ब्रेग्जिट: ब्रिटेन यूरोपियन संघ से अलग, 10 फैक्ट से समझे आखिर क्या है पूरा मसला


लंदन (सौम्यता मिश्रा). बात दूसर विश्व युद्ध की समाप्ति की है, जब पश्चिमी यूरोप देशों ने महसूस किया कि लडाई झगड़ों में कुछ नहीं रखा है. यूरोपियन देशों में एकता होनी बेहद जरुरी है. विभिन्न यूरोपियन देशों में राष्ट्रवाद और एकता की भावना पनपने लगी, आवाम के अच्छे, खुशहाल जीवन के साथ आर्थिक उन्नति की ओर यूरोपियन देशों ने मिलकर सोचना शुरु किया.

इस भावना का ही नतीजा था कि यूरोप के एकीकरण का सबसे पहला सफल प्रस्ताव 1951 में आया जब यूरोप के कोयला और स्टील उद्योग लाबी ने लामबंदी शुरु कर दी. जिसके तहत खासकर फ्रांस और पश्चिमी जर्मनी के इस उद्योग को एकीकृत नियंत्रण में लाने का प्रयास हुआ, ताकि इन दो राष्ट्रों में संघर्ष की स्थिति भविष्य में उत्पन्न न हो. इस लाबी के कर्ता धर्ता ने तभी इसे संयुक्त राज्य यूरोप की परिकल्पना के रूप में प्रचारित किया था.

यूरोपीय संघ के अन्य संस्थापक राष्ट्रों में बेल्जियम, इटली, लक्जमबर्ग और नीदरलैंड भी शामिल रहे. इसके बाद से ही एक ऐसे मजबूत राजनीतिक और आर्थिक मंच की कल्पना की गई जिनमें आपस में प्रशासकीय साझेदारी हो और संघ के कई या सभी राष्ट्रों पर मंच के नियम लागू हो. यूरोपियन संघ का अभ्युदय 1957 में रोम की संधि द्वारा यूरोपिय आर्थिक परिषद के माध्यम से छह यूरोपिय देशों की आर्थिक भागीदारी से हुआ. तब से इसमें सदस्य देशों की संख्या में लगातार बढोत्तरी होती रही और इसकी नीतियों में बहुत से परिवर्तन भी शामिल किये गये. 1993 में मास्त्रिख संधि द्वारा इसके आधुनिक वैधानिक स्वरूप की नींव रखी गयी. दिसम्बर 2007 में लिस्बन समझौता जिसके द्वारा इसमें और व्यापक सुधारों की प्रक्रिया 1 जनवरी 2008 से शुरु की गयी.

1- आखिर 'ब्रेग्जिट' है क्या?

जिसे 'ब्रेग्जिट' कहा जा रहा है उसका मतलब है 'ब्रिटेन एग्जिट' यानी कि ब्रिटेन का यूरोपीय यूनियन से बाहर निकलना. इसकी ठोस बिसात साल 2016 में बिछी, जब ब्रिटेन में इसे लेकर जनमत संग्रह किया गया था. इस जनमत में आधे से ज्यादा लोगों ने ब्रिटेन को यूरोपीय यूनियन से बाहर निकालने की पैरवी की.

2- यूरोपियन संघ यानी यूरोपियन यूनियन क्या है?

यूरोपियन संघ यानी यूरोपियन यूनियन मुख्य रुप से यूरोप के 28 देशों का एक ऐसा राजनैतिक आर्थिक मंच है जिनमें आपस में प्रशासकीय साझेदारी होती है जिसके नियम-कानून संघ के कई या सभी राष्ट्रों पर लागू होते हैं. यूरोपीय संघ में एक और समूह है जिसे यूरोजोन कहा जाता है. 1999 में यूरोपिय संघ के 15 सदस्य देशों ने एक नई मुद्रा यूरो को अपनाया. यह यूरोपीय संघ के उन देशों का समूह है जिन्होंने यूरो को अपनी मुद्रा के तौर पर अपनाया है. बाकी अन्य देशों की अपनी-अपनी मुद्राएं हैं.

3- यूरोपियन संघ का क्या काम?

अपने सदस्य राष्ट्रों को एकल बाजार के रूप में मान्यता यूरोपिय संघ देता है. यूरोपियन संघ के कानून सभी सदस्य राष्ट्रों पर लागू होते हैं, जिनका सम्मान सभी देशों को करना जरुरी है. यह संघ इसके सदस्य देशों के नागरिकों के लिए लोगों, सामान, सेवाओं और पूंजी के स्वतंत्र आदान-प्रदान की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करता है यानी की संघ सभी सदस्य राष्ट्रों के लिए एक ही तरह के व्यापार, मतस्य, क्षेत्रीय विकास की नीति पर काम करता है. यूरोपीय यूनियन के नियम सभी सदस्य देशों पर लागू होते हैं.

4- कौन-कौन से देश इसमें शामिल हैं?

28 देशों के संगठन यूरोपीय यूनियन में डेनमार्क, एस्तोनिया, पोलैंड, पुर्तगाल, रोमानिया, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, ग्रीस, आस्ट्रिया, बेल्जियम, बुल्गारिया, साइप्रस, चेक गणराज्य, हंगरी, आयरलैंड, इटली, लातीविया, लिथुआनिया, लक्जमबर्ग, माल्टा, नीदरलैंड, स्लोवाकिया, स्लोवानिया, स्पेन, स्वीडन, कोएशिया के साथ युनाइटेड किंगडम शामिल है. इनमें से अब यूनाइटेड किंगडम अलग हो गया है. जबकि 3 देश ऐसे भी हैं जो इसका सदस्य बनने की प्रकिया में हैं और इसमें शामिल होने की आधिकारिक घोषणा का इंतजार कर रहें हैं.

