अशोक गहलोत के वो 10 मजबूत पक्ष जो बनाते हैं उन्हें राजस्थान का सबसे ताकतवर नेता


जयपुर (राजस्थान). अशोक गहलोत ना केवल राजस्थान के बल्कि देश के सबसे मजबूत नेताओं में शुमार हैं. वो मुख्यमंत्री के तौर पर अपने तीसरे कार्यकाल का पहला साल पूरा कर चुके हैं. कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई से राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले गहलोत 1973 से 1979 तक राजस्थान एनएसयूआई के अध्यक्ष रहे. गहलोत 7वीं लोकसभा के लिए 1980 में पहली बार जोधपुर से कांग्रेस के टिकट पर जीतकर संसद पहुंचे. इसके बाद जोधपुर से ही 8वीं, 10वीं, 11वीं और 12वीं लोकसभा में चुनाव जीता. यह उनके लगातार शानदार प्रदर्शन का ही नतीजा था कि बतौर इनाम उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया गया. गहलोत को इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और पी.वी.नरसिम्हा राव के मंत्रिमंडल में सेवाएं देने का मौका मिला. इसके अलावा वह तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने.

अशोक गहलोत पांच बार सांसद रह चुके हैं और पांचवीं बार विधायक चुने गए हैं. वे केंद्र और राज्य दोनों ही जगह मंत्री पद संभाल चुके हैं और दोनों ही स्तर के नेताओं पर अच्छी पकड़ रखते हैं.पहली बार 1 दिसंबर 1998 को मुख्यमंत्री बने और पांच साल तक कांग्रेस सरकार चलाई. इसके बाद 2008 में जब कांग्रेस को दोबारा सत्ता मिली तो वह दूसरी बार मुख्यमंत्री बने और 2018 में तीसरी बार फिर मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिला.  3 मई 1951 को जोधपुर में जन्मे गहलोत ने प्रारंभिक शिक्षा के बाद विज्ञान और कानून में स्नातक किया. इसके बाद उन्होंने अर्थशास्त्र स्नातकोत्तर किया.

गहलोत की शादी 27 नवंबर 1977 को सुनीता गहलोत के साथ हुई. उनके इकलौते बेटे वैभव गहलोत अभी राजस्थान क्रिकेट अकादमी के अध्यक्ष हैं और एक बेटी सोनिया गहलोत है.

अब सवाल यह उठता है कि आखिर सियासत के इस जादूगर में ऐसी क्या खास बातें है कि वो प्रदेश का सबसे ताकतवर नेता बन गया है. ऐसी कौनसी बातें हैं गहलोत में दूसरे नेताओं पर भारी पड़ती हैं और उनके कद के आगे बौनी साबित होती हैं. गहलोत सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला साल पूरा होने पर आइए 10 फैक्ट से समझते हैं.

 

गहलोत के 10 मजबूत पक्ष:

1- कुशल और सजग व्यवहार:

जब भी कोई गहलोत से व्यक्तिगत मुलाकात करता है तो खुद कम बोलते हैं और सामने वाले को ज्यादा सुनते हैं. कहीं भी एक बड़ा राजनेता होने का दंभ नहीं झलकता. इसका नतीजा यह होता है व्यक्ति प्रभावित होता है और गहलोत के इस व्यवहार का मुरीद हो जाता है. काम हो या ना हो गहलोत से हमेशा के लिए जुड़ जाता है. कम बोलना और अधिक सुनना उनकी सबसे खास बात है. मंच से सैंकड़ों हजारों लोगों के बीच बोलते वक्त जितने चौकन्ने और सजग रहते हैं ठीक ऐसा ही ध्यान वो किसी डेलिगेशन या व्यक्ति विशेष से मुलाकात के वक्त भी रखते हैं. किसी तीसरे व्यक्ति के बारे में रिएक्ट नहीं करते चाहे गहलोत उसे कितना ही नापसंद करते हों.

2- 10 जनपथ पर सीधी एंट्री:

गांधी परिवार से करीबी भी अशोक गहलोत की सफलता का एक बड़ा कारण है. इंदिरा गांधी, राजीव गांधी जैसे दिग्गजों के साथ काम करने का अनुभव रखने वाले गहलोत सोनिया गांधी के सबसे भरोसेमंद राजनीतिक क्षत्रपों में टॉप पर रहे हैं. गहलोत ने प्रियंका गांधी और राहुल गांधी से भी संबंध हमेशा बेहतर रखे. संकट के वक्त पार्टी के लिए जरुरी फंड जुटाया, गहलोत के करीबी उन्हें 'फाइनेंसियल मैनेजमेंट गुरु' भी कहते हैं. कहा जाता है साधारन सा दिखने वाला यह असाधारण व्यक्ति पार्टी से लेने की इच्छा रखने के बजाए हमेशा पार्टी के लिए निस्वार्थ कुछ ना कुछ करने या देने के लिए तैयार रहता है, जो पार्टी के प्रति गहलोत का समर्पण भाव दिखाता है.

