गहलोत पायलट के पचड़े में नहीं पड़ना चाहते कमलनाथ! क्या मन में है डर? कहीं ना बन जाएं दूसरे 'अविनाश पाण्डे'


जयपुर. राजस्थान कांग्रेस में चल रहे सियासी विवाद के बीच अब कमलनाथ भी गहलोत और पायलट के पचड़े में नहीं पड़ना चाहते. सूत्रों के मुताबिक कमलनाथ ने आलाकमान से कहा है कि वो घोषित मध्यस्थ नहीं बनना चाहते, पर हां वो आलाकमान के निर्देश पर अघोषित तौर पर दोनों से आवश्यक बातचीत कर सुलह का प्रयास जरूर करेंगे. 

एमपी के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ से जुड़े जानकारों का कहना है कि वो इस पचड़े में पड़कर खुद किसी तरह के विवादों का हिस्सा नहीं बनना चाहते हैं. क्योंकि इससे पहले यह जिम्मेदारी पूर्व में तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस प्रभारी अविनाश पाण्डे को भी दी गई थी लेकिन विवाद तो सुलझा नहीं उनकी प्रदेश से विदाई जरूर हो गई. इसके बाद अजय माकन को जिम्मेदारी मिली तो अब माकन भी इसमें पस्त हो गए हैं. 

चूंकि गहलोत और पायलट दोनों ही वरिष्ठ नेता हैं और दोनों के मामले में कुछ भी ऐसा हुआ ​की किसी एक खेमे से नाराजगी मोल ले ली तो बैठे बिठाए ब​लि का बकरा बन सकते हैं, इमेज लोस होगा सो अलग. दूसरी ओर सूत्र यह भी कह रहे हैं कि वो मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी हैं उनकी व्यस्तता काफी बढी हुई हैं क्योंकि एमपी में उन्हें 1 लोकसभा और 4 विधानसभा उपचुनावों की रणनीति बनानी है और उन सीटों पर पार्टी को जीत दिलवानी है, चुनाव रणनीति पर काम करना है. इसके अलावा कर्नाटक में चल रहा विवाद सुलझाने का जिम्मा भी आलाकमान ने उन्हें ही सौंपा है. तो एक बड़ी जिम्मेदारी यह भी बन जाती है. और तो और पंजाब कांग्रेस में चल रहे विवादों के निपटारे में भी कमलनाथ व्यस्त बताए जा रहे हैं. यह सब होने के कारण अब कमलनाथ किसी अन्य विवाद को सुलझाने की स्थिति में फिलहाल नहीं हैं. राजस्थान कांग्रेस में चल रही अस्तित्व की इस लडाई में वो किसी तरह से शामिल नहीं होना चाहते. 

बता दें कि लगातार इस बात की अपुष्ठ सूचना आ रही थी कि आलाकमान ने कमलनाथ को राजस्थान की गहलोत पायलट गाथा को युद्ध विराम की स्थिति में लाने के लिए अहम जिम्मेदारी सौंपी है. लेकिन इसी के साथ कमलनाथ की काबि​लियत पर यह सवाल भी उठने लगे थे कि जो व्यक्ति मध्यप्रदेश में अपनी ही सरकार को नहीं बचा पाया हो क्या वो राजस्थान में कैसे कामयाब होगा. 

बताया जा रहा है कि कुछ लोगों ने इस लिहाज से भी कमलनाथ की राजस्थान में एंट्री का विरोध किया है क्योंकि वो गहलोत के करीबी हैं और ऐसे में उनसे निष्पक्षता की उम्मीद नहीं की जा सकती, वो इस मसले में दूसरे अविनाश पाण्डे साबित हो सकते हैं.  

इसके पीछे एक तर्क यह भी दिया जाता है कि कमलनाथ के धुर विरोधी ज्योतिरादित्य सिंधिया पायटल के ​घनिष्ठ मित्र हैं जो कमलनाथ से छुपा हुआ नहीं है और पायलट भी इस बात को जानते हैं कि दोनों एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते. ऐसे में क्या वो एमपी की दुश्मनी भुलाकर पायलट सिंधिया की इस मित्रता को नजरअंदाज कर निष्पक्ष भूमिका निभा पाएंगे.

बहरहाल कमलनाथ भले ही इस मसले से खुद को अलग रखना चाह रहे हों लेकिन यदि आलाकमान के दबाव में वह यह टास्क ले भी लें तो देखना दिलचस्प होगा कि खुद की सत्ता काे गंवाने वाले कमलनाथ राजस्थान में अपनी राजनीतिक कुशलता का परिचय किस तरह देते हैं? 

वैसे माना यह भी जा रहा है कि अगले साल पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव हैं, ऐसे में सचिन पायलट की इन क्षेत्रों में खासी लोकप्रियता है, स्टार कैम्पेनर के रूप में कांग्रेस पार्टी को उनकी बेहद जरूरत होगी, जहां पार्टी पायलट के चेहरे का भरपूर इस्तेमाल करना चाहेगी ले​किन यह सब अब तब ही संभव है जब पायलट मानेंगे, उनकी बातों को तवज्जो मिलेगी, ऐसे में यह भी एक बड़ी चुनौती कमलनाथ को नजर आ रही है.