अमेरिका और ईरान क्यों हैं एक दूसरे की जान के दुश्मन? जानिए 10 बड़ी वजह


अमेरिका/ईरान. यह बात 1953 की है, जब अमेरिकी गुप्तचर एजेंसी सीआइए (CIA) ने ब्रिटेन के साथ मिलकर तेल के खेल में ईरान के निर्वाचित प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसादेक को अपदस्थ करा दिया था. बताया जाता है कि धर्मनिरपेक्ष छवी वाले प्रधानमंत्री मोसादेक तेल उद्योग का ईरान के हित में राष्ट्रीयकरण करना चाहते थे लेकिन अमेरिका को यह कतई मंजूर नहीं थी और यहीं से दोनों देशों के बीच दुश्मनी के बीज बोए गए. दुश्मनी के यह बीज भी ऐसे पड़े की अब तक दोनों देशों के बीच रिश्तों की मिठास के सभी प्रयास विफल ही नजर आए. डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में रिश्ते और बुरे हो गए हैं. हाल में ईरान के सर्वोच्च नेता के बाद दूसरा स्थान रखने वाले कुद्स फोर्स के प्रमुख जनरल कासिम सुलेमानी को अमेरिका ने ड्रोन हमले में मौत के घाट उतार दिया. जिसका कहीं विरोध तो कहीं समर्थन हो रहा है, पर दोनों देशों के बीच तनाव अब परवान पर है अब अमेरिका के हमले के जवाब में ईरान भी इराक में मौजूद अमेरिकी ठीकानों पर हमला बोल चुका है. ईरान ने जामकरन मस्जिद के ऊपर लाल झंडा फहराकर युद्ध की चेतावनी दी है. इससे पहले हुसैन साहब ने कर्बला युद्ध के दौरान मस्जिद के ऊपर लाल झंडा फहराया था. लाल झंडा फहराने का मतलब होता है कि युद्ध के लिए तैयार रहें या युद्ध शुरू हो चुका है. दोनों देशों के बीच के इस तनाव पर दुनियाभर की नजरें हैं, भारत अभी स्थिति को समझने, क्या सही क्या गलत है को जानकार प्रतिक्रिया देने का इंतजार कर रहा है. पर दोनों देशों से शांति की अपील भी की है. उधर मामला इतना गंभीर हो चुका है कि अमेरिका ने अपने नागरिकों से तुरंत इराक और ईरान छोड़ने को कहा है.

 

दुश्मनी के 10 बड़े फैक्ट-

 

1- 1953 में अमेरिकी गुप्तचर एजेंसी सीआइए (CIA) ने ब्रिटेन के साथ मिलकर तेल के खेल में ईरान के निर्वाचित प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसादेक को अपदस्थ करा दिया था. मोसादेक तेल उद्योग का ईरान के हित में राष्ट्रीयकरण करना चाहते थे लेकिन अमेरिका को यह कतई मंजूर नहीं थी और यहीं से दोनों देशों के बीच दुश्मनी के बीज बोए गए.

2- 3 जुलाई 1988 को भी तनाव के बीच दोनों देशों में दुश्मनी बढाने वाली एक और बड़ी घटना हुई. अमेरिकी युद्धपोत ने मक्का जाने वाले तीर्थयात्रियों से भरे एक ईरानी यात्री जहाज को उड़ा दिया, जिसमें 290 यात्री मारे गए. ईरान ने इसका पुरजोर विरोध किया, हालांकि अमेरिका ने इस मामले में गलती स्वीकार करते हुए कहा कि एयरबस-ए-300 को उनकी सेना ने लड़ाकू जेट समझ कर यह कार्रवाई कर दी.

3-1979 में अमेरिकी समर्थन प्राप्त ईरान के शाहरजा शाह पहलवी के खिलाफ पश्चिमी प्रभाव में आने के आरोप लगे, जिसके बाद उनके खिलाफ जबरदस्त प्रदर्शन हुए. हालात ऐसे हुए कि व्यापक प्रदर्शन के बाद देश छोड़ना पड़ा था. यह भी दोनों देशों के बीच तनाव का एक बड़ा कारण रहा. शाहरजा शाह पहलवी के देश छोड़ने के बाद इस्लामिक नेता अयातुल्ला खामेनेई ने सत्ता संभाली और जनमत संग्रह कर उसी वर्ष अप्रैल के पहले दिन ईरान को इस्लामिक गणतंत्र घोषित कर दिया गया.