3- फुल टाइम पॉलिटिशियन: 

गहलोत फुल टाइम राजनीतिज्ञ हैं, हर वक्त उनके दिमाग में सियासत की बिसात बिछी रहती है. कब किस तरह से किस चीज का पॉलिटिकल माइलेज लेना है इसका पूरा ध्यान रखते हैं. हर नेता की एक्टिविटी पर दिनभर नजर रखते हैं. करीबी कहते हैं राजनीतिक जोड़-तोड़ की गणित गहलोत के दिमाग में उनके सोने के बाद भी चलती रहती है. और तो और इसी कड़ी में वो हर वक्त मास वोट बैंक के बारे में सोचते रहते हैं जिसके चलते वो अपने हर कार्यकाल में ऐसी योजनाएं लेकर आएं जिनका सीधा जनता को लाभ मिला और ना केवल देश में बल्कि विदेशों में भी इन योजनाओं की खासी तारीफें हुईं. इसके अलावा महिला सशक्तिकरण और सम्मान की भी कई योजनाओं पर काम किया जिससे महिला वोट बैंक भी उनके साथ हुआ.

4- दुश्मनों को दोस्त बनाने की कला:

कहने को तो गहलोत के राजनीति में बहुत दुश्मन हैं लेकिन ऐसा सोचने वाले बहुत बड़ी भूल करते हैं. गहलोत को भले ही कोई अपना दुश्मन माने और बदला लेने की सोचे लेकिन गहलोत हमेशा विरोधियों को अपना बनाने में दिमाग लगाते हैं. उनका मानना है कि ताकत से इंसान को अस्थाई रुप से जीता जा सकता है जबकि प्यार और दोस्ती से हमेशा के लिए जीता जा सकता है. हां पर गहलोत उनके भरोसे और सम्मान को समझाने के बाद भी कोई ठेस पहुंचाता है तो उसकी फाइल निपटाने के लिए अच्छे समय का इंतजार करते हैं.

5- गांधीवादी सोच और सादा जीवन:

गहलोत का गांधीवादी, धेर्यवान होना, सरल स्वभाव, विनम्र व्यवहार और बेदाग छवी के साथ सात्विक खान-पान का भी उनके राजनीतिक जीवन में मान-सम्मान बढाने में अहम रहा है. अपने कद की परवाह छोड़ कहीं भी लोगों के बीच बैठकर चाय की थड़ी पर बैठकर चाय पी लेना, ढाबे पर खाना खा लेना, मौके और परिस्थितयों के मुताबिक भरी भीड़ के बीच खुद के बर्तन धोना यह कुछ उनकी सादगी के ऐसे उदाहरण हैं जिससे लोग उनके कायल बन जाते हैं. सत्ता में रहें या ना रहें, समाज के प्रबुद्ध लोगों, सत्तपक्ष या विपक्षी पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं से व्यक्तिगत रुप से उनके घर जाकर मिलना, व्यसनों से मुक्त बेदाग छवी लोगों में उनके प्रति सम्मान बढाता है. गहलोत अपने से छोटे और बड़े सभी का आदर सम्मान करते हैं. भ्रष्टाचार का ऐसा कोई अरोप उन पर आजतक साबित नहीं हुआ.

6- गहलोत को समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन:

स्वभाव की गंभीरता और गोपनियता राजनीतिज्ञ में सफलता का सबसे अहम तत्व है. गहलोत के मन में क्या चल रहा होता है. इसका अंदाजा उनके राजनीतिक दुश्मन तो छोड़िए उनके बेहद करीबी लोग भी नहीं लगा सकते. एक ही वक्त में उनके दिल में कुछ चल रहा होता है तो दिमाग में कुछ और चलता रहता है जबकि चेहरे पर भाव कुछ और ही होते हैं. उनके रिश्ते कांग्रेस के अलावा भाजपा व अन्य पार्टियों नेताओं से जितने मजबूत हैं उतने किसी और नेता के नहीं.

