अंग्रेज भी घबराते थे इस कवि के देशभक्ति गीतों से, गिरफ्तारी के दे दिए थे आदेश


मुंबई. बात 1943 की है जब हिंदुस्तान में फिल्म 'किस्मत' रिलीज हुई. फिल्म में एक गाना उस वक्त बहुत पॉपुलर हुआ जब हिंदुस्तान अंग्रेजी हुकूमत की गुलामी का दंश झेल रहा था और दूसरी तरफ हिंदुस्तान की आजादी की जंग के लिए देश एक हो रहा था. फिल्म का गाना था 'आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकरा है, दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है...' यह गाना उस वक्त हर हिंदुस्तानी की जुबान पर कुछ ऐसा चढ़ा की राष्ट्रीय एकता, आजादी की मांग के बीच हर देशवासी की जुबान पर चढ़ गया. अंग्रेजी हुकुमत को यह देशभक्ति गीत इतना नागवार गुजरा की उन्होने इस गीत के लेखक की गिरफ्तारी के आदेश दे दिए. इसके चलते कई सालों तक इस महान गीतकार को भूमिगत रहना पड़ा.

यह महान शख्स कोई और नहीं बल्कि हिंदी कविता और हिंदी सिनेमा में देशभक्ति और मानवीय मूल्यों का अलख जगाने वाले गीतकार कवि स्वर्गीय प्रदीप उर्फ रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी थे, जिनके गीत आज भी हर देशवासी की जुबान पर हैं. 6 फरवरी 1915 उज्जैन के बड़नगर कस्बे में जन्मे गीतकार और कवि प्रदीप अपने दौर में हिंदी कविता और कवि सम्मेलनों के नायाब शख्सीयत थे.

1940 में आई फिल्म 'बंधन' में प्रदीप के गीत 'चल चल रे नौजवान...' के बाद यह देशभक्ति गीत (दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है...') इतना पोपुलर हुआ था कि दर्शकों की मांग पर सिनेमा घरों में दुबारा दिखाना पड़ता था. जेल में बंद आज़ादी के दीवाने इस गीत को अक्सर और हर वक्त गुनगुनाते नहीं थकते थे. यह गीत बार-बार इसलिए गाया जाता था ताकि देश में जली देशभक्ति की आग मद्धिम ना हो जाए. पण्डित जवाहरलाल नेहरू भी इस गाने को बार- बार साथियों के साथ मिलकर गाते थे.

अनिल बिस्वास के निर्देशन में अमीरबाई और खान मस्ताना की आवाज़ ने इस गीत को अमर कर दिया. इस गीत का इतना प्रभाव था कि इसके बारे में विश्वास गुप्त लिखा है कि 'इसने 1942 के 'भारत छोड़ो आन्दोलन' के तुरंत बाद जनता में नई चेतना का संचार किया, देश के नौजवानों में नए प्राण फूंक दिए'. इतना ही नहीं 'ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुर्बानी' यह मशहूर देशभक्ति गीत कवि प्रदीप ने ही लिखा था. यह गीत सी. रामचंद्रा के संगीत से सजा था तो लता मंगेशकर ने अपनी सुरीली और दिलकश आवाज से इस गीत को लाफानी बना दिया. इस गीत के जरिए 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान मारे गए सैनिकों को याद किया गया. यह वो वक्त था जब भारत चीन से इस युद्ध में पिछड़ने के कारण राष्ट्रीय अवसाद में था और पूरा देश अपने सैनिकों की शहादत को नमन कर रहा था. लता मंगेशकर ने इस गीत को पहली बार 27 जनवरी 1963 को नई दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में गया था, तक तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी कार्यक्रम में मौजूद थे, और हर देशवासी की आंखे और दिल इस गाने से भर आया था. कवि प्रदीप का लिखा यह देशभक्ति गीत भी इतना लोकप्रिय हुआ कि हर देशवासी की जुबान पर आज भी यह गीत है.

 

'प्रदीप जी दूरदर्शी थे, उन्होंने चित्रपट की क्षमता को पहचान कर एक सशक्त माध्यम के रूप में उसका इस्तेमाल किया'

- पंण्डित जवाहर लाल नेहरू

 

'देशभक्ति के गीत लिखना मेरा रोग है, मैं इस रोग से ग्रस्त हूं'

- कवि प्रदीप

 

फिल्म 'कभी धूप कभी छांव' का गाना 'सुख दुख दोनों रहते जिसमें...', फिल्म 'जागृति' का 'आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की...', 'किस्मत' फिल्म का 'दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है...', फिल्म 'शंकर, सीता अनसुया' का 'हमने जगत की अजब तस्वीर देखी' जैसे प्रसिद्ध गीतों के अलावा आइए आपको बताते हैं कवि प्रदीप के लिखे वो प्रमुख दस (TEN) गीत, जो आज भी सुने जानते हैं.