4- इस पूरे घटनाक्रम का ही नतीजा रहा कि बाद में प्रदर्शनकारियों ने अमेरिका के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और 1979 नवंबर में तेहरान स्थित अमेरिकी दूतावास को घेर लिया. इसके बाद 444 दिनों तक 52 अमेरिकियों को बंधक बनाकर रखा. जिससे दोनों देशों के रिश्तों में खटास और बढ़ गई. हालांकि अमेरिका में रोनाल्ड रीगन राष्ट्रपति बनते ही तब जनवरी 1981 में छोड़ा गया.

5- 52 बंधकों में से किसी को भी भले ही ईरान ने मारा नहीं था लेकिन नजरबंद किए गए इन लोगों से जानवरों जैसा बर्ताव किया गया, जिसका नतीजा यह निकला कि अमेरिका और ईरान के रिश्ते बेहद खराब हो गए.

6- 2013 के दोनों देशों के रिश्ते फिर से सुधारने के प्रयास हुए. सितंबर, 2013 में ईरान के उदारवादी नेता हसन रुहानी और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने फोन पर बात की. दोनों देशों के बीच यह 30 वर्षों में पहली उच्चस्तरीय वार्ता थी. इसी का नतीजा रहा कि 2015 में ईरान ने अपने परमाणु अभियान को सीमित करने पर सहमति दी. साथ ही उस पर लगे आर्थिक प्रतिबंध हटाने की शर्त पर ईरान ने अंतरराष्ट्रीय निरीक्षकों को ईरान आने की भी छूट दी. इस कड़ी में अमेरिका, चीन, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी के साथ मिलकर परमाणु समझौता किया. पर अमेरिका के दिमाग में अपना लक्ष्य शायद तय था. मई 2018 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2015 में हुआ समझौता रद्द कर दिया. इसके बाद ईरान और अमेरिकी रिश्ते में फिर कड़वाहट का दौर शुरु हो गया.

7- 2006 में ईरान ने अपने यहा पांच परमाणु रिएक्टर लगाए थे, जिनमें से एक रूस की मदद से लगाया था. जिसे लेकर इजरायल और अमेरिका समेत कई और देश ईरान से खफा हो गए. हालांकि, ईरान बार-बार कहता रहा है कि उनके द्वारा लगाए गए परमाणु रिएक्टर का मकसद परमाणु हथियार बनाना नहीं बल्कि ऊर्जा उत्पन्न करना है. बावजूद इसके अमेरिका और इजरायल ये मानने को तैयार नहीं हुए. इन्हें शक था कि बुशेर परमाणु प्लांट में ईरान चोरी-छुपे परमाणु बम परमाणु बना रहा है. दूसरा अमेरिका नहीं चाहता था कि रुस ईरान का साथ देकर अमेरिका को अप्रत्यक्ष रुप से चुनौती दे.

8-2015 में हुआ समझौता रद्द करने के साथ ही अमेरिका ने खाड़ी देश में अपने लड़ाकू विमान और सैनिक तैनात कर दिए. मई और जून 2019 में ओमान की खाड़ी में छह तेल टैंकरों को उड़ा दिया गया. अमेरिका ने इसके लिए ईरान को जिम्मेदार ठहराया. इसके बाद 20 जून को ईरानी सेना ने अमेरिकी सैन्य ड्रोन को धवस्त कर दिया.

9- 2002 में उस वक्त के अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने तो ईरान के साथ इराक और उत्तरी कोरिया को शैतानों की धुरी तक कहा था. जिसकी कड़ी प्रतिक्रिया इन देशों ने दी थी.

10- ईरान ने जो परमाणु कार्यक्रम शुरू किया, वह 2002 तक छिपा रहा. जिसका खुलासा होते ही पश्चिमी देशों ने ईरान के प्रति दुश्मन जैसा रवैया अपना लिया. संयुक्त राष्ट्र के साथ अमेरिका और यूरोपीय संघ ने ईरान के कट्टरवादी राष्ट्रपति अहमदीजेनाद सरकार पर कई प्रतिबंध लगा दिए. हालात ऐसे हो गए कि ईरानी मुद्रा दो वर्षों में दो तिहाई तक गिर गई.