जयपुर : राजस्थान सरकार ने एक बड़ा फैसला करते हुए शहरी क्षेत्रों में 31 दिसंबर 2021 तक एग्रीकल्चर लैंड पर बसी कॉलोनियों का नियमन करने की शुरुआत कर दी है। पहले जहां 17 जून 1999 के बाद एग्रीकल्चर लैंड पर बसी कॉलोनियों के नियमन का प्रावधान नहीं था। वहीं विधानसभा में बुधवार को बहस के बाद राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम की धारा 90-ए की उपधारा 8 में संशोधन के लिए बिल पास हो गया है। राजस्थान भू-राजस्व संशोधन अधिनियम 1956 में इस बिल में नियमन की कट ऑफ डेट को बढ़ाया गया है। इससे शहरों में 17 जून 1999 के बाद कृषि भूमि पर मकान बनाकर रह रहे लोगों को राहत मिलेगी।
90- ए की उप धारा 8 में 17 जून, 1999 से पहले शहरी क्षेत्रों में कृषि भूमि का गैर कृषि उपयोग के लिए लैंड यूज चेंज किए जाने का प्रावधान है। इसके बाद बसी कॉलोनियों के नियमन का प्रावधान नहीं था। अब 31 दिसंबर 2021 तक कृषि भूमि पर बने मकानों का नियमन का प्रावधान कर दिया है। गृह निर्माण सहकारी समितियों के 16 जून 1999 के बाद जारी पट्टों पर और जमीन आवंटन से जुड़े प्रकरणों पर इस बिल के प्रावधान लागू नहीं होंगे।
पट्टा देने के मकसद से लाया गया है यह बिल विधानसभा में भू-राजस्व संशोधित अधिनियम पर बहस का जवाब देते हुए UDH मंत्री शांति धारीवाल ने कहा कि 17 जून 1999 के बाद भी शहरों में कई निर्माण हो गए, ऐसे लोगों को पट्टे देने में अब कठिनाई हो रही थी। खातेदारी जमीन पर निर्माण का कोई कंवर्ट नहीं करवाता था, क्योंकि कई चार्ज से बचने के लिए ऐसा किया जाता था। एससी-एसटी के लोगों ने भी कॉलोनियां काट दी और अन्य वर्गों के लोगों को बेच दी। उन पर मकान दुकान बन गए।
ऐसे मकानों को आप तोड़ थोड़े ही देंगे। 31 दिसंबर 2021 तक कृषि भूमि चाहे वह किसी वर्ग की हो उस पर विकसित हो चुकी कॉलोनियों को पट्टा दिया जा सके, इसके लिए संशोधित बिल लाए हैं। यह बिल पट्टा देने के मकसद से लाया गया है।