सिविल लाइंस से बीजेपी प्रत्याशी गोपाल शर्मा के महज 15 दिनों के माइक्रो इलेक्शन मैनेजमेंट ने खाचरियावास जैसे कद्दावर नेता को परास्त कर सबको चौंकाया, जानें क्या था सिविल लाइंस का मास्टर प्लान


ना कोई बड़ा नेता रैली या सभा में आया, ना तैयारी का मिला वक्त, फिर भी महज 15 दिन की तैयारी में जयपुर में कांग्रेस की सबसे मजबूत सीट पर कद्दावर नेता खाचरियावास को हराकर चर्चा में आए गोपाल शर्मा

जयपुर। राजस्थान में कांग्रेस राजधानी जयपुर की जिस सिविल लाइंस सीट को अपने लिए सबसे सुरक्षित और मजबूत मान रही थी उसी सीट पर कांग्रेस को बड़ी हार का सामना करना पड़ा। वो भी छोटी मोटी हार नहीं बल्कि 28 हजार 339 मतों से कांग्रेस को हार झेलनी पड़ी। प्रताप सिंह खाचरियावास जयपुर में कांग्रेस का सबसे मजबूत चेहरा माने जा रहे थे। हवामहल से टिकट ना मिलने के बाद महेश जोशी के बाद प्रताप सिंह खाचरियावास ही कांग्रेस में जयपुर से बड़े चेहरे के तौर पर देखे जाते रहे। 

खुद प्रताप सिंह भी अपनी जीत के प्रति पूर्ण आश्वस्त थे और लगातार मीडिया में अपनी जीत के बड़े दावे भी करते नजर आए। लेकिन जिस तरह से वरिष्ठ पत्रकार और आरएसएस में मजबूत पकड़ रखने वाले बीजेपी प्रत्याशी गोपाल शर्मा ने प्रताप सिंह खाचरियावास को इन चुनावों में धूल चटाई वो ना केवल लोगों के लिए आश्चर्य का विषय है बल्कि खुद प्रताप सिंह खाचरियावास भी अपनी इतनी बड़ी हार से सदमे में हैं। और तो और यह सब तब हुआ जब गोपाल शर्मा की तैयारी सांगानेर विधानसभा सीट से थी लेकिन उन्हें अचानक सिविल लाइंस विधानसभा सीट से मैदान में उतार दिया गया। इतना ही नहीं नामांकन की अंतिम तारीख से एक दिन पहले ही टिकट दिया गया, ऐसे में प्रचार प्रसार और मतदाताओं के बीच जाने का वक्त भी बहुत कम था। जबकि प्रताप सिंह खाचरियावास पिछले करीब तीन दशक से इस क्षेत्र में सक्रिय थे और लगातार एक राजनेता के तौर पर मजबूत पकड़ रखते थे। मतदान से पहले अंतिम दो सप्ताह उन्हें यहां से चुनाव तैयारी के मिले। जिसमें भी करीब पांच दिन फेस्टिवल सीजन में निकल गए। और तो और बीजेपी के किसी बड़े स्टार प्रचारक या नेता की रैली, सभा इस विधानसभा क्षेत्र में नहीं हुई। जबकि प्रताप सिंह खाचरियावास के लिए खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत क्षेत्र में सभाएं कर वोट मांगते नजर आए। क्षेत्र से जीतकर मंत्री बने पूर्व मंत्री अरूण चतुर्वेदी ने भी गोपाल शर्मा के चुनाव से दूरी रखी कोई साथ नहीं मिला, ना ही किसी क्षेत्र के अन्य बड़े नेता ने कंधे से कंधा मिलाकर प्रचार प्रसार किया। केवल रोड शो वाले प्रचार प्रसार के अंतिम दिन असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा कुछ देर के लिए रोड़ शो में शामिल हुए। मोदी का रोड़ शो भी उनके क्षेत्र से होकर नहीं गुजरा। बावजूद इसके गोपाल शर्मा का कांग्रेस के कद्दावर नेता और कैबिनेट मंत्री प्रताप सिंह को हराना हर किसी को अचंभित करता है। और हर कोई अब जानना चाहता है कि ऐसा क्या मैनेजमेंट था, जिससे इतनी बड़ी जीत मिली। 

