भारत में चर्चित असम NRC का मामला क्या है? जानें 10 बड़ी बातों के साथ


असम. एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स. असम में सबसे पहले 1951 में इसे तैयार किया गया था ताकि ये तय किया जा सके कि कौन इस राज्य में पैदा हुआ है, और भारतीय है और कौन पड़ोसी मुस्लिम बहुल बांग्लादेश से असम में आया है. दरअसल यह प्रक्रिया राज्य में अवैध तरीके से घुस आए तथाकथित बंगलादेशियों के खिलाफ असम में हुए छह साल लंबे जनांदोलन का नतीजा है. इस जन आंदोलन के बाद असम समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे और साल 1986 में सिटिजनशिप एक्ट में संशोधन कर उसमें असम के लिए विशेष प्रावधान बनाया गया था. अब गृह मंत्रालय ने असम एनआरसी की फाइनल लिस्ट जारी कर दी गई है. इस मसले पर विवाद तब हुआ जब उत्तर प्रदेश के मेरठ में भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक के समापन सत्र में अमित शाह ने कहा कि 'विपक्षी दल चाहे जितना हो-हल्ला करें, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार असम के 40 लाख घुसपैठियों में से एक-एक को बाहर करेगी. केंद्र सरकार घुसपैठियों के प्रति उदारता बरतने के मूड में नहीं है.' अमित शाह आगे कहा कि 'देश में जहां-जहां घुसपैठिये हैं, उन सबको देश से बाहर जाने का रास्ता भाजपा की सरकार दिखाएगी.' जबकि इस मसौदे के आने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी साफ कहा था कि जो लोग एनआरसी (NRC) के ड्राफ्ट में जगह बनाने से छूट गए हैं, उनके द्वारा दाखिल की जाने वाली आपत्तियों की प्रक्रिया पूरी तरह से निष्पक्ष होनी चाहिए. वहीं चुनाव आयोग ने भी स्पष्ट किया कि एनआरसी से नाम हटने का मतलब यह नहीं है कि मतदाता सूची से भी ये नाम हट जाएंगे. इससे साफ था कि ना तो सुप्रीम कोर्ट ने, और ना ही चुनाव आयोग इन लाखों लोगों को 'अवैध नागरिक' मान रहा था, लेकिन भाजपा के नेता लगातार इन्हें 'घुसपैठिये', 'बांग्लादेशी' के नाम से पुकार रहे थे. जिससे राजनीतिक विवाद बढ़ता गया. लेकिन सबके जहन में एक ही सवाल है कि आखिल क्या है यह पूरा मामला?

इन 10 बड़ी बातों से जानें असम NRC मसला है क्या?

1- एनआरसी (NRC) की फाइनल लिस्ट के मुताबिक 3 करोड़ 11 लाख 21 हजार लोगों को फाइनल लिस्ट में जगह मिली है. 19 लाख 06 हजार 657 लोगों को बाहर कर दिया गया.

2- केवल एनआरसी में नाम ना आने से कोई विदेशी नागरिक घोषित नहीं हो जाता, इसलिए लोगों को बहुत ज्यादा डरने की जरुरत नहीं.

3- जिनके नाम शामिल नहीं हैं, उन्हें इसके बाद फ़ॉरेन ट्रायब्यूनल या एफटी के सामने जरुरी दस्तावेजों के साथ पेश होना होगा, यह अवधि 120 दिन की रखी गई है.

4- किसी के भारतीय नागरिक होने या न होने का निर्णय फ़ॉरेन ट्राइब्यूनल ही करेगा. इस निर्णय से असंतुष्ट लोगों के पास हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प मौजूद है.

5- इन सबके बावजूद यदि कोई विदेशी नागरिक घोषित हो जाता है तो कानूनन उन्हें हिरासत में लेकर निर्वासित करने प्रावधान है. लेकिन सरकार ने अभी इस सन्दर्भ में कोई टिप्पणी नहीं की है.

6- इस रजिस्टर को पहली बार अपडेट किया गया. इसमें उन लोगों को भारतीय नागरिक के तौर पर स्वीकार किया जाना है जो ये साबित कर पाएं कि वे 24 मार्च 1971 से पहले से राज्य में रह रहे हैं. 24 मार्च 1971 वो तारीख है जिस दिन बांग्लादेश ने पाकिस्तान से अलग होकर अपनी आजादी की घोषणा की थी.

7- 30 जुलाई 2018 में सरकार ने एक फाइनल ड्राफ्ट प्रकाशित किया था जिसमें करीब 41 लाख लोगों के नाम शामिल नहीं हुए थे, जबकि वो लोग असम में रह रहे हैं.

8- 26 जून 2019 को एक नई अतिरिक्त लिस्ट प्रकाशित हुई जिसमें करीब एक लाख नए नामों को सूची से बाहर किया गया था.

9- गौरतलब है कि साल 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अगुआई में केंद्र सरकार, असम सरकार और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) के बीच त्रिपक्षीय बैठक हुई, जिसमें तय किया गया कि असम समझौते में किए गए वादों को पूरा करने के लिए NRC को अपडेट करने की दिशा में कदम उठाए जाने चाहिए. इसके लिए तौर-तरीकों को केंद्र ने असम सरकार की सलाह से स्वीकार किया. जिसके बाद मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही इसपर काम तेज किया और इस बोल्ड निर्णय को लिया.

10- 4 साल से 62 हजार कर्मचारी एनआरसी लिस्ट बनाने में जुटे थे. एनआरसी लिस्ट जारी होने के साथ 4 साल से जारी प्रक्रिया पूरी हो गई. असम में एनआरसी कार्यालय 2013 में बना था, पर सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में काम 2015 से शुरू हुआ. पहली लिस्ट 2017 और दूसरी लिस्ट 2018 में प्रकाशित हुई थी.