COVID-19: असल चुनौतियां अब आएंगी सामने, 10 फैक्ट्स से समझिए कैसे बदलेगा विश्व परिदृश्य


नई दिल्ली (सुभद्र पापड़ीवाल). दुनिया के अर्थ जगत के सामने गंभीर चुनौतियां वो नहीं हैं जो वे लॉक डाउन के दौरान देख रहे हैं. इस वैश्विक तालाबंदी की असल गंभीर चुनौतियां आनी शेष हैं. अभी जो परिदृश्य बन रहा है वह प्रथमदृष्टया स्वास्थ्य संबंधित और तात्कालिक आर्थिक हालात का चित्रण कर रहा है. इस महायुद्ध से फुर्सत मिलने के बाद समस्त विश्व में राजनीतिक हालात क्या बनेंगे यह कहना असंभव है. मनोवैज्ञानिक प्रभाव, सामाजिक, अंतरराष्ट्रीय बाजार व संबंध, पोस्ट ट्रोमा इफैक्ट ये सब परिस्थितियां मिल कर क्या स्वरूप लेंगे यह काल के गर्भ में है. पर इतना अवश्य मान सकते हैं कि इस वैश्विक महामारी के बाद जब समस्त विश्व का जीवन पुनः जीवंत ऊर्जा के साथ अपने तंत्र को स्विच ऑन करेगा तब सबसे पहले भारत रीबूट होगा.

वास्तविक सांख्यिकी पब्लिक डोमेन में उपलब्ध है लेकिन भावी राजनीतिक- आर्थिक परिदृश्य को इन दस बिंदुओं से जानिए.

1- अमेरिका और यूरोप के अधिकांश विकसित देश इस संकट से लंबी लड़ाई लड तो सकते हैं लेकिन वे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अर्जित अपने बेशकीमती आर्थिक संसाधनों को लगभग पूरी तरह से खोखला कर चुकें होंगे.

2- इन देशों की दर्जनों इंश्योरेंस कंपनियां, एविएशन इंडस्ट्री, ट्रांसपोर्ट इंडस्ट्री, हैवी मशीनरी, कैमिकल, आटोमोबाइल और टैक्सटाइल, कन्सट्रक्शन, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, एजुकेशन, एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री लगभग धरातल पर आ जाएंगी और कुछ दिवालिया भी होंगी.

3- कोरोना प्रभावित सभी देशों की उत्पादकता में 1.5 से 2% तक की गिरावट निश्चित है. कुछ क्षेत्रों में तो यह गिरावट आश्चर्यजनक रूप से बहुत अधिक होगी जो कि वैश्विक उपभोक्ताओं के मनोवैज्ञानिक प्रभाव से उत्पन्न होंगी.

4- अन्य यूरोपीय देशों से पृथक, भारत के पास सबसे बड़ी ताकत है उसके उपभोक्ताओं की मांग की ताकत. अमेरिका और अधिकांश यूरोपीय देशों में सीमित जनसंख्या और उपभोक्ता बाजार का छोटा होना उनके लिए एक वरदान ना हो कर, घरेलू अर्थचक्र की गतिज ऊर्जा के लिए बाधक होगा. इन देशों की आर्थिक ताकत उनका घरेलू बाजार ना होकर निर्यात पर अत्यधिक निर्भरता है. उनका निर्यात बाजार इतना जल्दी उठ खड़ा होगा इसमें संदेह है.

5- भारत की सरकार व राज्य सरकारों द्वारा निचले स्तर तक के लगभग 80 करोड़ लोगों की क्रयशक्ति बनाए रखने का निर्णय अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में एक गेम चेंजर साबित होगा.

6- इस महामारी से लडाई के अंतिम पहर तक भारत इस मद में लगभग 5 लाख करोड़ रूपए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष (विभिन्न राहतों को मिला कर) रूप से खर्च कर चुकेगा और मौद्रिक छीजत का पैमाना इससे भी अधिक होगा. यह भारत की 5 माह की अप्रत्यक्ष कर आय के बराबर होगा जो हमारे देश के लिए भारी होगा. इस दौर में अप्रत्यक्ष कर संकलन लगभग 50% तक गिर सकता है. दूसरी तरफ, इस वर्ष के लिए निर्धारित 13.8 लाख करोड़ रूपए के प्रत्यक्ष कर लक्ष्य में लगभग 3 लाख करोड़ रुपए की छीजत स्पष्ट दिखाई दे रही है. 575 टोल नाकों पर ही लगभग 2500 करोड़ रुपए प्रति माह का सीधा असर होगा. अन्य बहुत से मोर्चों पर भी आघात लगेगा. भारत का घरेलू उत्पाद 2.5 से 3% तक रह जाएगा.

7- सरकार द्वारा जारी की जाने वाली लगभग 5 लाख करोड़ रुपए की क्रयशक्ति संसार के सबसे बड़े उपभोक्ता बाजार में जान फूंकने में कामयाब होगी और आवश्यक सामग्री का बाजार बहुत शीघ्र अपने मजबूत धरातल पर खड़ा होगा. यह Blessing in disguise होगा. जब भारत स्वास्थ्य संबंधी अपने आधारभूत संरचना को वैश्विक स्तर पर ले जाने को मजबूर होगा.

8- सूक्ष्म, मध्यम और लघु उद्योगों को बचाने के लिए यदि राज्य की सरकारों ने आवश्यक कदम उठाए एवं उनके मार्ग को अवरूद्ध करने वाली अफसरशाही को दूर रखने में सफल हुए तो रोजगार का गंभीर संकट नहीं होगा.

9- नैतिक और अनैतिक राजनीतिक आचरण पर अभूतपूर्व वैश्विक बहस होगी. तीन महीने बाद, समस्त विश्व के देशों द्वारा चीन की अभूतपूर्व आर्थिक घेराबंदी की जाएगी. चीन को संभवत: यह भारी पड़ने वाला है जिसे रोकना लगभग असम्भव होगा. संसार के आर्थिक पटल पर एकछत्र राज करने के चीन के मंसूबों पर यूरोप, एशिया के अधिकांश देश और अमेरिका एक साथ मिलकर भारी कुंठाराघात करेंगे.

10- महामारी पर नियंत्रण करने के भारत के प्रयास सकारात्मक परिणाम लाएंगे.स्वास्थ्य सेवाएं और बेहतर होगी और इस पर खर्च भी बढ़ेगा. कुछ भीतरी राजनीतिक शक्तियां भारत में आर्थिक व राजनीतिक अराजकता की स्थिति बनाने की हर संभव कोशिश करेंगी. वे व्यापक स्तर पर असफल होंगे क्योंकि भारत की आम आवाम इस समय सिर्फ और सिर्फ इस विपदा से छुटकारा पाने के लिए अपने राष्ट्रीय और स्थानीय नेतृत्व के साथ एकजुटता से खड़ी है.