भारतीय क्रिकेट के इतिहास में नया अध्याय लिखेगी पिंक बॉल, जानें पिंक बॉल से जुड़े 10 रोचक फैक्ट


कोलकाता (THE END NEWS). 22 नवम्बर को भारतीय क्रिकेट के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया. भारत अपना डे-नाइट टेस्ट मैच पिंक बॉल (Pink Ball) से खेल रहा है. कोलकाता के ईडन गार्डन में खेले जा रहे इस मैच का क्रेज दुधिया रोशनी में खेले जाने वाले टेस्ट मैच से ज्यादा पिंक बॉल से मैच खेलना है.

भारत में पहली बार डे-नाइट टेस्ट क्रिकेट खेला जाएगा और यह 540वां टेस्ट मैच होगा. जहां यह मैच होगा वो ईडन गार्डन एशिया का सबसे पुराना टेस्ट ग्राउंड है और 1934 से यहां टेस्ट मुकाबले हो रहे हैं. पहला टेस्ट इंग्लैंड के खिलाफ 5 से 8 जनवरी 1934 तक पहले भारतीय कप्तान सीके नायडू के नेतृत्व में खेला गया. भारत बांग्लादेश के बीच होने वाले मैच के लिए मेरठ की संसपैरेल्स ग्रीनलैंड्स यानी एसजी कंपनी ने 120 से ज्यादा पिंक बॉल बनाई है.

 

पिंक बॉल से जुड़े 10 रोचक फैक्ट-

1- पहली गुलाबी गेंद का निर्माण ऑस्ट्रेलिया की बॉल मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी कूकाबूरा ने किया था. कूकाबूरा ने कई साल तक इस नई पिंक बॉल को लेकर परीक्षण किया तब जाकर एक बेहतरीन गुलाबी गेंद बनी.

2- पहली पिंक बॉल तो 10 साल पहले बन गई थी, मगर इसकी टेस्टिंग करते-करते पांच-छह साल और लग गए.

3- क्रिकेट में पहली बार पिंक बॉल का इस्तेमाल एक वन-डे मैच में किया गया था. ये मुकाबला ऑस्ट्रेलिया बनाम इंग्लैंड की महिला टीमों के बीच 2009 में खेला गया था. पुरुष क्रिकेट में इसे पिंक बॉल आने में छह साल और लगे. 2015 में एडिलेड में ऑस्ट्रेलिया बनाम न्यूजीलैंड के बीच खेले गए पहले डे-नाइट टेस्ट में पिंक बॉल से खेला गया. इसके बाद से इस नई गेंद का सफर आगे बढ़ा.

4- कूकाबूरा कंपनी के मुताबिक शुरुआत में येलो और ऑरेंज सहित कई रंग की बॉल भी बनाई गई, लेकिन इन रंगों की गेंदों में सबसे बड़ी समस्या कैमरा फ्रेंडली नहीं होना रहा. मैच कवर कर रहे कैमरामैन्स ने ऑरेंज व अन्य कलर को कैमरा के लिए कैप्चर कर पाना काफी मुश्किल बताया. इसके बाद सबकी सहमति से पिंक कलर को चुना गया.

5- सफेद गेंद का रंग जल्दी नहीं खराब हो और दूधिया रोशनी में इसे आसानी से देखा जा सके. इसलिए वन-डे में दो नई गेंदें इस्तेमाल की जाती हैं. वहीं टेस्ट क्रिकेट में लगातार 80 ओवर का मैच होने के बाद ही गेंद बदली जाती है. वन-डे की एक पारी के बाद ही सफेद गेंद का रंग भूरा पड़ने लगता है, वहीं 80 ओवर्स तक तो इसका रंग गहरा भूरा हो जाएगा और पिच भी भूरी होती है. ऐसे में पिंक गेंद इससे बेहतर मानी जा रही है. क्योंकि बल्लेबाजों के साथ फील्डर्स को भी इससे मैच में आसानी होगी.

6- एक बार गुलाबी रंग पर मुहर लगने के बाद सबसे बड़ी चुनौती थी कि पिंक में भी कैसा पिंक कलर हो. इसके लिए करीब पिंक के 16 शेड्स ट्राई किए गए.

7- गुलाबी गेंद बनाने वाली कंपनी के समाने बड़ी समस्या इसकी सिलाई में इस्तेमाल किए जाने वाले धागे के रंग को लेकर रही, तमाम प्रयोगों के बाद कूकाबूरा कंपनी ने पहले काले रंग के धागे का इस्तेमाल इसके बाद हरा रंग इस्तेमाल हुआ, फिर सफेद कलर के धागे का प्रयोग हुआ. अंत में हरे रंग की सिलाई पर सबकी सहमति बनी, लेकिन टीम इंडिया जिस कंपनी की बनाई गुलाबी गेंद से खेल रही है उसकी सिलाई काले रंग के धागे से हुई है.

8- अंदर से लाल और गुलाबी दोनों ही गेंद एक तरह की होती है अंतर सिर्फ इनकी कलर कोटिंग का है. बाउंस, हार्डनेस और परफॉर्मेंस के लिहाज से यह तीनों गेंद एक जैसी होती हैं.

9- रेड बॉल में लेदर को लाल रंग से रंग कर उसकी घिसाई की जाती है जबकि गुलाबी गेंद में गुलाबी रंग से घिसाई की जाती है. लेकिन फिनिशिंग के दौरान पिंक बॉल पर रंग की एक और परत चढ़ाई जाती है ताकि गेंद का रंग कुछ अधिक अंतराल तक चमकीला और शाइनी बना रहे.

10- गुलाबी रंग की गेंद की अनुमानित लागत करीब 2800 रुपए है.