कौन है सोनिया गांधी? 73 वें जन्मदिन पर 10 बड़ी बातों से समझें सोनिया के जीवन को.


नई दिल्ली (THE END NEWS). पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी की बहू और पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी अपने जीवन के 73 साल पूरे कर चुकीं हैं. जीवन में कई उतार चढाव देखने और आलोचनाओं को सहने के बावजूद भारतीय राजनीति में खुद को स्थापित और साबित करने वाली सोनिया गांधी का जन्म 9 दिसम्बर 1946 को इटली के विसेन्जा से कुछ दूर एक छोटे से गांव लूसियाना में हुआ.

भले ही कांग्रेस पिछले दो लोकसभा (2014 और 2019) चुनावों में राजनीतिक आपदा की शिकार हुई हो बावजूद इसके सोनिया गांधी आज भी दिन रात फिर से पार्टी को खड़ा करने के लिए उम्र के इस पड़ाव पर भी समर्पित हैं. लगातार विदेशी होने का मुद्दा भी उठता रहा लेकिन सियासत के यह वार उनके मजबूत इरादों के आगे कमजोर नजर आए. एक महिला होने के बावजूद जीवन में दुखों के कई पहाड़ों को अपने फौलादी इरादों से पिघलाकर फिर से खड़ा होना सोनिया गांधी से सीखा जा सकता है. राजीव गांधी की मौत के बाद अपने दोनों बच्चों राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का लालन पालन करना और कांग्रेस की सियासत को संभालना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं कहा जा सकता था. पर शायद सोनिया गांधी का जन्म हर वक्त संघर्ष कर आदर्श स्थापित करने के लिए हुआ होगा जो आज भी लगातार संघर्ष करती नजर आती हैं.

कौन है सोनिया गांधी? 10 बड़ी बातें:

1- सोनिया गांधी का जन्म जन्म इटली में हुआ. विवाह से पूर्व उनका नाम एंटोनियो माइनो था. इटली के विसेन्जा से कुछ दूर एक छोटे से गांव लूसियाना में 9 दिसंबर 1946 को जन्म लेने वालीं सोनिया के पिता स्टेफिनो मायनो एक भूतपूर्व फासिस्ट सिपाही थे. सोनिया का बचपन इटली से कुछ दूर स्थित ओर्बसानो में गुजरा.

2- 1964 में सोनिया गांधी इंग्लैंड चली गईं. जहां कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में उन्होंने अंग्रेजी भाषा में पढ़ाई की. यही वो वक्त था जब सोनिया गांधी की मुलाकात राजीव गांधी से हुई. राजीव उस वक्त ट्रिनिटी विद्यालय कैम्ब्रिज में पढ़ रहे थे. राजीव गांधी ने सोनिया को पहली बार एक स्थानीय ग्रीक रेस्टोरेंट में देखा और प्यार की शुरुआत हुई. इस मुलाकात ने ही सोनिया की जिंदगी बदल दी और दो खुबसूरत आत्माओं ने दो अलग-अलग देशों से होने के बावजूद एक होने का फैसला किया.

3- इंग्लैंड में पढ़ाई के बाद इंडिया के सबसे बड़े सियासी परिवार में शादी होने का गौरव सोनिया गांधी को मिला. इतना ही नहीं नेहरू-गांधी की विरासत वाली देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी की कमान सबसे लंब वक्त तक संभालने का सौभाग्य भी सोनिया गांधी का नसीब हुआ. खुद को सोनिया ने विदेशी होने के बावजूद जिस तरह से राजनीति में साबित किया, यह उसी का नतीजा था कि वो दुनिया की सबसे ताकतवर महिलाओं में शामिल हुईं.

4- सोनिया गांधी के पिता स्टिफनो माइनो को सोनिया और राजीव का यह रिश्ता मंजूर नहीं था. वो नहीं चाहते थे कि सोनिया की राजीव गांधी से शादी हो क्योंकि वो भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे थे. लेकिन इन सबके बावजूद राजीव गांधी के प्यार का भरोसा इतना था कि 1968 में दोनों की शादी हो गई, जिसके बाद सोनिया गांधी भारत आ गईं और 1983 में उन्होंने भारतीय नागरिकता स्वीकार कर ली.