5- 'ब्रेग्जिट' के पीछे ब्रिटेन की सोच?

ब्रिटेन की माने तो ब्रिटेन में अवैध प्रवासियों की संख्या लगातार बढ़ रही थी, जिसका असर ब्रिटेन के लोगों की नौकरियों पर पड़ रहा था. प्रवासियों ने स्थानीय लोगों की नौकरियों पर कब्जा जमा रखा था जिससे स्थानीय लोगों में बेरोजगारी और आक्रोश बढ़ रहा था. ये देश आर्थिक तौर पर दूसरे देशों के मुकाबले पिछड़े हुए हैं. यूरोपियन यूनियन के कानून की पालना ब्रिटेन के विकास में बाधक मानी जा रही थी, और ब्रिटेन पर लगातार कर्ज भी बढ रहा था. कंजर्वेटिव पार्टी की मुख्य समस्या फ्री लेबर मूवमेंट से है क्योंकि यूनियन इकलौता बाजार है और किसी देश का इंसान किसी भी देश में काम कर सकता है. ये देश आर्थिक तौर पर दूसरे देशों के मुकाबले पिछड़े हुए हैं. यूरोपियन यूनियन की सरकार जनता के चुनाव से नहीं आती बल्कि देशों के नेता ही किसी को वहां भेज देते हैं जो कि ब्रिटेन को लोकतांत्रित व्यवस्था के खिलाफ भी लगता था. इसके अलावा मेम्बर रहने के लिए हर साल संघ को पैसे देने पड़ते हैं, हालांकि सारे सदस्यों के पैसो को मिलाकर भी ये पैसा यूरोपियन यूनियन के जीडीपी का 2.5 फीसदी ही है. यूरोपीय यूनियन के 7 हजार नियम-कानून की पालना ब्रिटेन के लिए आसान नहीं रह गया था.

6- क्या सभी यूरोपियन देश सदस्य?

सभी यूरोपीय देश यूरोपियन संघ के सदस्य नहीं हैं. जैसे स्वीटजरलैंड, नार्वे, यूक्रेन, सर्बिया और बेलारूस, सोवियत रूस इसका हिस्सा नहीं हैं. जबकि ब्रिटेन ब्रेक्जिट के बाद उससे अलग हो गया है. ब्रिटेन के निकलने के बाद यूरोपीय संघ में 27 सदस्य बचेंगे जबकि यूरोपीय महाद्वीप में कुल देशों की संख्या लगभग 50 है.

7- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्या?

यूरोपीय यूनियन के 21 देश नाटो के सदस्य हैं. EU के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव की बात करें तो संयुक्त राष्ट्रसंघ (UN) और विश्व व्यापार संगठन (WTO) में अपने सदस्य देशों का प्रतिनिधित्व करता है. यूरोपियन कमीशन, यूरोपीय संसद, यूरोपीय संघ परिषद, यूरोपीय न्यायालय और यूरोपियन सेंट्रल बैंक जैसे प्रमुख संस्थान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना प्रभाव रखते हैं.

8-  क्षेत्रफल के लिहाज से यूरोपियन संघ

क्षेत्रफल के लिहाज से यूरोपियन संघ समूचा यूरोपीय महाद्वीप करीब 1 करोड़ वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जबकि यूरोपीय संघ का क्षेत्रफल 4.4 लाख वर्ग किलोमीटर है यानी यूरोपियन संघ का क्षेत्रफल यूरोपीय महाद्वीप के लिहाज से पूरे यूरोप से काफी कम है.

9- आबादी के लिहाज से यूरोपियन संघ

यूरोपीय संघ में शामिल देशों की कुल जनसंख्या 51.1 करोड़ बताई जाती है जबकि यूरोप के सभी देशों की जनसंख्या की जनसंख्या लगभग 74.1 करोड़ के करीब है. यूरोप के कई देश इस लिहाज से चिंतित भी नजर आते हैं कि उनकी आबादी लगातार घटती जा रही है.

10- भारत पर क्या असर?

जाने-माने अर्थशास्त्री और फाइनेंशियल मैनेजमेंट एक्सपर्ट प्रो. राजेश कोठारी के मुताबिक ब्रिटेन में 800 से ज्यादा भारतीय कंपनियों में करीब सवा लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है, जिनमें टाटा मोटर्स के जगुआर-लैंड रोवर, टाटा स्टील, टीसीएस, भारत फोर्ज, भारती एयरटेल, हिंडाल्को, मदरसन सुमी, टेक महिंद्रा, सीमेंस फार्मा, बीएएसएफ, अरबिंदो फार्मा जैसी बडी कंपनियां शामिल हैं. ऐसे में अब इन कंपनियों को नए सिरे से अपने व्यापार और रोजगार की नीति पर काम करना होगा. ब्रेक्जिट के बाद पूरी संभावना है कि ब्रिटेन की करेंसी पाउंड में गिरावट आएगी, जो भारतीय कंपनियों के मुनाफे पर असर डालेगी. अगर यूरोप ने नए नियम ला दिए तो भारतीय कंपनियों को यूरोप में प्रवेश के लिए नए सिरे से सोचना होगा. अलग अलग नियम-कानून से जूझना होगा.