साफ किया है. विदेश मंत्रालय प्रवक्ता रवीश कुमार के मुताबिक 'हमारे नक्शे में भारत के संप्रभु क्षेत्र का सटीक चित्रण है और पड़ोसी के साथ सीमा को संशोधित नहीं किया गया है. नेपाल के साथ सीमा परिसीमन अभ्यास मौजूदा तंत्र के तहत चल रहा है. हम अपने करीबी और मैत्रीपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों के साथ बातचीत के माध्यम से समाधान खोजने के लिए अपनी प्रतिबद्धता को एक बार फिर दोहराते हैं.'

 

क्या प्रदर्शन प्रोपेगैंडा का हिस्सा?

नेपाल में भारत के नए नक्शे और कालापानी विवाद को लेकर ठनी हुई है, नेपाल में बडे स्तर पर विरोध प्रदर्शन जारी हैं. लेकिन इंटेलिजेंस के सूत्रों के मुताबकि यह एक प्रायोजित और प्रोपेगैंडा है जिसे चीन और प्रधानमंत्री केपी ओली विरोधी सपोर्ट कर रहे हैं. हालांकि सीधे तौर पर ना तो नेपाल और ना ही भारत चीन का नाम ले रहा है. नेपाल पीएम ने भी यह बात स्वीकारी है कि भारत के नए नक्शे के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन प्रोपेगैंडा का हिस्सा हैं. कालापानी इलाके को लेकर ऐसा प्रोपेगैंडा फैलाया जा रहा है जैसे वह आज ही की घटना हो जबकि यह दशकों पहले की बात है.