दुनिया के सामने एक नई चुनौती कोरोना से निपटे तो कैसे बचेंगे मानसिक तनाव से!


नई दिल्ली (ऋचा मिश्रा, TEN वर्ल्ड डेस्क). इंसान एक सामाजिक प्राणी है, लेकिन आज वो अपनी नैसर्गिक परवर्ती और महामारी के बीच दोराहे पर खड़ा है. एक तरफ नए सूक्ष्म जीव कोविड 19 (कोरोना) से बचने के लिए वो घरों में रहने को मजबूर है वहीं इसके चलते एक अद्रश्य शत्रु विकराल रूप धर रहा है. ये है अवसाद, कोरोना का भय और आर्थिक अनिश्चितता के बीच समाज से कट जाने के मानसिक दुष्प्रभावों को लेकर आज दुनिया भर के मनो-वेज्ञानिक चिंतित हैं.अधिकांश देशों ने कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए नागरिकों को अपने घरों में ही रहने की हिदायत दी है, भारत सहित कई देशों में इसे सख़्ती के साथ लागू किया जा रहा है. करोड़ों नागरिक आज अपने ही घरों में क़ैद हैं, दिन पर दिन अपने ही घर में रहने को मजबूर. ये एक ऐसी स्थिति है जो इंसान ने शायद ही पहले कभी देखी होगी.

ब्रिटेन के प्रख्यात मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ सिमोन वेस्ली, जो वहाँ की राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य क़ानून के निर्धारण वाली स्वतंत्र संस्था के अध्यक्ष भी हैं उन्होंने इस घर बंदी को लेकर चिंता ज़ाहिर करते हुए स्थिति को मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से युद्ध से भी भयावह बताया है. उनके अनुसार युद्ध में अवसाद से लड़ने के लिए सामाजिक मेलजोल मद्द करता है लेकिन अब नागरिकों के पास वो सहारा नही है, ये मानव के लिए एक अनदेखी स्थिति है.

ब्रिटेन भी कोरोना को रोकने के लिए तालेबंदी कर लोगों को घर में रखने की नीति अपनाई है. अन्य देशों के भी मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और संस्थाएं इस स्थिति को लेकर चिंता प्रकट कर रही हैं. घरों में बंद अधिकांश लोग मोबाइल, टीवी और अन्य इलेक्ट्रॉनिक मनोरंजन साधनो से मन लगा रहे, लेकिन इनके अत्यधिक प्रयोग से होने वाले मानसिक दुष्प्रभाव पहले से ही ज्ञात हैं.

भारत में चुनौती और भी जटिल है, यहाँ लोग पागल ठहराये जाने के डर से अवसाद की स्थिति को स्वीकारते नहीं और ये और गहरा होता जाता है. वहीं सरकारी तंत्र जहाँ कोरोना की रोकथाम को लेकर कटिबद्ध है उसने भी नागरिकों के मानसिक स्वास्थ्य को लगभग दरकिनार कर रखा है. अधिकांश राज्यों में किसी प्रकार की अवसाद की हेल्प लाइन नहीं है और आमजन में इसके प्रति जागरूकता की कमी है.

आज वो धार्मिक स्थलों पर मिलने वाली सहज शांति से भी दूर है, लिहाज़ा फ़ोन पर उपहास में अपनी असहजता को ढक रहा है. लेकिन, हर गुजरते दिन के साथ ये समस्या विकराल रूप ले रही है. एक भ्रांति ये भी है के अवसाद जानलेवा नहीं, भारत में हर साल ये सैंकड़ों लोग अवसाद के चलते असमय खुद के प्राण ले लेते हैं.

कई बार अवसादग्रस्त व्यक्ति अपने आस पास के लोगों को भी चोटिल कर देते हैं, सेना की छावनियाँ इस से भली भाँति परिचित हैं. आज लेकिन स्थिति और भयावह है, एक तरफ़ कोरोना का डर, आर्थिक अनिश्चय और दबाव, एक नागरिक बहुत कुछ सह रहा है. सब से ज़्यादा ख़तरे में वो युवा हैं जो काम के सिलसिले में अपने परिवार से दूर रहते हैं और अब वहीं क़ैद हो गए हैं. ऐसे बहुत से युवा हैं जिन का सामाजिक सरोकार महज़ कार्यस्थल यानी ऑफ़िस तक सीमित हो चुका था, आज वो भी बंद है. माल बंद है, होटेल बंद है, मंदिर बंद है,पार्क बंद है.

दुनिया भर के विशेषज्ञ आज लोगों को योग का सहारा लेने की सलाह दे रहे हैं, लेकिन भारत के लोग भी योग से विमुख है. क्या करें अब? सही लाइफस्टाइल का चुनाव हो, हेल्दी फूड खाया जाए, व्यायाम को रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बनाया जाए, जिंदगी के प्रति संतुलित नजरिया बनाया जाए, अपनी गलतियों से सीखा जाए, नकारात्मक सोच से दूर रहा जाए, अपने भीतर बच्चपने को जिंदा रखा जाए, अपनी क्षमता के हिसाब से करियर और रिश्तों का चुनाव किया जाए तो तनाव से बचा जा सकते है. परिवार के सदस्य एक दूसरे को हिम्मत बंधाये. बुरे दौर के निकलने का इंतजार करें. अर्थव्यवस्था में आने वाली चुनौतियां सिर्फ आपके लिए नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए है, ऐसे में कोरोना वायरस से फैले डर के माहौल से निकलने के लिए हिम्मत, साहस और संतुलित दिमाग से काम लें. घबराने की जरूरत नहीं है. जान है तो जहान है.

वहीं सरकार को चाहिए के जिस प्रकार आवश्यक सेवाओं को सुचारु किया है वैसे ही नागरिकों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर भी प्रयास किए जाएँ अन्यथा एकांतवास से उपजी अवसाद की बाढ़ कई और चुनौतियों को जन्म देगी और इसके दीर्घकालीन परिणाम भुगतने पड़ेंगे.