5- सोनिया गांधी को जहां इंडिया के सबसे बडे सियासी परिवार की बहु बनने और कमान संभालने का सम्मान प्राप्त है वहीं अपनी सास (इंदिरा गांधी) और पति (राजीव गांधी) की कुर्बानी का गम भी सोनिया गांधी को झलना पड़ा जो किसी भी महिला के जीवन का सबसे बड़ा गम होता है. बावजूद इसके सोनिया गांधी ने दुख की इस घड़ी में हिम्मत हारने के बजाए खुद को संभाला और पूरे परिवार का पूरा जिम्मा उठाया.

6- सोनिया गांधी राजनीति में आने की कतई इच्छुक नहीं थीं, लेकिन आत्मघाती धमाके में राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के वरिष्‍ठ नेताओं ने सोनिया से पूछे बिना उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने की घोषणा कर दी. सोनिया ने इसे नकार दिया. पति की हत्या का घाव इतना गहरा लगा कि उन्होंने यहां तक कहा कि मैं अपने बच्चों को भीख मांगते देख लूंगी, लेकिन राजनीति में कदम नहीं रखूंगी.

7- सोनिया गांधी ने पहली बार 1998 में कांग्रेस अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली थी. इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में उन्होंने खुद अपनी राजनीतिक सफर की कहानी साझा की थी. उन्होंने बताया था, 'मैं नहीं चाहती थी कि राजीव राजनीति में आएं, लेकिन उन्हें इंदिरा गांधी की हत्या के बाद आना पड़ा. इसी तरह मैं भी पॉलिटिक्स में नहीं आना चाहती थी, लेकिन मुझे भी मजबूरी में आना पड़ा. जब मैं राजनीति में आई, तब कांग्रेस मुश्किल में थी. अगर मैं राजनीति में नहीं आती, तो लोग मुझे कायर कहते.'

8- पहली बार सोनिया गांधी 1999 में यूपी की अमेठी सीट से चुनाव जीतकर सांसद बनीं. लोकसभा में विपक्ष की नेता चुनी गईं. वो सोनिया गांधी ही थीं जिनकी अगुवाई में 2004 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने NDA को करारी शिकस्त दी. खुद भी चुनाव जीतीं. 23 मार्च 2006 को सांसद पद से इस्तीफा देकर उन्होंने उपचुनाव लड़ा और जीता. 2009 और 2014 में रायबरेली से लोकसभा चुनाव जीतीं.

9- बडी बात यह रही कि 2004 में सोनिया गांधी ने खुद प्रधानमंत्री का पद ठुकराकर मनमोहन सिंह का नाम आगे कर दिया. इसके बाद 2009 में भी यही सिलसिला कायम रखा. यही वो एक और बड़ा कारण रहा कि कांग्रेसियों के मन में सोनिया गांधी का कद और सम्मान लगातार बढता गया. इस पर जब सोनिया गांधी से सवाल पूछा गया कि वो प्रधानमंत्री क्यूं नहीं बनीं तो उनका जवाब था कि उन्हें मनमोहन सिंह पर खुद से बेहतर प्रधानमंत्री साबित होने का भरोसा था.

10- हिंदी भाषा के मामले में सोनिया गांधी बताती हैं कि शुरुआत में उन्हें हिंदी में बोलने में दिक्कत होती थी, वो खुद को इस भाषा में असहज महसूस करती थीं लेकिन उनकी सास इंदिरा गांधी उनसे हिंदी में ही बात करने को कहती थीं. जिसके बाद विदेशी होने के बावजूद वो धीरे-धीरे वो हिंदी बोलने लगीं. हालांकि विपक्षियों और विरोधियों ने कई बार उनके विदेशी मूल और कमजोर हिन्दी को भी मुद्दा बनाया, लेकिन वो मजबूत इरादों से मुकाबला करती रहीं.