राजनीतिक बदले का एजेंडा छोड़, अर्थव्यवस्था संभाले सरकार. मनमोहन सिंह के मोदी पर 10 बड़े प्रहार


नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने देश की गिरती अर्थव्यवस्था पर चिंता जताई है. उन्होंने कहा कि पिछली तिमाही में जीडीपी का 5 फीसदी पर आना दिखाता है कि अर्थव्यवस्था एक गहरी मंदी की ओर जा रही है. उन्होंने कहा कि भारत के पास तेजी से विकास दर की संभावना है लेकिन मोदी सरकार के कुप्रंधन की वजह से मंदी आई है. हमारी अर्थव्यवस्था अभी तक नोटबंदी और हड़बड़ी में लागू किए गए जीएसटी से उबर नहीं पाई है. गौरतलब है कि मोदी सरकार ने 30 अगस्त को जीडीपी के आंकड़े जारी किए थे. जिसके मुताबिक, मौजूदा वित्त वर्ष (2019-20) की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में जीडीपी की विकास दर (ग्रोथ रेट) घटकर 5% रह गई. यह 6 साल (25 तिमाही) में सबसे कम है. इससे कम 4.3% जनवरी-मार्च 2013 में थी. अप्रैल-जून में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ में तेज गिरावट और कृषि सेक्टर में सुस्ती की वजह से जीडीपी ग्रोथ पर ज्यादा असर हुआ. जनवरी-मार्च में 3.1% थी. पिछले साल अप्रैल-जून में 12.1% थी.

क्या 10 बड़ी बातें कहीं मनमोहन सिंह ने-

1- पिछली तिमाही में जीडीपी का 5 फीसदी पर आना दिखाता है कि अर्थव्यवस्था एक गहरी मंदी की ओर जा रही है.

2- भारत के पास तेजी से विकास दर की संभावना है लेकिन मोदी सरकार के कुप्रंधन की वजह से मंदी आई है.

3- यह परेशान करने वाला है कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में ग्रोथ रेट 0.6 फीसदी पर लड़खड़ा रही है. 

4- अर्थव्यवस्था अभी तक नोटबंदी और हड़बड़ी में लागू किए गए जीएसटी से उबर नहीं पाई है.

5- हमारी अर्थव्यवस्था कुछ लोगों की गलतियों से नहीं उबर पाई है.

6- बजट की घोषणाओं को वापस लिया गया, जिससे अंतरराष्ट्रीय निवेशकों का विश्वास डगमगा गया. निवेशकों की भावनाएं उदासीन हैं. अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए यह अच्छी खबर नहीं है.

7- ऑटोमोबाइल सेक्टर में 3.5 लाख नौकरियां जा चुकी हैं. इसी तरह असंगठित क्षेत्र में भी बड़े पैमाने पर लोग नौकरियां खो रहे हैं.

8- ग्रामीण भारत की स्थिति और दयनीय है. किसानों को सही दाम नहीं मिल रहा और ग्रामीण आय गिर गई है.

9- संस्थाएं खतरे में हैं और उनकी स्वायत्तता को रौंदा जा रहा है. सरकार ने आरबीआई से 1.76 लाख करोड़ रुपये लिए, लेकिन उसके पास कोई योजना नहीं है कि इस पैसे के साथ क्या होगा.

10- भू-राजनीतिक बदलाव के कारण वैश्विक व्यापार में पैदा हुए मौकों का लाभ लेने में भारत नाकाम रहा और वह अपना निर्यात तक बढ़ा नहीं पाया. मोदी सरकार में आर्थिक प्रबंधन की यह हालत है.