7- पर्सनल भरोसेमंद और मजबूत टीम:

राजस्थान के राजनेताओं में सबसे मजबूत और भरोसेमंद लोगों की टीम अशोक गहलोत के पास हमेशा रही है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके पास विपक्ष में होने के बाद भी मौजूद सरकार और मुख्यमंत्री की हर गतिविधि और अगले कदम का फीडबैक होता है. इतना ही नहीं सरकार में बैठक अधिकारी ही विपक्ष में होने के बावजूद गहलोत को पूरा फीडबैक देते हैं, और गहलोत भी पूरी गोपनीयता इस मामले में बरतते हैं, जिससे वो प्रशासनिक लॉबी, विपक्षी पार्टियों के नेताओं में भी खासा भरोसा स्थापित कर पाए हैं. हां लेकिन गहलोत की टीम में वही लोग रहते हैं जो लम्बे समय तक उनके साथ रहकर उनका भरोसा जीत पाते हैं. उनके बुरे वक्त में भी उनके साथ रहते हैं.

8- मीडिया फ्रेंडली:

एक तरफ जहां कई नेता मीडिया के सवालों से भागते हैं. प्रेस फ्रेंडली नहीं होते हैं. वहीं अशोक गहलोत इससे उलट प्रेस प्रेमी और पत्रकार हितेषी हैं. पत्रकारों से दोस्ताना व्यवहार रखते हैं, उनके सुख-दुख के साथी के रुप में अपनी पहचान रखते हैं. मीडिया के सवालों से बचने के बजाए उनके जवाब देते हैं. इतना ही नहीं टीवी चैनल्स पर चलने वाली हर ब्रेकिंग और खबर का 24 घंटे फीडबैक लेते रहते हैं. अखबारों में छपने वाली हर खबर को गंभीरता से लेते हैं. गहलोत के मीडिया फ्रेंडली होने का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मुख्मंयत्री रहते हुए भी कई बार प्रेस के बीच में बोलते नजर आते हैं कि 'आप चाहे जितने सवाल पूछ लो, जब तक आप थक नहीं जाते, मैं जवाब देता रहूंगा, मुझे जाने की कोई जल्दबाजी नहीं है.' गहलोत का यह व्यवहार पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को उनका विरोधी होने से रोकता है, गहलोत की यह खासियत उनकी इमेज बिल्डिंग में अहम किरदार निभाती है.

9- सभी जातियों में पकड:

यह अशोक गहलोत की राजनीतिक जादूगरी ही कही जाएगी कि जिस राज्य में क्षत्रिय, जाट और ब्राह्मण वोट बैंक का का वर्चस्व हो, वहां माली जाति के इस नेता ने गहरी पैठ बनाते हुए तीसरी पर मुख्यमंत्री का पद संभाला. 1998 में उन्होंने तमाम बड़े नेताओं की चुनौती के बीच सीएम पद संभाला, तो 2008 में भी अप्रत्याशित अंदाज में वियजी पताका फहराकर मुख्यमंत्री बने. 2018 में भी उन्होंने ग्वालियर राजघराने की बेटी और झालावाड़ राजघराने की बहू वसुंधरा राजे को सत्ता से बेदखल कर मुख्यमंत्री बने. इतना ही नहीं इस दौरान अपनी ही पार्टी के मजबूत युवा चेहरे सचिन पायलट को पीछे छोड़कर आलाकमान का भरोसा जीता और तीसरी बार फिर राजस्थान के मुख्यमंत्री बने.

10- औद्योगिक घरानों और ज्यूडिशिरी से अच्छे संबंध:

खुद मारवाड़ क्षेत्र से आते हैं और इस क्षेत्र के व्यापारी और उद्योगपति पूरी दुनिया में फेले हैं. जिनसे गहलोत के मजबूत संबंध रहे हैं, जरुरत के वक्त यह घराने अशोक गहलोत के एक इशारे पर प्रदेश में किसी भी तरह के निवेश और सहयोग के लिए तैयार रहते हैं. और तो और गहलोत के रहते हुए प्रदेश कांग्रेस पार्टी को भी कभी आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पड़ा. जोधपुर हाईकोर्ट में रहे वकील और न्यायाधीश कई बडे ओहदों पर रहे, जिनसे गहलोत ने हमेशा अच्छे और सम्मानजनक रिश्ते कायम रखे. खुद गहलोत ने भी कानून की पढ़ाई की है. इसी का नतीजा है कि न्यायिक क्षेत्र में भी मजबूत पकड़ रखने वाला गहलोत से ज्यादा सक्षम राजस्थान में कोई नेता नहीं है.