बिहार में फेल हुए ​अविनाश पाण्डे, महागठबंधन में सबसे खराब परफॉर्मेंस कांग्रेस की रही, राहुल गांधी की लीडरशिप पर उठे सवाल


पटना (आलोक शर्मा). राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी रहे अविनाश पाण्डे क्या बिहार चुनावों में फेल हो गए. बिहार कांग्रेस के साथ राजस्थान कांग्रेस में भी यह चर्चा का विषय बना हुआ है. क्योंकि ​अविनाश पाण्डे को चुनावों से पहले कांग्रेस ने बडी ही ​उम्मीदों के साथ बिहार कांग्रेस स्क्रीनिंग कमेटी का बहुत ही महत्वपूर्ण जिम्मा सौंपा था लेकिन जिस तरह के नतीजे ​बिहार चुनावों में सामने आए उससे तो ऐसा ही लग रहा है. ​पाण्डे कांग्रेस के लिए फायदे के बजाए घाटे का सौदा साबित हो गए. इसका सीधा असर राहुल गांधी के भविष्य पर भी पडता है क्योंकि एक तरफ राहुल को कांग्रेस देश की राजनीति में स्थापित करना चाहती है जबकि दूसरी तरफ वो लगातार निराशाजनक प्रदर्शन के शिकार हो रहे हैं. ऐसे में राहुल गांधी की लीडरशिप पर भी यह सवाल उठना लाजमी है. क्योंकि जिन क्षेत्रों में राहुल गांधी ने रैली की थी वहां महागठबंधन (Mahagathbandhan) की बहुत बुरी गत हुई है और करीब अस्सी फीसदी सीटों पर महागठबंधन को नुकसान हुआ.

कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा और महज 19 पर सिमट गई. यह पिछले चुनाव से 8 सीटें कम हैं. यानी कांग्रेस का बिहार चुनाव में महज 27 फीसदी ही स्ट्राइक रेट रहा. बडी बात यह है कि इस नुकसान का असर कांग्रेस पर अन्य राज्यों में भी पड सकता है. हालात यह हो चले हैं कि महागठबंधन के कई नेता अपनी हार का सारा ठीकरा राहुल गांधी और अविनाश पाण्डे पर फोडने लगे हैं. यह सब उस वक्त हो रहा है जब अगले कुछ ही माह में कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी की वापसी की तैयारी है. महागठबंधन में सबसे खराब परफॉर्मेंस कांग्रेस का रहा है जबकि वामपंथी दलों का सबसे बेहतर स्ट्राइक रेट रहा. आरोप लगाने वालों का कहना है कि अगर कांग्रेस का प्रदर्शन ठीक रहता तो एक दर्जन सीट और निकाल लेते तो तेजस्वी यादव को सीएम बनने से कोई नहीं रोक पाता. गौर करने वाली बात यह है कि 2015 का विधानसभा चुनाव में 41 सीटों में से उसे 27 सीटों पर कांग्रेस ने विजयी पताका फहराया था. जो अच्छा प्रदर्शन था लेकिन इस बार कांग्रेस फेल हो गई.

जानकारों का मानना है कि राजस्थान में भी प्रभारी रहते हुए अविनाश पाण्डे कोई खास कमाल नहीं कर पाए थे और संगठन में एकजुटता नहीं रख पाए थे. यही कारण रहा कि राजस्थान कांग्रेस के उन दो स्टार्स के बीच भी दूरियां बढ गईं जो अपने दम पर राजस्थान में ​बीजेपी को शिकस्त देकर सत्ता पर ​काबिज हुए थे. 

जानकार बताते हैं कि भले ही अविनाश पाण्डे को राजस्थान के बाद बिहार में अहम चुनावी जिम्मा सौंपा गया हो लेकिन वो खुद कभी चुनाव जीतकर अपने आप को बडा खिलाडी साबित नहीं कर पाए हैं. गौर करने वाली बात यह है कि बिहार चुनाव के प्रभारी बनाए गए शक्ति सिंह गोहिल इन चुनावों के दौरान लगातार बीमार रहे. ऐसे में टिकट बंटवारे से लेकर चुनावी रणनीति बनाने तक की सारी जिम्मेदारी अविनाश पांडे के भरोसे ही चली. अविनाश पांडे इस दौरान ना तो अच्छे प्रत्याशियों को टिकट दे पाए और ना ही भरोसेमंद चेहरे तलाश पाए. जिस पर ना केवल कांग्रेस ने बल्कि महागठबंधन के नेताओं ने भी सवाल उठाए थे.

यहां कांग्रेस 70 सीटों पर चुनाव लडी थी और 40 सीटें जीतने की उम्मीद कर रही थी लेकिन चालीस छोडिए 19 ही सीटों पर ही कांग्रेस अपनी लाज बचा पाई. बताया जा रहा है कि अविनाश पाण्डे का मैनेजमेंट यहां फेल रहा  और राहुल भी उन पर जरुरत से ज्यादा विश्वास कर गए जिसका यह  खमियाजा भुगतना पड़ा.