वो 10 बड़ी गलतियां जिन्होंने राजस्थान से करा दी अविनाश पाण्डे जैसे सुलझे हुए नेता की विदाई


जयपुर/ नई दिल्ली. राजस्थान में पायलट-गहलोत विवाद शांत होने की ओर है. और पायलट कैम्प की मांगों के मुताबिक आलाकमान ने अपने वादे पूरे करने शुरु कर दिए हैं. इसी कड़ी में सबसे पहले छुट्टी राजस्थान प्रदेश कांग्रेस प्रभारी अविनाश पाण्डे की हुई. पायलट खेमे ने आलाकमान के समक्ष आरोप लगाया था अविनाश पांडे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) के काफी करीबी हैं और दूसरे पक्ष की बात को ठीक तरीके से तवज्जो नहीं देते थे. पायलट खेमे ने राजस्थान में अपनी प्रमुख मांगों के साथ अविनाश पांडे को हटाने की भी पुरजोर तरीके से मांग की थी. जिसके बाद राजस्थान में अजय माकन को राजस्थान का नया प्रभारी महासचिव बनाया गया.

हालांकि ऐसा नहीं है कि अविनाश पाण्डे ने राजस्थान की राजनीति में कांग्रेस के लिए कुछ नहीं किया, लेकिन उनसे कुछ ऐसी गलतियां हुईं जिससे उनकी राजस्थान से विदाई हो गई.

पाण्डे की 10 बड़ी गलतियां


1- आलाकमान को गुमराह किया, पायलट-गहलोत विवाद की तथ्यात्मक रिपोर्ट आलाकमान को समय पर नहीं दी, ना ही हकीकत सामने रखी. जिससे आलाकमान समय रहते चेत पाता.


2- कभी पायलट-गहलोत के बीच जारी कोल्ड वार को समाप्त करने का प्रयास नहीं किया, दोनों को साथ बैठाकर विवाद के निपटारे के भी प्रयास नहीं किए.


3- बीजेपी द्वारा कांग्रेस विधायकों की हो रही तोड़फोड़ की सूचना तो दूर पायलट-गहलोत का विवाद इस कदर बढ जाएगा की सत्ता ही हाथ से जाने की नौबत आ जाएगी इसको अविनाश पाण्डे भांप तक नहीं पाए. यह उनकी बड़ी विफलता रही. क्योंकि इस एपिसोड से हाथ में आई कांग्रेस की सत्ता निकलने के आसार बन गए.


4- लोकसभा चुनावों में गहलोत और पायलट के बीच मनमुटाव चरम पर था. बावजूद इसके स्थिति को नहीं संभाला, जिससे लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की पुअर परफोर्मेंस देखने को मिली. सारी सीटें हाथ से निकल गई. और यह सब तक हुआ तब हुआ तक कुछ वक्त पहले ही कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन करते हुए राज्य की सत्ता पर काबिज हुई थी, और लोकसभा चुनावों के वक्त राजस्थान में सत्ता कांग्रेस की थी.


5- पायलट-गहलोत और अन्य नेताओं में गुटबाजी के हालात देखते हुए सोनिया गांधी ने जनवरी में ही सत्ता और संगठन के बीच मनमुटाव दूर करने, बेहतर समन्वय के लिए एक आठ सदस्यीय कमेटी का गठन किया था, जिसकी कमान भी अविनाश पाण्डे को सौंपी गई थी लेकिन पांडे ने कभी गंभीरता से इसकी बैठक ही नहीं बुलाई, आलाकमान के आदेशों की अवहेलना की.


6- अविनाश पाण्डे राज्य में कांग्रेस की सरकार आने के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के निर्देशानुसार काम करने लगे जबकि होना यह चाहिए था कि वो आलाकमान की मंशा के मुताबिक पार्टी के मुख्यमंत्री के साथ उप मुख्यमंत्री और प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट को साथ लेकर सत्ता चलाने के लिए कार्य करते. क्योंकि पहले ही गुटबाजी चरम पर थी, मीडिया के मार्फत लगातार यह खबरें भी समय समय पर सामने आ रही थीं, लेकिन अविनाश पाण्डे सत्ता के प्रभाव में अपने हित साधने में जुट गए. सीएम अशोक गहलोत का सम्मान, लिहाज तो ठीक था लेकिन उनकी नैतिक जिम्मेदारी संगठन को संभालना भी था. वो ठोस निर्णय पर नहीं पहुंच पाए.


7- एक तथ्य यह भी सामने आया था कि सचिन पायलट ने समय रहते उनके साथ हो रहे अन्याय और उनकी नाराजगी के कारण प्रदेश प्रभारी होने के नाते अविनाश पाण्डे को बताए थे लेकिन पाण्डे ने यह बात आलाकमान को बताने के बजाए अशोक गहलोत को बताई. ऐसा एक नहीं, दो नहीं, कई बार हुआ जो पायलट को नागवार गुजरा, क्योंकि इससे खटास कम होने के बजाए गहलोत के मन में भी पायलट के प्रति मनमुटाव बढना लाजमी था. गहलोत ना चाहते हुए भी इससे पायलट से दूर होते चले गए, दोनों नेताओं में अविनाश पाण्डे की इस अपरिपक्वता ने दूरियां बढा दी.


8- राजस्थान विधानसभा चुनावों में जिन पार्टी के कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों ने लम्बे समय तक मेहनत कर जीत दिलाई वो अभी तक राजनीतिक नियुक्तियों का इंतजार कर रहे हैं लेकिन सरकार बने हुए डेढ साल बीत जाने के बावजूद पाण्डे समझ ही नहीं पाए कि क्या किया जाए और क्या नहीं? वो पूरी तरह से इस मामले में गहलोत पर निर्भर हो गए जबकि होना यह चाहिए था कि गहलोत-पायलट को साथ लेकर बैठते और इस काम को जल्द से जल्द पूरा करवाते.


9- अविनाश पाण्डे राजस्थान में कांग्रेस के प्रभारी थे, और उनका ओहदा क्या था वो खुद ही इस बात को भूल गए. जब पायलट बगावत पर उतरे तो संयमित, सोची समझी बयानबाजी के बजाए खुलकर पायटल गुट के विरोध में बोलने लगे, सोशल मीडिया पर बयानबाजी करने लगे जिससे आलाकमान भी नाराज हुआ. जबकि पाण्डे की भूमिका राजस्थान कांग्रेस में एक अभिभावक की थी, वो काफी अहम और जिम्मेदार पद पर थे. उन्हें दोनों नेताओं को परिवार के सदस्य के रुप में साथ रखना था, वो बहुत जल्दी ही इस मामले को सुलझाने के बजाए, पायलट कैम्प को सुलटाने में लग गए.


10- जब कांग्रेस सत्ता में आई तो अविनाश पाण्डे की वर्किंग संगठन की मजबूती के सतत प्रयास करने के बजाए सत्ता में ज्यादा रुचिकर हो गई. जबकि उनका काम सत्ता चलाना नहीं संगठन को और मजबूती से संचालित करना था.