पहली नेत्रहीन महिला IAS प्रांजल पाटिल की सफलता की कहानी, तिरुवंतपुरम में मिली पोस्टिंग


तिरुवनंतपुरम (केरल).

जिंदगी जीने का तरीका उन्हीं लोगों को आया है,

जिन्होंने अपनी जिंदगी में हर जगह धक्का खाया है,

जमाया है सर्द रातों में खुद को, तपती धुप में खुद को तपाया है,

वही हुए हैं सफल जिंदगी में, उन्होंने ने ही इतिहास रचाया है.

यह पक्तियां समर्पित है भारत की उस महान बेटी को जो देख नहीं पाती लेकिन अब देश का शासन चलाने में अपनी भूमिका निभाएगी. सफलता की यह कहानी है भारत की पहली नेत्रहीन महिला आईएएस अधिकारी प्रांजल पाटिल की. जिन्होने केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में बतौर आईएएस उप-जिलाधिकारी का पद संभाल लिया है. प्रांजल के दफ्तर पहुंचते ही लोग कुछ उन्हें शंका की नजरों से देख रहे थे तो कुछ उनकी सफलता को सलाम करते नहीं थक रहे थे. और ऐसा हो भी क्यों नहीं आखिर एक नेत्रहीन महिला ने आईएएस की कुर्सी जो संभाल ली है.

प्रांजल महाराष्ट्र के उल्हासनगर से ताल्लुक रखती हैं. साल 2016 में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पास की, जिसमें उनकी 773 वीं रैंक थी. लेकिन नेत्रहीन प्रांजल को मालूम था कि इन्ही गम की घटाओं से खुशी का चांद निकलेगा, क्योंकि अंधेरी रात के पर्दे में दिन की रौशनी भी तो है.

सपने बडे थे, कलेक्टर बनना था तो प्राजंल ने फिर प्रयास किया. प्रयास भी ऐसा कि प्राजंल अगले ही प्रयास में वहां जा पहुंची जहां की धुन उन्हें चढ़ी थी. 30 साल की प्रांजल ने 2017 में अपनी रैंक में सुधार किया और 124वीं रैंक हासिल की. अब ट्रेनिंग के बाद प्रांजल ने 2017 में केरल के एर्नाकुलम के असिस्टेंट कलेक्‍टर के रूप में अपने प्रशासनिक करियर की शुरुआत की है.

कौन कहता है कि बुने हुए ख्वाब सच्चे नहीं होते,

मंजिलें उन्हीं को नहीं मिलती जिनके इरादे अच्छे नहीं होते,

रूखी-सूखी रोटी और धक्के तो बहुत खाए हैं जिंदगी में,

लेकिन आज देख रही हूं कि सफलता के फल कभी कच्चे नहीं होते.

प्रांजल से जीवन पर यह पंक्तियां सटीक बैठती हैं. प्रांजल बताती हैं कि वह जब महज छह साल की थी तो उनके एक सहपाठी ने उनकी एक आंख में पेंसिंल मारकर उन्हें घायल कर दिया था. उसके बाद प्रांजल की उस आंख की रोशनी चली गई. उस समय डॉक्टरों ने उनके माता-पिता को बताया था कि हो सकता है कि भविष्य में वे अपनी दूसरी आंख की दृष्टि भी खो दें और दुर्भाग्य से डॉक्टरों की बात सच साबित हुई. कुछ समय बाद प्रांजल की दूसरी आंख की दृष्टि भी चली गई.

जिंदगी में कुछ पाना हो तो खुद पर ऐतबार रखना,

सोच पक्की और कदमों में रफ्तार रखना,

सफलता मिल जाएगी एक दिन निश्चित ही तुम्हें,

बस खुद को आगे बढ़ने के लिए तैयार रखना.

इस सारे दुखभरे घटनाक्रम के बीच प्रांजल के माता-पिता ने कभी हार नहीं मानी. अपनी बेटी के दर्द को उन्होंने समझा पर उन्हें मालूम था कि इन्ही गम की घटाओं, परेशानियों के सैलाब से ही जिंदगी का नया सूरज उगेगा. ऐसे में माता-पिता ने कभी भी उनकी नेत्रहीनता को उनकी शिक्षा के बीच आड़े नहीं आने दिया. उन्होंने मुंबई के दादर में स्थित नेत्रहीनों के स्कूल में प्रांजल का दाखिला कराया. प्रांजल ने 10वीं और 12वीं की परीक्षा भी बहुत अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की और 12वीं में चांदीबाई कॉलेज में कला संकाय में प्रथम स्थान प्राप्त किया. उसके बाद उन्होंने लोगों के ताने और कई परेशानियां दुख झेलने के बाद भी हार नहीं मानी और खुद को साबित करने के लिए अपने आईएएस बनने के सपने को पूरा किया. बता दें कि प्रांजल की पढ़ाई ब्रेल लिपि में हुई है. उनकी इस तैयारी में एक सॉफ्टवेयर जॉब ऐक्सेस विद स्पीच ने उनकी खूब मदद की जिसके कारण वह परीक्षा निकालने में सफल रहीं.

"हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए, क्योंकि हमारे किए गए प्रयास ही हमें कामयाब बनाते हैं."

- प्रांजल पाटिल, नेत्रहीन आईएएस