ट्रेड वॉर के बीच सावधान! 11 साल बाद फिर बड़ी मंदी का खतरा


वाशिंगटन. मंदी की मार एक बार फिर परवान चढ़ सकती है. अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर सुलझ न पाने से वैश्विक अर्थव्यवस्था को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. ब्रिटेन, जर्मनी, रूस, सिंगापुर और ब्राजील मंदी सहित दुनिया के 9 देश मंदी की चपेट में आने वाले हैं या आ चुके हैं. आर्थिक विश्लेषकों की माने तो यदि इसका समाधान नहीं निकाला गया और ट्रेड वॉर जारी रहा तो इससे साल 2021 तक अमेरिकी अर्थव्यवस्था फिर से मंदी की शिकार होगी. इतना ही नहीं पूरी दुनिया की इकोनॉमी को करीब 585 अरब डॉलर का चूना लग सकता है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पिछले दिनों चीन के साथ ट्रेड वॉर खत्म करने की पहल कर चुके हैं और दोनों देश इस महीने के अंत तक फिर से वार्ता शुरू करने जा रहे हैं. लेकिन इस बारे में चर्चा होने लगी है कि वैश्विक मंदी अब करीब आ रही है और समय निकलता जा रहा है. नेशनल एसोसिएशन फॉर बिजनेस इकोनॉमिक्स के एक सर्वे 34 फीसदी आर्थिक विशेषज्ञों ने माना कि मंदी की मार का अगला शिकार अमेरिका का ही है. अमेरिकी अर्थव्यवस्था जिस तरह से सुस्त पड़ रही है, उसकी वजह से यह 2021 में मंदी की चपेट में आ सकता है. व्यापार में जारी अनिश्चितता साल 2021 तक दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद में 0.6 फीसदी की कमी ला सकता है. इस प्रकार यह टैरिफ बढ़ाने के सीधे असर को दोगुना कर देगा और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुमान के अनुसार इससे 2021 तक दुनिया के जीडीपी में 585 अरब डॉलर की गिरावट आ सकती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिकी सरकार मौद्रिक नीति से इस झटके के असर को कम तो कर सकती है, लेकिन इससे पूरी तरह से बचा नहीं जा सकता. दुनिया भर के केंद्रीय बैंक भी यदि कमजोर मांग को दूर करने के लिए मिलकर काम करें तो भी 2021 तक दुनिया की GDP में 0.3 फीसदी की गिरावट आएगी. अभी हाल के दिनों में यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, एशिया में भारत सहित कई देशों के केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों में कटौती की है ताकि ट्रेड वॉर के असर को कम किया जा सके. अनिश्चितता और आशंकाओं के माहौल के बीच अभी अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने लैपटॉप, सेल फोन जैसे चीन के उत्पादों पर 10 फीसदी का अतिरिक्त आयात कर लगाने का निर्णय टाल दिया है. गौरतलब है कि चीन और अमेरिका में एक साल से ट्रेड वॉर चल रहा है. जब ट्रंप प्रशासन ने चीन से आयात होने वाले स्टील और एल्युमिनियम पर भारी टैरिफ लगा दिया था, तब जवाब में चीन ने भी अरबों डॉलर के अमेरिकी आयात पर टैरिफ बढ़ा दिया था. और फिर यहीं से इस आर्थिक जंग की शुरुआत हुई.

भारत का क्या होगा?

भारत में हालांकि मंदी के उतने लक्षण नहीं दिख रहे हैं, लेकिन वाहन उद्योग जैसे कुछ क्षेत्र खतरनाक रूप से मंदी के करीब हैं. भारत की अर्थव्यवस्था भी बडे स्तर पर मंदी की चपटे में आएगी हालांकि इसके ज्यादा आसार नहीं हैं लेकिन पिछली तीन तिमाहियों में गिरावट हो रही है और विकास का पूर्वानुमान भी नहीं बढ़ रहा है. औद्योगिक उत्पादन और कोर इंफ्रास्ट्रक्चर दोनों क्षेत्रों में गिरावट देखी गई है. ऐसे में भारत पर सीधे तौर पर बहुत मार ना पड़े, लेकिन अमेरिकी और चीन की कंपनियों से जुड़े कारोबारियों और कार्मिकों पर इसका असर होगा इसमें कोई दो राय नहीं.

कैसे आई थी पहले मंदी?

2002-04 के दौरान अमेरिका में होम लोन सस्ता और आसान हुआ तो प्रॉपर्टी की डिमांड लगातार बढ़ती गई. प्रोपर्टी के दाम काफी बढ़ गए थे. तेजी के दौरान लीमैन ने लोन देने वाली 5 कंपनियां खरीदी थीं लेकिन कुछ ही वक्त बाद ऊंची कीमत पर प्रॉपर्टी की डिमांड कम हुई तो दाम घटने लगे. कर्जदार डिफॉल्टर होना शुरू हो गए. नतीजा वही रहा जिसका आखिरकार कुछ विशेषज्ञों को अंदाजा लग चुका था. मार्च 2008 में अमेरिका की दूसरी सबसे बड़ी होम लोन कंपनी बियर स्टर्न्स डूब गई. 17 मार्च को लीमैन के शेयर 48% गिरे, और ऐसे गिरे की फिर कभी उठ नहीं पाए. कोरिया डेवलपमेंट बैंक द्वारा इसमें निवेश और बार्कलेज में विलय की बात नाकाम रही तो 15 सितंबर 2008 को इसने बैंकरप्सी के लिए आवेदन कर दिया गया. इतनी बड़ी आर्थिक मंदी का जिम्मेदार करीब एक दर्जन से अधिक लोगों को बताया गया था, लेकिन आरोप केवल 6 पर ही सिद्ध हो पाए थे. इन 6 लोगों में एंगलो-आइरिश बैंक के पूर्व सीईओ डेविड ड्रम, गिल्टनिर के पूर्व सीईओ लॉरस वेल्डिंग, लैंड्सबैंकी के सिगुरजोन अरणासन, कोपथिंग के पूर्व चेयरमैन सिगुरडर इनारसन और पूर्व सीईओ हरिडर मार सिगुरडर, क्रेडिट सुसे के पूर्व ग्लोबल चीफ करीम सेराजेलडिन शामिल थे.