 

 

प्रदीप के 10 प्रमुख गीत:

1- आज के इस इंसान को ये क्या हो गया... (अमर रहे ये प्यार)

2- पिंजरे के पंछी रे, तेरा दर्द ना जाने कोय... (नागमणि)

3- चल-चल रे नौजवान... (बंधन)

4- साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल... (जागृती)

5- दूसरों का दुखड़ा दूर करने वाले... (दशहरा)

6- हम लाये हैं तूफानों से कश्ती निकाल के... 'जागृती'

7- टूट गई है माला... (हरिश्चंद्र तारामती)

8- मुखड़ा देख ले प्राणी... (दो बहन)

9- कोई लाख करे चतुराई... (चंडी पूजा)

10- तेरे द्वार खड़ा भगवान, भगत भर दे झोली... (वामन अवतार) 

 

कवि प्रदीप की शिक्षा और नौकरी:

कवि प्रदीप ने इंदौर के शिवाजी राव हाईस्कूल में सातवीं तक पढाई की. इसके बाद इलाहाबाद के दारागंज हाईस्कूल में पढे. लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा प्राप्त कर अध्यापक प्रशिक्षण पाठ्‌यक्रम में प्रवेश लिया. विद्यार्थी जीवन में ही हिन्दी काव्य लेखन और हिन्दी काव्य वाचन में उनकी गहरी रुचि थी. इसी बीच रामचंद्र द्विवेदी (जिनको बाद में कवि प्रदीप के नाम से जाना गया) को मुंबई में एक कवि सम्मेलन में जाने का मौका मिला, जहां उनकी मुलाकात बॉम्बे टॉकीज से जुड़े एक व्यक्ति से हुई. वह व्यक्ति उनके कविता पाठ से इतना प्रभावित हुआ कि उसने तुरंत इसकी जानकारी हिमांशु राय को दी और उनकी मुलाकात करवाई. इस मुलाकात से वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने 200 रुपए प्रति माह की नौकरी भी हाथों हाथ दे दी.

 

रामचंद्र द्विवेदी कैसे बने कवि प्रदीप?

हिमांशु राय जो कि बॉम्बे टॉकीज के प्रमुख थे, वो कवि रामचंद्र द्विवेदी (जिनको बाद में कवि प्रदीप के नाम से जाना गया) से काफी प्रभावित थे. उनकी काबिलियत और लेखनी के वो बहुत जल्द ही कायल बन चुके थे. वो कवि रामचंद्र द्विवेदी को एक नए मुकाम पर देखना चाहते थे और भरोसा था कि यह एक दिन महान व्यक्ति बनेंगे. उनका आत्मीय जुड़ाव कवि रामचंद्र द्विवेदी से हो चुका था. ऐसे में हिमांशु राय का ही सुझाव था कि रामचंद्र द्विवेदी अपना नाम बदल लें. उन्होंने रामचंद्र द्विवेदी को सुझाव दिया कि 'यह रेलगाड़ी जैसा लंबा नाम ठीक नहीं है'. बस फिर क्या था कवि रामचन्द्र द्विवेदी भी हिमांशु राय का काफी सम्मान करते थे और तुरंत ही अपना नाम रामचंद्र द्विवेदी से बदलकर प्रदीप रख लिया. और इस तरह से वो प्रदीप बन गए.

पर इस बीच एक नई गफलत शुरु हो गई. उन दिनों अभिनेता प्रदीप कुमार भी काफी प्रसिद्ध थे, उनकी दीवानगी भी प्रशंसकों में चरम पर थी. अब बॉम्बे की मायानगरी में दो प्रदीप हो गए थे एक कवि था तो दूसरा अभिनेता. दोनों का नाम प्रदीप होने से डाकिया भी बेचारा अक्सर गलती कर बैठता था एक की डाक दूसरे को जा पहुंचती थी. इस बड़ी दुविधा को दूर करने के लिए प्रदीप ने फिर अपने नाम को प्रदीप की जगह कवि प्रदीप लिखना शुरू कर दिया, जिसके बाद फिर आसानी से चिट्ठिंयां सही ठीकाने पर पहुंचने लगीं.