यह थी रणनीति
जिस भाजपा प्रत्याशी गोपाल शर्मा और उनकी टीम को लोगों ने कमजोर समझने की भूल की, वो असल में एक जबरदस्त माइक्रो मैनेजमेंट था। जहां टिकट मिलने के साथ ही पर्दे के पीछे एक बहुत अनुभवी, बहुत मजबूत टीम ने प्रभावी तरीके से गोपाल शर्मा के लिए दिन रात काम किया। यही वो टीम थी जिसने गोपाल शर्मा की बात हर मतदाता तक पहुंचाई। हिंदु, सनातन धर्म, भारत पाकिस्तान, लव जेहाद, धर्मांतरण जैसे मुद्दों पर क्या बोलना है और क्या नहीं, कहां सभा में कौनसी बात प्राथमिकता से बोलनी है और कौनसी नहीं। कौनसा बयान मीडिया में जाएगा और कौनसा नहीं। प्रचार प्रसार का अनूठा तरीका क्या हो जिसको मीडिया में और जनता के दिलों में स्पेस मिले। कांग्रेस की योजनाओं पर क्या बयान देना है और क्या पलटवार करना है। गोपाल शर्मा की सभाओं के दौरान, भाषणों के दौरान चेहरे के हाव भाव और बाॅडी लैंगवेज क्या हो, कांग्रेस प्रत्याशी के बयानों पर क्या पलटवार हो, किस हद तक कटाक्ष के जरिए खाचरियावास की बातों को काटा जाए। और किस तरह से सिविल लाइंस विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं के स्मार्ट फोन यूजर्स तक पहुंचा जाए। इन सब पर उनकी एक कोर टीम ने बहुत ही साइलेंट तरीके से काम किया। जबरदस्त माइक्रो मीडिया मैनेजमेंट के जरिए गोपाल शर्मा के हर बयान से जुड़ी खबर को जनता तक पहुंचाया गया। हर सभा और रैली के अलावा मीडिया में हर रोज एक नया और प्रभावी बयान देकर प्रिंट, इलेक्ट्राॅनिक और डिजिटल मीडिया में माइलेज लिया गया। रैली सभाओं के दौरान राम दरबार द्वारा गोपाल शर्मा के प्रचार प्रसार का पारंपरिक तरीका अपनाया गया तो राजस्थान विधानसभा चुनावों में वो एकमात्र नेता थे जिनका वाॅकिंग बैक पैक एलईडी स्क्रीन के जरिए हाइटैक अंदाज में लगातार प्रचार प्रसार चलता रहा। 

जनता को यह अहसास कराने में उनकी टीम कामयाब रही कि गोपाल शर्मा से ज्यादा भरोसेमंद, क्षेत्र के विकास, क्षेत्र की सुरक्षा, क्षेत्र के उत्थान, हिंदूत्व और सनातन धर्मा की रक्षा के लिए दूसरा कोई नेता नहीं हो सकता। वो मोदी और योगी के प्रतिनिधि के तौर पर गोपाल शर्मा की छवि को जनता के बीच स्थापित करने में कामयाब रहे और उनका भरोसा जीता। सबसे बड़ी बात यह रही कि क्षेत्र में आरएसएस लगातार मोदी, योगी के साथ भाजपा गोपाल शर्मा के नाम जनता को वोट देने के लिए प्रेरित करती रही। आरएसएस ने ग्राउंड लेवल पर गोपाल शर्मा की बेहतर छवि पेश करने में जी तोड़ मेहनत की। 

