गहलोत की बसपा पर 'सर्जिकल स्ट्राइक', सभी छह विधायक बसपा छोड़ कांग्रेस में शामिल


'हाथी' नहीं हमारा साथी, अब हाथी नहीं 'हाथ' का साथ

जयपुर. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को यूं ही राजनीति का जादूगर नहीं कहा जाता. यह खबर अशोक गहलोत के कसीदे पढ़ने के लिए नहीं लिखी जा रही है बल्कि जो सच है वो बताने के लिए लिखी जा रही है. राजनीति के इस जादूगर ने खुद को एक बार फिर गजब का गहलोत साबित करने में कोई कमी नहीं छोड़ी. यह सब उस वक्त होता है जब हर नेता की फर्स्ट चॉइज मोदीमय इंडिया में भाजपा के साथ काम करने की हो और कांग्रेसी अपना घर छोड़कर भाजपाई हो रहे हैं. ऐसे में अशोक गहलोत ने अपनी राजनीतिक परिपक्वता का परिचय देते हुए बहुजन समाज पार्टी के सभी छह विधायक कांग्रेस में शामिल कर लिए और खुद को देश की प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने वाली मायावती को दूसरी बार बड़ा झटका दे दिया. बसपा के सभी छह विधायकों ने सोमवार रात अचानक अपनी पार्टी का राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस में विलय करने के लिए एक पत्र राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष को सौंपा. पत्र में बहुजन समाज पार्टी (BSP) विधायकों ने कहा है कि वे अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर रहे हैं. विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के मुताबिक 'बसपा विधायकों ने उनसे मुलाकात की और विलय के बारे में एक पत्र उन्हें सौंपा.' बसपा के छह विधायकों में राजेंद्र सिंह गुढ़ा, जोगेंद्र सिंह अवाना, वाजिब अली, लखन सिंह मीणा, संदीप यादव और दीपचंद शामिल हैं. विधायनसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने इस विलय को मंजूरी दे दी. सभी बसपा छोड़ कांग्रेस में आए विधायकों ने साफ संदेश दे दिया कि अब 'हाथी नहीं, हाथ का साथ.'

बसपा विधायकों के कांग्रेस में विलय से प्रदेश की अशोक गहलोत सरकार और अधिक मजबूत और स्थिर हो जाएगी. इतना ही नहीं गहलोत की बराबरी करने में लगे सचिन पायलट को भी गहलोत ने अपनी मजबूती का एक बडा मैसेज दे दिया है. आलाकमान के भरोसे को खुद पर और मजबूत कर लिया है. माना जा रहा है लम्बे समय से बसपा के सभी छह विधायक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लगातार संपर्क में थे, पर गहलोत ने किसी को इसकी भनक तक नहीं लगने दी. और तो और दिनभर वो अपने आप को बाढ़ और जलमग्न क्षेत्रों के दौरों में व्यस्थ रखे हुए थे और शाम को यह पॉलिटिक गेम कर दिया. राजस्थान में बसपा के साथ उनके ही विधायकों ने दूसरी बार ऐसा राजनीतिक जुल्म किया है. इस पॉलिटिकल गेम से पहले सोमवार रात बीएसपी विधायकों ने गहलोत से मुलाकात की और अचानक विधानसभा अध्यक्ष को अपना पत्र सौंपकर कांग्रेस में विलय की घोषणा कर दी और 'हाथी नहीं हमारा साथी' का संदेश दे दिया.

 

ये 6 विधायक हुए 'हाथी छोड़ हाथ के साथी'

राजेंद्र गुढा ( उदयपुरवाटी, झुंझुनूं)

वाजिब अली (नगर भरतपुर)

दीपचंद खेरिया (किशनगढ़ बास, अलवर)

लाखन सिंह (कराैली)

जाेगिंदर अवाना (नदबई,भरतपुर)

संदीप यादव (तिजारा, अलवर)

अब मायावती और गहलोत आमने-सामने

उधर बसपा के विधायक तोड़ने पर मायावती खासी भड़कीं नजर आ रही हैं. उन्होंने ट्वीट के जरिए बयान जारी कर कहा कि 'ऐसा कर कांग्रेस ने फिर एक बार गैर भरोसेमंद और धोखेबाज होने का प्रमाण दे दिया है. ऐसा तब हुआ है जब बसपा कांग्रेस को बाहर से समर्थन दे रही है. कांग्रेस अपने कटु विरोधियों से लड़ने की जगह उन पार्टियों को आघात पहुंचा रही है जो उन्हें सहयोग व समर्थन देते रहे हैं. कांग्रेस एससी, एसटी व ओबीसी विरोधी पार्टी है और इन वर्गों के आरक्षण के लिए कभी कुछ नहीं किया. कांग्रेस हमेशा ही बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर व उनकी मानवतावादी विचारधारा की विरोधी रही. इसी कारण डॉ. आंबेडकर को देश के पहले कानून मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था. कांग्रेस ने उन्हें न तो कभी लोकसभा में चुनकर जाने दिया और न ही भारतरत्न से सम्मानित किया.' मायावती के इस मसले पर आए बयान के ठीक बाद गहलोत ने कहा कि मायावती का बयान देना स्वभाविक है और मैं उनकी स्थिति समझ सकता हूं.लेकिन बसपा विधायकों को कांग्रेस में शामिल होने के लिए कोई प्रलोभन नहीं दिया गया. मायावती को राजस्थान की परिस्थितियां समझनी चाहिए. प्रदेश में बसपा सरकार बन नहीं सकती इसलिए बसपा विधायकों ने उचित फैसला किया है.

गौरतलब है कि राज्य में 2009 में भी अशोक गहलोत के पहले कार्यकाल के दौरान, बसपा के सभी छह विधायकों ने कांग्रेस का दामन थामा था और तत्कालीन कांग्रेस सरकार को स्थिर बनाया था. उस समय सरकार स्पष्ट बहुमत से पांच कम थी. प्रदेश की 200 सीटों वाली विधानसभा में अभी कांग्रेस के 100 विधायक हैं और उसके सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के पास एक विधायक है. सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी को 13 निर्दलीय विधायकों में से 12 का बाहर से समर्थन प्राप्त है जबकि दो सीटें खाली हैं. बीएसपी के विधायकों के इस निर्णय के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और कानूनी राय ले रहीं हैं.

2009 में ये भी हुए थे शामिल

रमेश मीणा (सपोटरा)

राजकुमार शर्मा (नवलगढ़)

रामकेश मीणा (गंगापुर सिटी)

गिर्राज सिंह मंलिगा (बाड़ी)

राजेंद्र गुढा (उदयपुरवाटी)

मुरारीलाल मीणा (दौसा)

 

अब आगे क्या होगा?

उधर इस विलय से गहलोत ने खुद को सियासत का सबसे बड़ा जादूगर साबित करते हुए साफ मैसेज दिया है कि उनका कोई विकल्प नहीं है. अब कांग्रेस में शामिल बसपा विधायकों मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सकता है. इससे कांग्रेस के भीतर संघर्ष की भी आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता. उपचुनाव और निकाय चुनाव में कांग्रेस को इस विलय का फायदा मिलेगा, क्योंकि बसपा के जो 6 विधायक कांग्रेस में आए हैं, उनकी जातिगत पकड़ काफी मजबूत है.