झारखंड में आरक्षण 60 फीसदी से बढ़ाकर 77 फीसदी करने का विधेयक पारित


रांची। अवैध खनन मामले में प्रवर्तन निदेशालय के निशाने पर चल रहे झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मास्टरस्ट्रोक चलते हुए राज्य में आरक्षण की ऊपरी सीमा को 60 फीसदी से बढ़ाकर 77 फीसदी करने के एक विधेयक को आज विधानसभा से पारित करा लिया।

हालांकि, यह 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान उनकी पार्टी का किया हुआ वादा था, जिसे उन्होंने अब पूरा किया है। इसके साथ ही सोरेन ने अब गेंद केंद्र सरकार के पाले में डाल दी है। आरक्षण बढ़ाने से संबंधित विधेयक राजनीतिक रूप से इतने संवेदनशील माने जा रहे हैं कि मुख्य विपक्षी भाजपा ने भी सदन में इसका समर्थन किया।

दूसरी तरफ आजसू ने आरक्षण सीमा बढ़ाकर 90 प्रतिशत करने का प्रस्ताव रखा। झारखंड विधानसभा के विशेष सत्र में आज "झारखंड पदों और सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण अधिनियम 2001" में एक संशोधन पारित करके एससी, एसटी, ईबीसी, ओबीसी और आर्थिक रूप से कमजोर तबके ईडब्लयूएस के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण 60 प्रतिशत से बढ़ा कर 77 फीसदी कर दिया गया है।

अभी झारखंड में अनुसूचित जनजाति को 26, अनुसूचित जाति को 10, पिछड़ों को 14 और ईडब्ल्यूएस को 10 फीसदी आरक्षण मिल रहा था। इस विधेयक के कानून बनने और 9वीं अनुसूची में शामिल होने के बाद एसटी को 28, एससी को 12, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 तथा पिछड़ों का आरक्षण 27 प्रतिशत हो जायेगा। विधेयक में कहा गया है कि राज्य संविधान की नौवीं अनुसूची में बदलाव करने का केन्द्र से आग्रह करेगा। झारखंड विधानसभा के विशेष सत्र में झारखंड स्थानीय व्यक्ति की परिभाषा और ऐसे स्थानीय व्यक्ति को विशेष सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य लाभ मुहैया कराने संबंधी विधेयक 2022 भी पारित किया गया। गौरतलब है कि राज्य के आदिवासी लंबे समय से मांग कर रहे थे कि ब्रिटिश शासनकाल में 1932 में कराए गए जमीन सर्वेक्षण के रिकॉर्ड के आधार पर व्यक्ति के स्थानीय निवासी होने का सत्यापन किया जाए, ना कि 1985 के सर्वे के आधार पर, जैसा अभी हो रहा है।

इन दोनों विधेयकों को पारित कराए जाने को हेमंत सोरेन का मास्टरस्ट्रोक कहा जा रहा है। क्योंकि झारखंड को बने 22 साल हो गए। इस दौरान आदिवासी बहुल इस राज्य पर अधिकंश समय तक भाजपा ने ही शासन किया है लेकिन भाजपा की सरकारें एसटी, एससी समेत ओबीसी का आरक्षण नहीं बढ़ा सकीं। ऐसे में हेमंत सोरेन और यूपीए सरकार ने यह कदम उठाते हुए राज्य में यह जताने की कोशिश की है कि सच्चे मायने में वही आदिवासियों, दलितों और पिछड़ों की हितैषी है। अब सोरेन ने आरक्षण की सीमा बढ़ाकर अब गेंद केंद्र सरकार के पाले में डाल दी है। अगर केंद्र सरकार उसे नौवीं अनुसूची में शामिल नहीं करा पाती है तो तमाम विपक्षी पार्टियां इसका दोष सीधे-सीधे केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और भाजपा पर मढ़ेंगी और आमजन के बीच यह राय बनाने की कोशिश करेगी कि भाजपा आरक्षण विरोधी है और दलितों, पिछड़ों की हिमायती नहीं है।