अनुभवहीन कलेक्टर और एसपी नहीं संभाल पा रहे जालोर में दलित बच्चे की मौत के बाद उपजा बवाल, पीड़ित परिवार पर ही लाठीचार्ज


जालोर में दलित छात्र द्वारा स्कूल में पानी की मटकी छू लेने पर टीचर द्वारा इतना पीटा गया कि मासूम छात्र की मौत हो गई। पिछले करीब 24 दिन से बच्चे का अहमदाबाद में इलाज चल रहा था। इससे पहले उदयपुर में भी इलाज चला था। राजस्थान के जालोर जिले के सायला थाना क्षेत्र के सुराणा गांव की यह घटना है। मामले में क्षेत्र में लगातार तनाव बना हुआ है। पूरे देश में इस मामले की निंदा की जा  रही है। 

पिता का आरोप है कि 20 जुलाई को तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले उनके 9 साल के बेटे इंद्र मेघवाल ने पानी की मटकी को छू ली थी। इसके बाद टीचर छैल सिंह ने इतनी पिटाई की थी कि उसकी हालत गंभीर हो गई। पुलिस ने एससी-एसटी एक्ट में मामला दर्ज किया है।

पर इस मामले में एक और बड़ी लापरवाही देखने को मिली। जहां जिले के दो सबसे बड़े अधिकारी इस मामले में गंभीर नजर नहीं आए। समय रहते कोई प्रभावी एक्शन नहीं लिया गया। नतीजा यह रहा कि क्षेत्र में मौत के बाद हिंसा और तनाव बढ गया है। ना केवल इस घटना से पूरे देश के दलित समाज में आक्रोश है बल्कि मासूम की मौत पर अन्य समाज के लोग भी काफी आक्रोशित हैं। 

सबसे बड़ी बात यह है कि पहले तो बच्चे के साथ हुई घटना के बाद भी कलेक्टर निशांत जैन और एसपी हर्षवर्धन अग्रवाल डिएक्टिव मोढ पर रहे, इसके बाद जब बच्चे की मौत हो गई तो कलेक्टर प्रशासनिक मामलों में और एसपी कानून व्यवस्था संभालने के मामले में अनुभवहीन साबित हुए। लोगों को सेंटिमेंट को समझे बिना समझौते की टैबल पर वार्ता के दौरान मौजूद परिजनों और आक्रोशित लोगों पर लाठीचार्ज करवाकर आग में घी डालने जैसा काम कर दिया।

हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं कि वहां कुछ लोग अपनी राजनीतिक रोटियां सैंकने में भी लगे थे लेकिन प्रशासन को पीड़ित परिवार के सेंटिमेंट्स को सबसे पहले प्राथमिकता देनी थी। जिस परिवार ने अपने मासूम बच्चे को इस तरह से खोया है उसमेें आक्रोश होना लाजमी है, लेकिन उस आक्रोश को और बढाने का काम प्रशासन ने लाठीचार्ज करके किया।


उधर इस पूरे मामले में नेशनल मीडिया पर सरकार की फजीहत करवाने में दोनों अफसरों ने कोई कमी नहीं छोड़ी। स्थानीय लोगों में आक्रोश इस बात का भी है कि जब यह मामला एक तरफ इतना गंभीर होता जा रहा था, आरोपी मास्टर पीडित परिजनों पर समझौते का दबाव बना रहा था तब कलेक्टर और एसपी दोनों अपने घूमने के फोटो इंस्ट्राग्राम पर अपडेट करने में व्यस्त थे। सोशल मीडिया पर कलेक्टर निशांत जैन द्वारा एसपी के साथ वाली अपडेट की गई फोटो के स्क्रिन शाॅट्स वायरल हो रहे हैं जिससे साफ नजर आ रहा है कि दोनों ही अधिकारी एक अलग ही दुनिया में मस्त थे, मानो प्रशासन और कानून व्यवस्था संभालने के बजाए उन्हें जालोर में भ्रमण और सोशल मीडिया पोस्ट अपडेट करने का जिम्मा सौंपा गया हो। खासकर ऐसे संवेदनशील मौके पर। दोनों अधिकारी मामले की गंभीरता ही नहीं भांप पाए।

