क्यों माना जा रहा है कि कुछ भी हो इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन ही है ब्लैक फंगस का बड़ा कारण. क्या सच में बड़े स्तर पर हुई लापरवाही?


दिल्ली(सचिन शर्मा)। कहीं इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन तो नहीं ब्लैक फंगस का कारण? या मनचाहे तरीके से किसी भी सिलेंडर में ऑक्सीजन भरकर उसे मरीज तक पहुंचाना रहा ब्लैक फंगस का एक बड़ा कारण? यह इस वक्त देश में सबसे बड़ा सवाल बना हुआ है कि आखिर जहां पहली कोरोना लहर में ब्लैक फंगस के कोई मामले सामने नहीं आए थे, वहीं अचानक दूसरे वेव में इसने महामारी का रूप कैसे ले लिया?

 

जानकार इसलिए भी इसके पीछे एक तर्क देते हैं कि पहली लहर में चूंकि ऑक्सीजन की कमी नहीं थी और इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन का इस्तेमाल नहीं किया गया था इस लिहाज से ब्लैक फंगस के मामले भी सामने नहीं आए और दूसरी लहर में किल्लत के बीच इसका जमकर इस्तेमाल हुआ। जिससे मामले सामने आए। देश में यह सवाल प्रमुखता से उठाया जा रहा है कि कोरोना संक्रमण के बाद एक नई महामारी ब्लैक फंगस जिसे म्यूकोरमायकोसिस भी कहा जाता है के अचानक फैलने की वजह आखिर क्या है? वैसे तो इसकी जांच में देश के वैज्ञानिक जुटे हैं। लेकिन दिल्ली, मुम्बई, पुणे और बेंगलुरु के अनेक अस्पतालों के चिकित्सकों ने यह आशंका जताई थी कि इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन की वजह से भी ब्लैक फंगस फैलने का एक कारण हो सकती है।

हालांकि अभी यह जांच का विषय है, लेकिन विशेषज्ञों ने यह तो माना ही है कि मेडिकल ऑक्सीजन 99% शुद्ध होती है, जबकि इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन की शुद्धता 95% ही होती है। देश मे ऑक्सीजन की कमी के कारण सरकार ने इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन को मरीजों के लिए डाइवर्ट तो कर दी, लेकिन कहीं न कहीं इस आपा धापी में यह चूक जरूर हुई है कि इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन के सिलेंडर को स्टरलाइज ही नहीं किया गया। ब्लैक फंगस के प्रसार में ICU में ऑक्सीजन सिलेंडर से मरीज को ऑक्सीजन देने के लिए काम आने वाली प्लास्टिक ट्यूब सहित स्टेरॉइड्स के अत्यधिक इस्तेमाल सहित अन्य कारणों पर भी जांच जारी है।

इसका कारण यह भी है कि पिछले वर्ष कोरोना की पहली लहर में भी मरीजों को ICU में ऑक्सीजन दी गई थी, लेकिन तब इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन को मरीजों को देने की जरूरत नहीं पड़ी थी। मौजूदा हालात में अब कारण जो भी रहे हों, लेकिन ब्लैक फंगस के मरीजों को जल्द से जल्द इलाज देने और नए संक्रमण को फैलने से रोकना जरूरी हो गया है।

 

कई मेडिकल एक्स्पर्ट मानते है कि दूषित ऑक्सिजन, गंदे कंटेनर, गंदा ऑक्सीजन मास्क-ट्यूब या फिर ह्यूमिडिफ़ायअर में नल के पानी के इस्तेमाल को ब्लैक फ़ंगस के अचानक हुए फैलाव में अहम मानते हैं।

ऑल इंडिया फ़ूड एंड ड्रग लाइसेंस होल्डर फ़ाउंडेशन के अध्यक्ष अभय पांडे ने तो मामले में FDA को चिट्ठी भी लिखी है. उनका कहना है कि इंडस्ट्रियल ऑक्सिजन इतनी शुद्ध नहीं होती, न ही उनके प्लांट पर साफ़ सफ़ाई होती है, मेडिकल प्लांट की साफ़ सफ़ाई अलग होती है, सिलेंडर भी इस दर्जे का होता है। ऐसे में क्या मेडिकल को दिए गए इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन में FDA के नियमों का पालन हुआ?क्या टैंकर और सिलेंडर अपग्रेड किए गए? मेडिकल नियमों के हिसाब से हमने FDA से पूछा है.

एक्सपर्ट्स के मुताबिक इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन बनाते वक्त जो कंप्रेसर बनाया जाता है, उसमें ऑयल रहता है जबकि मेडिकल कंप्रेसर में तेल का इस्तेमाल नहीं होता. जिस कंटेनर या टैंकर से ये सप्लाई होता है, उसे साफ़ रखना ज़रूरी है जो इंडस्ट्रियल ऑक्सिजन में नहीं किया जाता. उनके रिफ़िलिंग प्लांट पर लोग हाइड्रोजन, नाइट्रोजन और कार्बन डाई आक्साइड के सिलेंडर तक ले कर पहुंचते थे। बहरहाल इस मामले में कई तरह की थ्योरी सामने आ रही है लेकिन यह कुछ तर्क ऐसे हैं जो इस बात की ओर इशारा करते हैं कि कहीं ना कहीं इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन भी ब्लैक फंगस को बढ़ाने में अहम कारक हो सकता है।