संवैधानिक मर्यादा से ऊपर कोई नहीं, CM बताएं राज्यपाल की सुरक्षा के लिए किस एजेंसी से संपर्क करें: कलराज मिश्र


जयपुर. राजस्थान की सियासत में राज भवन और मुख्यमंत्री में टकराव होता दिख रहा है. एक ओर जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विधानसभा सत्र नहीं बुलाए जाने से खफा होकर शुक्रवार सुबह कहा था कि 'यह सारा सियासी घटनाक्रम बीजेपी के नेताओं की साजिश है. ऐसा नंगा नाच देश में कभी नहीं देखा और यदि इस दौरान जनता ने राजभवन घेरा तो हमारी जिम्मेदारी नहीं होगी.'

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के इस बयान के बाद में जहां ना केवल बीजेपी ने अशोक गहलोत को जमकर घेरा और बीजेपी ने तुरंत राजभवन की सुरक्षा सीआरपीएफ के हवाले करने की मांग की, वहीं इसे मुख्यमंत्री द्वारा राज्यपाल को दी गई धमकी भी बताया गया. अब इस पूरे घटनाक्रम के बाद सियासत में एक नया मोड़ आया है. राजभवन में धरने पर बैठे अशोक गहलोत के विधायकों द्वारा की गई नारेबाजी और मुख्यमंत्री की बयानबाजी से राज्यपाल कलराज मिश्र खफा हो गए हैं. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखते हुए उनके इस बयान पर उन्होंने आड़े हाथों लिया है. इस बयान के बाद में राज्यपाल और मुख्यमंत्री में सीधा टकराव दिखने लगा है. इतना ही नहीं राज्यपाल ने मुख्यमंत्री से इस पूरे मामले में सफाई देने को भी कहा है. 

राज्यपाल ने CM से पूछा है कि आप और आपका गृह मंत्रालय राज्यपाल की रक्षा भी नहीं कर सकता है तो राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति के संबंध में आपका क्या मंतव्य है? साथ-साथ यह भी बताएं कि राज्यपाल की सुरक्षा के लिए किस एजेंसी से संपर्क करें?

राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा है कि संवैधानिक मर्यादा से ऊपर कोई नहीं होता है. उन्होंने कहा कि किसी भी प्रकार की दबाव की राजनीति नहीं होनी चाहिए. राज्य सरकार द्वारा दिनांक 23 जुलाई, 2020 को रात में विधानसभा के सत्र को अत्यन्त ही अल्प नोटिस के साथ आहूत किये जाने की पत्रावली पेष की गई. पत्रावली में गुण दोषों के आधार पर राजभवन द्वारा परीक्षण किया गया तथा विधि विषेषज्ञों द्वारा परामर्ष प्राप्त किया गया. तदपुरान्त राज्य सरकार के संसदीय कार्य विभाग को राजभवन द्वारा निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर स्थिति प्रस्तुत करने के लिए पत्रावली प्रेषित की गई है.

राजभवन ने कही बड़ी बातें:


1. विधानसभा सत्र को किस तिथि से आहूत किया जाना है, इसका उल्लेख केबिनेट नोट में नहीं है और ना ही केबिनेट द्वारा कोई अनुमोदन प्रदान किया गया है.


2. अल्प सूचना पर सत्र बुलाये जाने का न तो कोई औचित्य प्रदान किया गया है और ना ही कोई एजेण्डा प्रस्तावित किया गया है. सामान्य प्रक्रिया में सत्र आहूत किए जाने के लिए 21 दिन का नोटिस दिया जाना आवश्यक होता है.


3. राज्य सरकार को यह भी सुनिश्चित किये जाने के निर्देश दिए गए हैं कि सभी विधायकों की स्वतन्त्रता एवं उनका स्वतंत्र आवागमन भी सुनिश्चित किया जावे.


4. कुछ विधायकों की निर्योग्यता का प्रकरण माननीय उच्च न्यायालय और माननीय सर्वोच्च न्यायालय में भी विचाराधीन है. उसका संज्ञान भी लिए जाने के निर्देश राज्य सरकार को दिए गए हैं. साथ ही कोरोना के राजस्थान राज्य में वर्तमान परिपेक्ष्य में तेजी से फैलाव को देखते हुए किस प्रकार से सत्र आहूत किया जायेगा, इसका भी विवरण प्रस्तुत किए जाने के निर्देश दिए गए हैं.


5. राजभवन द्वारा स्पष्ट रूप से निर्देशित किया गया है कि प्रत्येक कार्य के लिए संवैधानिक मर्यादा और सुसंगत नियमावलियों में विहित प्रावधानों के अनुसार ही कार्यवाही की जावे.


6. यह भी कहा गया है कि राज्य सरकार का बहुमत है तो विश्वास मत प्राप्त करने हेतु सत्र आहूत करने का क्या औचित्य है?