कलेक्टर द्वारा किए गए इस हल्केपन पर अब लम्बे प्रशासनिक अनुभव के बाद आरएएस से आईएएस बने और आरपीएस से आईपीएस बने अधिकारियों को जिला कलेक्टर और जिला एसपी लगाने की मांग उठने लगी है। ब्यूरोक्रेसी का लम्बा अनुभव रखने वाले अधिकारियों का कहना है कि कई प्रमोटी अफसर फिल्ड का एक लम्बा प्रशासनिक और कानून व्यवस्था संभालने का अनुभव रखते हैं जिसका फायदा सरकार को उठाना चाहिए। इससे वो प्रोत्साहित भी होंगे और बेहतर रिजल्ट भी देखने को मिलेगा। कई प्रमोटी अफसर लगातार बेहतर परिणाम दे भी रहे हैं। क्योंकि कलेक्टर और एसपी एक बेहद गंभीर और बड़ी जिम्मेदारी वाला पद होता है। ऐसे में जालोर जैसी परिस्थितियों और घटनाक्रम के बिगडने से पहले अनुभवी अफसर ही उसे नियंत्रण में कर सकते हैं। यहां साफ देखने को मिला कि कलेक्टर और एसपी दोनों में नेतृत्व क्षमता और अनुभव की कमी के चलते मामला बिगड़ता चला गया।

आलम यह है कि बच्चे की मौत के बाद अब माहौल इतना तनावपूर्ण हो गया है कि प्रशासन ने इंटरनेट बंद कर दिया है। पुलिस ने भी इलाके में गश्त बढ़ा दी है। यहां शाम सवा चार बजे के आसपास दलित बच्चे के परिवार के सदस्यों और स्थानीय लोगों की पुलिस के साथ झड़प हुई। हालात ऐसे बने कि स्थानीय लोग, जिनमें ज्यादातर दलित समुदाय से हैं, उन्होंने पुलिस पर पत्थरबाजी शुरू कर दी, पुलिस ने बवाल थामने के लिए लाठीचार्ज किया, इस पूरे प्रकरण में मृतक बच्चे के पिता देवाराम मेघवाल को चोटें आई हैं, जबकि दर्जनभर लोग घायल हुए हैं, वहीं पुलिस ने भीम आर्मी के कई लोगों को हिरासत में लिया है. मामला और बिगड़ने की आशंका है। 

इस बीच राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी लगातार इस मामले में फीडबैक ले रहे हैं और आवश्यक दिशा निर्देश जारी कर रहे हैं। गहलोत एक संवेदनशील मुख्यमंत्री के तौर पर जाने जाते हैं और उन्होंने पहले ही साफ कर दिया है कि आरोपी को जल्द से जल्द सजा मिलेगी, सरकार पीड़ित के परिजनों के साथ है। सीएम के इस मैसेज कि गंभीरता को भी दोनों अफसर नहीं समझ पाए।  


बहरहाल जिले के दो सबसे बड़े अफसरों की लापरवाही इस मामले में साफ देखी जा सकती है। और जाहिर सी बात  है अफसरों की इसी अनुभवहीनता का लाभ चुनावी मौसम में हर व्यक्ति अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने के लिए भी  करेगा, चाहे पीड़ित परिवार को न्याय मिल या ना मिले उन्हें पूरा पाॅलिटिकल माइलेज मिलना चाहिए। शायद मामले में हो रही सियासत को भी समझाने और सही ढंग से इसका मैसेज कम्युनिकेट करने में भी दोनों अफसर असफल साबित हो रहे हैं।
 

इससे पहले हाल में जालोर में दलित संत के सुसाइड मामले में भी बवाल देखने को मिला था। जालोर के जसवंतपुरा उपखंड के सुंधा माता तलहटी के पास संत रविनाथ ने पेड़ से फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली थी। संत के आश्रम के आगे भीनमाल के भाजपा विधायक पूराराम चौधरी की जमीन आई हुई हैं, जिन पर आश्रम का रास्ता बंद करने का आरोप था।