बताया जाता है कि बीच बीच में प्रताप सिंह खाचरियावास के समर्थकों बीच बैठकर ही गोपाल शर्मा समर्थक प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशी की डे टू डे की रणनीति को भेदकर पाॅलिटिकल मैनेजमेंट की रणनीति बना रहे थे और उसमें कामयाब रहे। भले ही क्षेत्र में झंडे, बैनरी, हाॅर्डिंग, कट आउट लगाकर प्रचार प्रसार में माहौल बनाने में प्रताप सिंह खाचरियावास खुद को मजबूत मानते रहे लेकिन गोपाल शर्मा टीम ने केवल और केवल सिविल लाइंस के हर मतदाता को फोकस में रखा। सोशल मीडिया में एआई तकनीक के जरिए सिविल लाइंस के सोशल मीडिया यूजर्स तक रीच बनाई गई। कई जगह जहां इतने कम समय में गोपाल शर्मा नहीं पहुंच पाए तो वाहन रैली के जरिए हर क्षेत्र से गुजरने की कोशिश की ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों ने पहुंचा जा सके। 

इतना हीं नहीं एक टीम लगातार प्रताप सिंह खाचरियावास से नाराज बड़े और प्रभावी चेहरों को तलाशकर अपना बनाने में जुटी रही। जिसके चलते खाचरियावास को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। वो गोपाल शर्मा की टीम की इस रणनीति को समझ ही नहीं पाए। प्रताप सिंह खाचरियावास के आस पास रहने वालों से भी जनता परेशान थी इसे भी गोपाल शर्मा ने खूब भूनाया। बड़ी बात यह थी कि खूद गोपाल शर्मा टीम को जहां लीड कर रहे थे और रोज आवश्यक दिशा निर्देशन कर रहे थे वहीं टीम के द्वारा दिए जाने वाले सुझावों को आत्मसात कर आवश्यक बदलाव भी अपनी रणनीति को बेहतर बनाने के लिए करते गए। ऐसी कई चीजों और नवाचारों ने प्रताप  प्रताप सिंह खाचरियावास की जीती हुई बाजी को हार में बदल दिया। 

मंत्रीमंडल में भी मजबूत दावेदारी 
सूत्र बताते हैं कि गोपाल शर्मा ब्राह्मण समाज का एक निर्विवाद और मजबूत चेहरा हैं। छात्र जीवन से आरएसएस की विचारधारा से जुड़े रहे हैं। कई स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों से उनका जुड़ाव और उनके सहयोग के लिए हमेशा समर्पित रहे है। अयोध्या में बाबरी विध्वंस के दौरान खुद कार सेवक रहे है। उनकी किताब कार सेवा से कार सेवा तक काफी चर्चित रही। पहली ही बार चुनाव लड़े और पहली ही बार में जयपुर में कांग्रेस की सबसे मजबूत सीट और जिले में कांग्रेस के सबसे मजबूत माने जाने वाले कैबिनेट मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास को बड़े अंतर से हराया है। सभी जातियों में गोपाल शर्मा की स्वीकारोक्ति है। वो दैनिक अखबार के जरिए लोगों के बीच में कई दशकों से अच्छी पकड़ रखते हैं। राष्ट्रवाद और हिंदूत्व के मुद्दों पर अच्छी पकड़ है। संघ के करीबी और कर्तव्यनिष्ठ माने जाते हैं। पीएम मोदी और उनकी टीम से लगातार उनका सीधा सम्पर्क रहा है। ऐसे में उनकी मंत्रीमंडल में दावेदारी भी मजबूत मानी जा रही है। जानकारों का मानना है कि भजनलाल ने जहां बीजेपी के गढ़ सांगानेर जैसी सेफ सीट से दर्ज की है। बालमुंकुंदाचार्य की जीत का अंतर काफी कम रहा है। ऐसे में एक ब्राह्मण चेहरे के तौर पर उनकी दावेदारी अपने आप ही मजबूत हो जाती है।